Saturday, September 28, 2013

// बी0पी0एल0//

    // बी0पी0एल0//

        हमारे देश में बी.पी.एल. शब्द बहुत लोकप्रिय है । इसमें देश के बडे-बडे नेता, धनी, कुबेर, जमींदार शामिल हैं। जो इसकी जमात में शामिल होकर, इसका कार्ड बनवाकर गरीबों की सुख-सुविधाऐं, आनन्द प्राप्त करते हैं और उनका राशन अपने नाम से खाते हैं। उनके मिट्टी के तेल से अपने घर के चिराग जलाते हैं ।
        देश में अत्यन्त गरीब लोगों के लिये बी0पी0एल0 कार्ड बनाये जाते हैं। योजना आयोग ने जो गरीबी की परिभाषा दी है, उसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिमाह आय 816/-रूपये और शहरी क्षेत्र में प्रतिमाह एक हजार रूपये से कम आय वाले परिवार को गरीबी की रेखा के नीचे माना गया है। इसी प्रकार ग्रामीण इलाके के लिये 4080/-रूपये वार्षिक आय से नीचे वाले व्यक्ति गरीबी के रेखा के नीचे आएगा। यदि आदमी की आय 500/-रूपये से कम है तो 6000/-रूपये सालाना आय वाले व्यक्ति का बी0पी0एल0 राशन कार्ड नहीं बनेगा।
         ऐसी स्थिति में देश के लाखों करोड़ो लोग जो 20/-रूपये प्रतिदिन कमाते हैं वे बी0पी0एल0 कार्डधारी नहीं बन सकते। जबकि रोजगार के साधन न होने से ऐसे लोगों को इस कार्ड की ज्यादा आवश्यकता है।
        बी.पी.एल. का अर्थ भी सबके लिये अलग-अलग हैं । अर्थशास्त्र में इसका अर्थ ‘‘बिलो पावर्टी लाइन‘‘ है वो राजनीतिशासत्र में इसका तात्पर्य ‘‘बिना पैंदी का लोटा है‘‘, जिसका अनुसरण शतप्रतिशत अनुयायी करते हैं।
        हमारे देश निर्माताओं की ‘‘लोटे की तरह लुढ़कने‘‘ की जगप्रसिद्ध इस आदत से हम सब परिचित हैं। लेकिन देश का आम आदमी भी इस ‘‘लुढ़कन‘‘ से प्रदूषित हो गया है और वह भी जहाॅं पैसा, सुविधा, फायदा, लाभ देखता है, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, क्षेत्रवाद, नस्लवाद, जातिवाद की फिसलन पर लुढक जाता है ।
        हमारे देश के कर्णधारों का तो जन्मसिद्ध अधिकार ही वोट, कुर्सी, सत्ता, पद के लिये लुढ़कना है, लेकिन उनके लुढकने, खिसकने, फिसलने की कोई सीमा तय नहीं रहती है । वो अनैतिकता की सीमा को भी लांग कर नहीं रूकते हैं ।
        लेकिन हमारे देश में आम नागरिक को अपनी लुढ़कन पर नियंत्रण रखना चाहिये, उसे देश की अस्मिता को दांव पर लगाकर देश के खैवनहारों की तरह नैतिकता, ईमानदारी , देशभक्ति को ताक पर रखकर नहीं लुढ़कना चाहिए।
        आज हम देश की फिसलन, लुढकन, डूबत के लिये एक-दूसरे को दोष दे रहे हैं। घूम फिरकर एक व्यक्ति विशेष और वर्ग पर आकर अपनी बात समाप्त कर देते हैं। सारा दोष, जिम्मा, जवाबदारी उन पर डालकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
        ये व्यक्ति विशेष कौन हैं ? ये हमारी ही उपज हैं, हमारे ही नीतियों से उत्पन्न हुये जयचंद, मीरकासिम हैं, हम ही चुनकर इन्हें आम से खास बनाते हैं। हम ही इनके जनक हैं। हम जो करना चाहते हैं, हम जो सुविधाएॅ चाहते हैं। उसी के आधार पर यह नीति निर्धारित करते हैं। फिर भी हम इनसे ही सबसे ज्यादा हैरान परेशान हैं और यह ही सबसे ज्यादा दागी समाज में हैं।
        हम अपना चुनाव सही क्यों नहीं करते हैं ? जब हमें चुनने का अवसर प्राप्त होता है तब हम सूरदास बनकर कंस का चुनाव करते हैं और उसके बाद उसकी ‘‘रावणनीति‘‘ को लेकर रोते रहते हैं ।
        यह अवश्य है कि हमारे पास चुनने की सीमा नहीं हैं। जितने आते हैं सब उस वर्ग में शामिल होकर सब दागी-बागी, सांपनाथ, नागनाथ हो जाते हैं लेकिन उनमें सबसे कम बागी को चुनकर अपना चुनाव सुधारा जा सकता है अथवा इन सबमें से किसी को न चुनकर भी अपना अभिमत दिया जा सकता है। अथवा इनके बीच अपने को प्रस्तुत करके भी देश की ...........
को कम किया जा सकता है।
        हमारे देश की लुढ़कन, डूबत, फिसलन के लिये सब एक-दूसरे को दोष दे रहे हैं। सब एक-दूसरे को उत्तरदायी बता रहे हैं। लेकिन मौका मिलने पर कोई भी चैका मारने में पीछे नहीं हैं, सब मौका मिलते ही फिसलने, लुढकने, खिसकने, उफनने, तैरने, डूबने, गोता लगाने में देर नहीं करते हैं।
        इसके बाद भी सबकी उंगलियां एक-दूसरे पर तनी हुई हैं। एक दूसरे को शक की निगाह से देख रहे हैं। लेकिन कोई भी अपनी तरफ ध्यान देकर देखने तैयार नहीं हैं। सब मेहनत, मजदूरी की जगह आराम की नौकरी चाहते हैं। सरकारी नौकरी के लिये सिफारिश, लेन-देन के लिये तैयार रहते हैं। सब कानून व्यवस्था में छेद बनाकर अपनी जगह बनाना चाहते हैं ।
        आज कोई भी ईमानदारी का हैलमेट पहनकर, सदाचार का लायसेंस लेकर, चरित्र का बीमा कराकर, देश प्रेम का परमिट लेकर, नैतिकता का रजिस्टेªशन करवाकर, देशभक्ति की  फिटनेस के साथ चलना नहीं चाहता है।
        जिसे देखो वह बेईमानी की सडक पर चलकर, भ्रष्टाचार के वाहन में सवार होकर, अनैतिकता की स्पीड से चलकर, विकास की मंजिल, प्रगति की टेªनें, सुविधाओं की गाड़ी, धन का पहाड़, ताजमहल जैसा आशियाना चाहता हैं।
        वह जानता है कि ताजमहल अन्य से एक सुन्दरी स्त्री की कब्रगाह बस है, लेकिन वह लोगों को ताजमहल की तरह अपनी बाहरी खूबसूरती, बुलन्दता, ऐश्वर्य, यश सम्मान है इसलिये नैतिकता की अन्धी फिटनेस दौड़ में फिसल रहा है।
        इसलिये आवश्यक है कि हम सुधरें, अपने को सुधारे, हम सुधरेगें तो समाज सुधरेगा, समाज सुधरेगा तो देश सुधरेगा। जब तक हम खुद को नहीं सुधारते तब तक हम किसी को सुधारने का भाषण, उपदेश भी नहीं दे सकते हैं ।
        आज देश के तमाम धर्मगुरू, खाऊ अफसर, उडाऊ नेता सब हमारी देन हैं। इन भष्मासुर को हमने ही समाज में पैदा किया है। हमंे ही इन्हें भस्म करना होगा। इसके लिये संपूर्ण समाज को शिव, विष्णु की तरह मोहनी बनना पड़ेगा। जब दस रावण को एक राम मार सकता है तो देश के एक सौ बीस करोड राम इन चंद भष्मासुरों का अंत कर सकते हैं, अगर हम इनके पीछे पड जायें तो यह भष्मासुर खुद अपने सिर पर अपना हाथ रखकर भष्म हो जायेंगे ।
       











       

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