examination - fever
हम लोगां को जैसे जवानी में और जाते-जाते बुढापे में ‘प्रेम-रोग‘ सताताहै। उसी तरह साल भर न पढने वालों को परीक्षा के समय ‘परीक्षा रोग‘ सताता है।इम्तिहान सिर पर आते ही लोग परीक्षा की तैयारी में जुट जाते हैं। ‘‘ कौचिंगक्लासों‘ में संख्या बढ जाती है। यहां वहां से दो तिहाई बहुमत प्राप्त करने की होडमें सांसद, विधायक, पार्षद, खींचने की तरह नोट्स प्राप्त करने की भाग-दौड शुरू
हो जाती है।
इस समय जिन छात्रों ने साल भर में पढाई, क्रिकेट खिलाडियों की तरह,गंभीर होकर न खेलने की तरह की हो वे भी परीक्षा के समय ‘सिरियस‘ नजर आतेहैं। जैसे वर्ल्ड कप क्रिकेट आते ही कोच, बोर्ड, खिलाडी, दर्शक सभी सजग होजाते है। इस समय सब मस्ती बन्द कर दी जाती है, पार्टियां स्थगित कर दी जाती
है। गोल मारकर फिल्मे देखना बंद हो जाती है। स्कूल-कॉलेज के मैदान क्रिकेटग्राउन्ड नजर नहीं आते है। कैम्पस के चारों तरफ छायी मौज-मस्ती का माहौलसचिन, धोनी के शून्य पर आऊट हो जाने की तरह शान्त नजर आता है।
इस समय क्लास बंक करने वाले छात्र, प्राक्सी हाजरी वाले छुपे रूस्तमछात्र भी गंभीरता के साथ बीस प्रश्नोत्तर लिये पढते नजर आते हैं। एक्जामिनेशन टैंशन‘ से ग्रस्त वेफिक्र रहे छात्र चिन्तित नजर आते हैं। चारों तरफचुनाव की तरह तैयारी की चर्चा रहती है। हैलो-हैलो का बिल बढ जाता हैं घरवाले खुश हो जाते हैं कि फोन पर पढाई हो रही है।
पॉंच साल में एक बार आने वाले चुनाव में जिस तरह मतदाताओं कीएकाएक पूछ बढ जाती है, उसी तरह परीक्षा के समय शिक्षकों की भी मांग, कीमत,
प्रतिष्ठित, डिमान्ड, वैल्यू, पूछताक्ष बढ जाती है। गाली देने वाले छात्र वोट ग्रहिताकी तरह पैर छूकर गुरूजन को सिर पर बैठाते हैं। जमकर आवभगत की जाती है।
वोट देने वालों की तरह सिगरेअ, शराब, कम्बल, तो नहीं बांटे जाते, लेकिन ‘मनी‘जरूर ऑफर की जाती है। मार्गदर्शन के नाम पर ‘चुनिन्दा प्रश्न‘ प्राप्त करने परअच्छी खासी रकम पेपर लीक करवाने पर खर्च की जाती है।
देश में ऐसी कोईकुर्सी नहीं जिसमें छेद न हो यह बात प्रमाणित की जाती हैं इस समय छात्रों द्वारापांच साल में एक बार जन समस्याओं की तरह ‘टॉपिक‘ समझे जाते है। शिक्षकों के
प्रति सम्मान की भावना बढ जाती है। वे गोविन्द से बडे नजर आने लगते हैं।
परीक्षा के समय भगवान के मंदिरों में भी भीड बढ जाती है। भगवान को भीग्यारह, इक्वायन, एक सौ एक का प्रसाद चढाने का लालच देकर पास करने कीमिन्नत् की जाती है। सोमवार को शंकर जी, मंगलवार को हनुमान जी,गुरूवार कोगणेश जी, शुक्रवार को दुर्गा जी के दरबार में हाजिरी लगाई जाती है। किसी भी
भगवान को रूष्ट कर फेल होने का चान्स नहीं लिया जाता हैं। यह बात अलग हैकि उनमें से अधिकांश छात्र बाद में भगवान पर फेल होने का दोष मढकर नास्तिक
हो जाते हैं।
इस समय छात्र जो पाठ्यक्रम साल भर में पूर्ण नहीं किया उसे एकदिन, एक रात में पूरा करने का हनुमानी प्रयास करते हैं उनके इस भागीरथी प्रयाससे रात की नींद, दिन का चैन पर्स का वजन उड जाता है। पैदा करने वालेमां-बाप से भी न डरने वाले छात्र परीक्षा के भय से भयभीत नजर आते है। साथियोंसे बिछुडने का गम, फेल होने पर लडकियों के बीच होने वाले संभावित बेइज्जतीके भय से घबराए हुए पढते नजर आते है।
हम लोगां को जैसे जवानी में और जाते-जाते बुढापे में ‘प्रेम-रोग‘ सताताहै। उसी तरह साल भर न पढने वालों को परीक्षा के समय ‘परीक्षा रोग‘ सताता है।इम्तिहान सिर पर आते ही लोग परीक्षा की तैयारी में जुट जाते हैं। ‘‘ कौचिंगक्लासों‘ में संख्या बढ जाती है। यहां वहां से दो तिहाई बहुमत प्राप्त करने की होडमें सांसद, विधायक, पार्षद, खींचने की तरह नोट्स प्राप्त करने की भाग-दौड शुरू
हो जाती है।
इस समय जिन छात्रों ने साल भर में पढाई, क्रिकेट खिलाडियों की तरह,गंभीर होकर न खेलने की तरह की हो वे भी परीक्षा के समय ‘सिरियस‘ नजर आतेहैं। जैसे वर्ल्ड कप क्रिकेट आते ही कोच, बोर्ड, खिलाडी, दर्शक सभी सजग होजाते है। इस समय सब मस्ती बन्द कर दी जाती है, पार्टियां स्थगित कर दी जाती
है। गोल मारकर फिल्मे देखना बंद हो जाती है। स्कूल-कॉलेज के मैदान क्रिकेटग्राउन्ड नजर नहीं आते है। कैम्पस के चारों तरफ छायी मौज-मस्ती का माहौलसचिन, धोनी के शून्य पर आऊट हो जाने की तरह शान्त नजर आता है।
इस समय क्लास बंक करने वाले छात्र, प्राक्सी हाजरी वाले छुपे रूस्तमछात्र भी गंभीरता के साथ बीस प्रश्नोत्तर लिये पढते नजर आते हैं। एक्जामिनेशन टैंशन‘ से ग्रस्त वेफिक्र रहे छात्र चिन्तित नजर आते हैं। चारों तरफचुनाव की तरह तैयारी की चर्चा रहती है। हैलो-हैलो का बिल बढ जाता हैं घरवाले खुश हो जाते हैं कि फोन पर पढाई हो रही है।
पॉंच साल में एक बार आने वाले चुनाव में जिस तरह मतदाताओं कीएकाएक पूछ बढ जाती है, उसी तरह परीक्षा के समय शिक्षकों की भी मांग, कीमत,
प्रतिष्ठित, डिमान्ड, वैल्यू, पूछताक्ष बढ जाती है। गाली देने वाले छात्र वोट ग्रहिताकी तरह पैर छूकर गुरूजन को सिर पर बैठाते हैं। जमकर आवभगत की जाती है।
वोट देने वालों की तरह सिगरेअ, शराब, कम्बल, तो नहीं बांटे जाते, लेकिन ‘मनी‘जरूर ऑफर की जाती है। मार्गदर्शन के नाम पर ‘चुनिन्दा प्रश्न‘ प्राप्त करने परअच्छी खासी रकम पेपर लीक करवाने पर खर्च की जाती है।
देश में ऐसी कोईकुर्सी नहीं जिसमें छेद न हो यह बात प्रमाणित की जाती हैं इस समय छात्रों द्वारापांच साल में एक बार जन समस्याओं की तरह ‘टॉपिक‘ समझे जाते है। शिक्षकों के
प्रति सम्मान की भावना बढ जाती है। वे गोविन्द से बडे नजर आने लगते हैं।
परीक्षा के समय भगवान के मंदिरों में भी भीड बढ जाती है। भगवान को भीग्यारह, इक्वायन, एक सौ एक का प्रसाद चढाने का लालच देकर पास करने कीमिन्नत् की जाती है। सोमवार को शंकर जी, मंगलवार को हनुमान जी,गुरूवार कोगणेश जी, शुक्रवार को दुर्गा जी के दरबार में हाजिरी लगाई जाती है। किसी भी
भगवान को रूष्ट कर फेल होने का चान्स नहीं लिया जाता हैं। यह बात अलग हैकि उनमें से अधिकांश छात्र बाद में भगवान पर फेल होने का दोष मढकर नास्तिक
हो जाते हैं।
इस समय छात्र जो पाठ्यक्रम साल भर में पूर्ण नहीं किया उसे एकदिन, एक रात में पूरा करने का हनुमानी प्रयास करते हैं उनके इस भागीरथी प्रयाससे रात की नींद, दिन का चैन पर्स का वजन उड जाता है। पैदा करने वालेमां-बाप से भी न डरने वाले छात्र परीक्षा के भय से भयभीत नजर आते है। साथियोंसे बिछुडने का गम, फेल होने पर लडकियों के बीच होने वाले संभावित बेइज्जतीके भय से घबराए हुए पढते नजर आते है।
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