Sunday, July 7, 2013

भगवान का व्यवसायीकरण

   भगवान का व्यवसायीकरण
                             हमारे देश में बडे मंदिरों में भगवान का व्यवसायीकरण कर दिया गया है।मंदिरांे में श्रद्धालुओं की बढती भीड, दर्शनार्थियों की अपार संख्या ने प्रबंधकों कोविशेष दर्शन का उपाय सुझाया है। जल्दी दर्शन चाहिए एक सौ एक रूपये कीटिकट कटाओ, नहीं तो मीलों लंबी लाइन में घंटों खडे रहो। ऐसी स्थिति मेंव्यवस्थापकों, ने अमीर और गरीब के बीच ‘विशेष दर्शन‘ की रेखा खींच दी है।                                    
                                                    अबगरीब व्यक्ति आसानी से देव दर्शन नहीं कर सकता है। जबकि अमीर आदमी एकसौ, एक रूपये की रसीद कटवाकर तुरंत देव दर्शन कर सकता है।हमारा देश नेताओं के भरोसे तो चल नहीं रहा है। भगवान भरोसे चल रहाहै। ऐसी स्थिति में भगवान, ईश्वर, ईश, अज के दरबार में दर्शनार्थियों , श्रद्धालुओं,भक्तजनों की भीड उमडती है, और एक दिन मंे हजारों की संख्या में लोग दर्शनकरने जाते है। 

                          श्रद्धालुओं की बढती हुई भीड को देख कर मंदिर संचालकांे ने ‘क्यूसिस्टम‘ पकडा है। भक्तजनों को लोहे के सीखचों में घेरकर लाईन में आने कोबाध्य किया जाता है।छह से आठ घंटे तक भक्तगणांे को परमात्मा के दर्शन में लग जाते हैं।उसके बाद भी मंदिर में अंदरपरमेश्वर के दर्शन व्यवस्थापक ढंग से करने नहीं देतेहैं। जैसे ही मंदिर में घुसत हैं चलो-चलो, हो गया, हटो-हटो, बढो-बढो की डांटके साथ जबरन आगे खिसका दिया जाता है। 

                                                 श्रद्धा-भक्ति से भरा सार्थक
दीन-दुनिया से परेशान भक्त, आस की प्यास में सूखता श्रद्धालु कुछ नहीं बोल
पाता है। ईश्वर के नाम पर खून का घूट पीकर रह जाता है।
भक्तजन को आदमी के दरबार और भगवान के दरबार में कुछ अन्तर नजर
नहीं आता हैं। बाहर भी नेतृत्वकर्ता के दर्शन दुर्लभ है। अंदर पालनहार को देखने
चक्षु तरस जाते हैं। एक बार भगवान के दरबार में ठोकर खाकर कई भक्तगण घर
में ही मूर्ति -फोटो लगाकर पूजा अर्चना करना उचित समझते हैं।

                        भगवान खुद वी.आई.पी. है। लेकिन उसके दरबार में भी बत्ती और आठ -दस सुरक्षा कर्मचारियों को देखते हुए याचकों को वी.आई.पी. बना दिया जाता है।क्या उनको देखकर भगवान भी डर जाता है ? और उसके अनुयायी, देखरेख कर्ताविशेष दर्शन की व्यवस्था करते हैं। हजारों लोग इस दर्शन को देखकर गाली देेतेहैं। सात पुश्तों को कोसते हैं, परन्तु ‘व्यवस्था‘ पर कोई फर्क नहीं पडता है।

                          देश के रईस, कुबेर, धर्माधिकारी गण, राजराज, जनेश्वर, नरेश को भगवानके विशेष दर्शन की छूट दी जाती है। एक हजार एक, पांच सौ एक, एक सौ एककी टिकट कटाओ, भीड़ से छुटकारा पाओ, घंटो लाईन लगने से बचो , विशेषटिकट कटाकर पलभर में भगवान के दर्शन करों। ऐसा कुछ दिन और चला तोयहां भी आरक्षण की मांग उठेगी और पांच धनपतियांे के बाद एक गरीबी रेखा केनीचे वाले को निशुल्क विशेष दर्शन की विशेष सुविधा उपलब्ध करानी पडेगी।
                               इस
बात पर सभी सर्वहारा वर्ग के खेलनहारांे का ध्यान नहीं गया हैं । संसद के एक
मिनट की कीमत पच्चीस हजार रूपये है। इस तरफ नेताओं का ध्यान भी नहीं गयाहै, नहीं तो लाखों रूपये खर्च करके इस बिंदु पर बहस भी हो सकती है।
विशेष दर्शन के साथ-साथ मंदिरांे में ही प्रसाद , भस्म, आरती, भोग आदि
सभी वस्तुएं विशेष दरों पर मिलती है। इक्कीस रूपये से लेकर एक हजार एक ,
तक की थाली आपको सजी-सजाई मिल जायेगी। उसके नीचे कोई प्रसाद की
थाली नहीं मिलती है। आपको अपनी जेब देखकर थाली बनवानी होगी। उससे
पूजन के बाद प्रसाद के रूप में आधा सामान वापिस मिलेगा बाकि भगवान को
खिला दिया जाता है।

                                लोग तो कहते हैं कि पीछे के रास्ते से नारियल, चिरौंजी,
अगरबत्ती आदि सामान पुनः विक्रय के लिए चला जाता है। कुछ तो सच्चाई है,
तभी तो आम आदमी भगवान पर आरोप लगाने की हिम्मत कर रहा है।
आप यदि, धनपति, पैसे वाले हैं तो आप पहले आकर विशेष अवसर पर
विशेष आरती कर सकते हैं। आपकी पोशाक विशेष अवसर पर भगवान को पहनाईजा सकती है। बस आप पैसा खर्च करते जाईये। भगवान, के व्यवस्थापकों को इसबात से कोई मतलब नहीं है कि वह धन, सफेद हो जाता है। यही लक्ष्मी की मायाहै लेकिन उस भक्त की बात पर विश्वास नहीं हो रहा है जिसने कहा कि भगवानके दरबार में सब एक हैं सबको भगवान एक नजर से देखता है। यदि ऐसा है तोफिर मंदिरों में अमीर गरीब की खाई क्यों खोदी जा रही है ? सबको एक ही लाइनमें लाकर दर्शन के लिए क्यों नहीं बाध्य किया जा रहा है।

                               ऐसी जगह पर होटल वाले भी खूब लूटपाट करते हैं। हजारों के कमरेबताते हैं, और सब्जी भाजी की तरह मोल-भाव करने पर सैंकडों में कमरा दे देतेहैं। सस्ती होने के कारण धर्मशालाओं में जगह आसानी से मिलती है। देश कीअधिकांश गरीब जनता को घर के बाहर धर्मशाला में ही शरण मिलती है।
                        टैक्सी वाले भी भाडा 1⁄4 ऊन का दून 1⁄2 बताते हैं। जिसको देखो वह भगवानके नाम पर लूट करता मिलता है। इस प्रकार भगवान से जुडी हर वस्तु का ऐसीजगह पर व्यवसायीकरण कर दिया गया है।

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