Sunday, July 7, 2013

हीरो बने जीरो , हिर्रो इन बनी विषकन्या [ hero became zero heroine became poison girl ]

हीरो बने जीरो , हिर्रो इन बनी विषकन्या
                                                   हमारी फिल्मों में खलनायिकाओं की परम्परा अब एकदम खत्म हो चली है।आज फिल्म जगत में ऐसी कोई भी अभिनेत्री नहीं है, जिसे खलनायिका का दर्जादिया जा सके। पहले हमारी हर फिल्मों में एक खलनायिका रहा करती थी,

                                                      कुलदीप कौर, ललिता पवार,शशिकला, पुतली आदि अनेक अभिनेत्रियों ने फिल्मोंमेंखलनायिकाओं के रूप में काम किया था, परन्तु बिन्दु के बाद ऐसी कोई अभिनेत्रीनहीं उभरी, जिसे खलनायिका कहा जाये।
फिल्मों में खत्म होती खलनायिकाओं की परम्परा का प्रमुख कारण है आजकी हिरोईनें , जो फिल्मों में कुछ भी करने को राजी है। जो काम पहले की हिरोईनेंमधुबाला, मीना कुमारी, वहीदा रहमान ने नहीं किया , वह काम आज की हिरोईनेंसहर्ष कर रही है।

                                                 आज हिरोईनें खलनायिकाओं की तरह कैबरे, डिस्को, देह प्रदर्शनबडी आसानी से कर रही है। उन्हें हाथ में शराब का गिलास लिए मुंह में सिगरेटका धुआं छोडते बडी आसानी से देखा जा सकता है। आज हिरोइनंे वक्त आने परछुरी, पिस्तौल, बंदूक चला रही हैं, डाकू भी बन रही है।हेमामालिनी जैसी अभिनेत्री फिल्म रामकली में डाकू बनी, श्रीदेवी-फिल्म‘डकैत‘ में डाकू बनी, फिल्मी कहानी फूलवती में तो रीता भादुडी फूलन देवी डकैततक बनी थी।

                                    राम तेरी गंगा मैली की हिट हिरोइन मंदाकिनी फिल्मी सिंहासन मेंविषकन्या बनी, जीनत अमान, पूनम ढिल्लौ, डाकू और हसीना फिल्म में डकैत बनीहैं। विश्व सुन्दरी ऐश्वर्या ने फिल्म खाकी में बुरी औरत की भूमिका निभाई है तथाकाजोल, मनीषा ,शिल्पा आदि ने आतंकवादी देशद्रोही आदि बुरी स्त्रियों की भूमिका
निभायी है।


                                                   हमारी फिल्मों में खलनायिका का काम , हिरोईनों के बीच मन-मुटाव पैदाकरना, विलेन के साथ साठं-गांठ रखना, कैबरे आदि से हीरों को कुछ समय केलिए अपनी तरफ आकर्षित करना था। आज यही काम हर फिल्म में प्रतिष्ठित
हिरोईनें कर रही है। खलनायिकाओं की जगह कुछ नृत्यांगनाऐं कलपना अ ̧यर,जोजनिल नीनादास , सिल्क स्मिता आदि ने ले ली है, जिनका काम फिल्मों में एकआध नृत्य करना रह गया है।खलनायिकाओं की परम्परा पुतली, शहजादी, माया
बैनर्जी कुलदीप कौर, शशिकला और अंत में बिन्दु के बाद आकर खत्म हो गई है।

                                             हम बिन्दु को फिल्म जगत की आखरी सफल खलनायिका मान सकते हैं।फिल्मों से खलनायिकाओं की खत्म होती परम्परा का कारण आज की देहप्रदर्शन करती, विषकन्या बनती हिरोइनें हैं, किन्तु इसके साथ और भी कई कारणहैं। जैसे हमारे यहां अब अधिकतर लडाई-झगडे वाली फिल्में बन रहीं हैं, जिसमें
खलनायक की तरफ ही ज्यादा ध्यान दिया जाता है। इसी तरह आज ‘‘एंग्री यंगमैन‘‘ इमेज वाली नायक प्रधान फिल्मों का जमाना है, जिसमें पूरी फिल्म नायक केचारों तरफ घूमती है। फिल्म की हिरोइन तक हीरो पर आश्रित रहती हैं। ऐसीस्थिति में खलनायिका को कोई पूछने वाला नहीं है।


                                           हमरी फिल्मों में जिस तरह आज खलनायिकाओं की परम्परा खत्म हो चुकीहै, उसी तरह से अब धीरे-धीरे कामेडियन भी गायब होते चले जा रहे है। एक
जमाना था, जब हमारी फिल्मों में दो-दो, तीन-तीन कामेडियन हुआ करते थे, परआज एक-आध कामेडियन भी बडी मुश्किल से दिखाई पडता है।फिल्मों में कामेडियनों के गायब होते चले जाने का कारण है आज के हीरोव खलनायिकाओं द्वारा कामेडी का किया जाना। आज का बडे से बडा हीरो अपनीउल-जलूल हरकतों, उछलकूद से दर्शकों को बडे आराम से हंसा रहा है। अमिताथबच्चन, धमेन्द्र, मिथुन, अभिषेक, विवेक, सलमान, आमीर, सैफ खान आदि प्रतिष्ठित
हीरो के समान कामेडियन भी नहीं हंसा सकते हैं आज फिल्म के हीरो ने जहांकामेडियनों की लुटिया डुबोई है, वहीं रही-सही कसर खलनायकों ने भी पूरी करदी है। खलनायक फिल्मों में बुरे काम तो कर ही रहे है। साथ में कामेडी भी खूबकर रहे हैं या यों कहिए की कामेडी के साथ-साथ खलनायकी कर रहे है। अमजदखान, कादर खान, शक्ति कपूर जैसे नामी खलनायक अपनी उटपटांग हरकतों ,
ऊल-जलूल, दोहरे संवादों द्वारा इतनी अच्छी कामेडी कर रहे हैं कि कामेडियनों कीकोई कमी नहीं अखरती है। खलनायकों द्वारा कामेडी की गई फिल्में हिम्मतवाला,स्वर्ग से सुंदर, मवाली आदि सुपर हिट हुई है।
                                         हमारी हर फिल्मों में हीरों व खलनायकों द्वारा कामेडी कराये जाने कीपरम्परा सी चल गई है। यही कारण है कि अब फिल्मों से कामेडियन गायब होतेचले जा रहे है। मुझे नहीं लगता कि जॉनीवाकर, मेहमूद, केष्टो मुखर्जी, असरानी,देवेन्द्र वर्मा ने जिस परम्परा को आगे बढाया था, उसे बीरबल, राकेश बेदी, राजेश
पुरी अशोक सर्राफ जैसे नए कामेडियन आगे बढा पायेंगे। केवल जानी लीवर,राजपाल यादव से ही कुछ उम्मीद की जा सकती है।


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