Sunday, July 7, 2013

होली holi

                                     होली holi
                          होली राग, रूप, रस , रंग, उत्सव, उमंग, उल्लास, उन्माद मौज-मस्ती,हंसी-खुशी का अनुपम , अद्भद, अविस्मरणीय त्यौहार है। इसमें रक्षा बंधन काप्रेम-त्याग, दीपावली की चमक-दमक, अपव्यय , दशहरा की अच्छाई पर बुराई कीजीत,शक्ति पूजा आदि सभी त्यौहारों का समिश्रण है। इसलिए इसे ‘फलों का राजा‘आम की तरह ‘त्यौहारों का राजा‘ कहा जा सकता है।

                       होली के रंग में भंग तो है ही और भंग की तरंग मंे बुरा न मानो होली,अपना इन्द्रधनुषी रंग दिखाती है। पूरा दिन मधु प्रेमी करोडपति के गाने पर ‘खईकेपान बनारस वाला‘ की धुन पर नाचते है। और उसके पिता की मधुशाला कागुणगान करते है। केक न काटने वालों का भी ‘‘ हैप्पी न्यू ईयर‘‘ इसी त्यौहार केबाद प्रारंभ होने वाले मास से प्रारंभ होता है । होली का त्यौहार व्यक्तियांे में नईखुशियां, नया उल्लास ,नया उत्साह नई उमंग , नई चेतना , नई स्फूर्ति भरता है।
                        होली का त्यौहार प्रेम का त्यौहार हैं। इस दिन सब लोग द्वेष भूलकर मिलते है।और चुटकी भर गुलाल-अबीर में गंगा में पाप धोने की तरह सब पिछली कटुताभुला देते हैं। दसों दिशाएं, चौदह लोक , नवरस और सतरंग में डूब जाते हैं।


                          इस त्यौहार में प्रेम की मार है, प्रेम की भरमार है। प्रेम के कई रंगपिचकारियों से फूटते है। ढोलक की थाप से कई प्रेमरस गूंजते हैं। ‘ मिस्टर
वेलेन्टाइन‘ ‘होली‘ के दिन भारत नहीं आये थे, नहीं तो वे भी विदेशों में ‘वेलेन्टाइनडे‘ की जगह ‘होली‘ की वकालत करते और सारी दुनिया होली के रंग में डूबीनजर आती ।
                                                 लेकिन हमारे देशी, विदेशी देशभक्त होली के त्यौहार को वेलेन्टाइनडे की नजर से नहीं देख पा रहे हैं, इसलिए उनहें इसमें प्रेमरस नजर नहीं आ रहाहै। जबकि इतिहास गवाह है कि कितने ही प्रेम दीवाने होली के आस में बैठकर ,मिलन की याद में विरह के गीत गाकर अपने दिन काटा करते थे।

                                                                होली में रस रंगों की छूट रहती है कि वे किसी भी रंग में अपनी राधा कोरंग सकते हैं। बस उनमें लठ की मार सहने की क्षमता बृज की गोपियों की तरहहोनी चाहिए। हरी झंडी मिलने पर वे अधर को अधर में न रखकर सही जगह होलीके रंग में रंग सकते हैं। होली का दिन ‘रसिकों‘ का दिन रहता है। इस दिन वेअपने साल भर की हसरत पूरी करते हैं। जिनअवयवों को वे दूर से साल के तीनसौ पैसठ दिन ताका करते थे, उन्हें छूकर असली होने की दिलासा अपने दिल कोदिलवाते हैं।

                     इस दिन देहरंग, रूपरंग, रसरंग, अंगरस, खजुराहों रस, लोलिता रस,वात्सायन रस , लेडिज चर्टलीज लवर रस , हनी रस का रसास्वादन रसिक करतेहैं।

                     हमारे देश मेंखुशी और गम दोनोंमदिरा, वीरा, मद्य केमें हारने का गम हैसमाज में व्याप्त दोहरे मापदंड की तरह शराब का सेवनमें समान रूप् से किया जाता है। होली के दिन मदमस्त कोउपयोग-उपभोग की छूट रहती है। क्यों न रहे ? जब चुनावतो हाला ? जीतने का अविश्वास है तो हाला ? जब हर
समस्या का हल ‘हाला‘ है तो ऐसे में होली बिना ‘हाला पिये‘ के कैसे रह सकती
है।


              हुडदंगों को बिना शराब के होली की कल्पना कोरी लगती है। जैसे नेता
बिना देश अधूरा लगता है। इसलिए इस दिन चोरी-छिपे मदमस्त होने की छूट
रहती है। हालांकि बाजार में इसकी कानूनी रूप से बिक्री बंद रहती है, लेकिन पीछेके गेट से जो हमेशा सामने के गेट से बडा होता है। शराब खुलेआम मिलती है
और माघ में कुंभ स्नान की तरह इस दिन अमृताप्रेमी इसमें स्नान करते हैं। इसलिएसडक पर कोई हाला प्रेमी के मुंह में कोई चौपाया होली खेलते मिल जाए तो इसेहोली के रंग में भूल जाना चाहिए।


                 होली को पोली कर कई लोग अपने अनदेखे अंगों को याद करते हैं औरउसके आकर-प्रकार-व्यवहार से लोगों को परिचित कराते हैं। इसदिन ‘सत्य मेवजयते‘ वालों की तरह खुलेआम, निरंतर, सतत, अबाध रूप से गाली बकने की छूटरहती है। इस दिन आप किसी को भी गाली बक सकते हैं, अपने पैदा करने वालेमां-बाप को पैदा करने पर कोस सकते हैं, चम्मच को चम्मचा कह सकते हैं औरपागल को पागल बता सकते हैं।

                                                               जिनको डर, दबाव, इज्जत के कराण तीन सौ पैसठ दिन गालियां नहीं देपाते थे, उन्हें भी खुलकर गाली बक सकते हो। जिसको चाहकर भी गाली नहीं देपाते हो, उन्हें भी उनके न निभाए गये वादे, आश्वासनों, वचन, प्रतिज्ञा, भंग के लिए,रिश्तेदारों , सहित याद कर सकते हो। होली में सब चलता है। जब पांच सालमें एक बार शक्ल भी नहीं दिखाई दी तो एक दिन की गाली कैसे सुनाई देजायेगी। सुन भी ले तो होली में सब माफ हैं।


                                                           होली में गाली बकने के लिए नशे में रहना बहुत जरूरी है। हर दिन तोहोश में रहते हैं, इसलिए होश की बात नहीं कर पाते हैं। लेकिन इस दिन बेहोंशहोकर होश की बात छाती ठोंककर दिलेरी से कर सकते हैं। कोई बुरा मानकर भीबुरा नहीं कर सकता है।

                                            सत्य का कोई उत्तर , जवाब, प्रतिउत्तर , अर्द्धसत्य नहीं हैं सॉच को कभीऑच भी नहीं है। थोडी तकलीफ जरूर है तो तपाकर व्यक्ति को सोेने के समानकंचन कर देती है, लेकिन हम उसी दौर में टूट जाते हैं। पता नहीं कैसे सृजन कादुख सृजनकर्ता झेलता है।


                                                                   हमारे देश में लाखों भक्त प्रहलाद हैं, करोडांे हिरणकश्यप, होलिका हैऔर एक भी नरसिंह अवतार नहीं है। इस कारण देश के लाखों प्रहलाद , गरीबी,बेकारी, भुखमरी, अशिक्षा, अनीति की आग में जलकर भस्म हो रहे हैं। होलिका कीजादुई, करिश्माई, वरदानी चादरका कोई पता नहीं है। कई भक्त प्रहलाद तोस्कूल की शक्ल भी नहीं देख पाते हैं और अशिक्षा अपराध के अंधकार में फंसकरबाल मजदूर , बाल अपराधी बनकर अंधेरी कोठरियों में अपना जीवन काट देते हैं।


                                                                      हम देश में धर्म पर अधर्म की जीत का त्यौहार होली प्रति वर्ष मानते हैं,लेकिन सही होली तो हम तब मनायेंगे जब अपने नौनिहालों को अच्छी शिक्षा देंगे,नीति का पाठ पढायेंगे, उन्हें गरीबी, भुखमरी में भी शान से जीना सिखायेंगे। आजउन्हें धर्म की रक्षक होलिका की उडी हुई जादुई चादर ढूंढकर उडाने की जरूरतहैं, तभी होली सार्थक होगी और भक्त प्रहलाद व नरसिंह अवतार की मेहनत सफलहो पायेगी।

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