गरीब-गरीब-गरीब कहा है
, गरीबी वह स्थिति है जब लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति नहींकर पाते हैं। भारत में इसे लाईबायॅंड द्वारा दी गई ‘गरीबी की रेखा‘ से जाना जाताहै। इसके अनुसार यदि 2300 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से जो भी व्यक्ति कमउपयोग करते हैं, वह गरीबी की रेखा के नीचे रहते हैं।
भारतीय योजना आयोग नेग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति के लिए 2400 कैलोरी व शहरी क्षेत्र 2100 कैलोरी केआधार पर ‘गरीबी रेखा‘ को परिभाषित किया है। इसी आधार पर गांवों में 51प्रतिशत तथा शहरों में 40 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापनकर रही हैं। भारत में गरीबी के कारण जनसंख्या वृद्धि दर, बेरोजगारी, असमानता
अर्द्धविकास आदि को माना गया है।
जहां लोग गरीबी का आर्थिक पक्ष ही देखते हैवे मात्र इतना जानते हैं कि लोगों की मजदूरी कम है, महंगाई के कारण उनकागुजारा नहीं हो पाता है। उनकी न्यूनतम आवश्यकताओं भोजन, पीने का पानी ,मकान आदि पर्याप्त नहीं है, शिक्षा, चिकित्सा, नौकरी की आवश्कताएं अपर्याप्त हैकिन्तु वे गरीबी का दूसरा पक्ष नहीं देखते हैं जो कि हमारी दूषित सामाजिकमान्यताओं, धार्मिक अंधविश्वासों भाग्यवाद, नशाखोरी , दहेज प्रथा आदि से जुडाहुआ है।
हम जानते हैं कि देश में लोगों की मजदूरी कम है, उस पर उन्हें जनसंख्यावृद्धि के कारण परिवार के अधिक सदस्यों का पालन पोषण करना पडा है। इसकेअलावा उसे अनेक धार्मिक अंधविश्वासों का सामना करना पडता हैं। उसे हर माहपडने वाले धार्मिक त्यौहारों पर व्यय करना पडता है। उसके अलावा कभी उसेमुंडन पर और कभी नामकरण पर खर्च करना पडता है।
विभिन्न त्यौहारों पर भेंड,
बकरी, मुर्गियां आदि की बलि चढाना आदि ऐसे अनेक धार्मिक कार्य हैं, जिन पर
अनावश्यक रूप से व्यय करना पडता है। वह समझता है कि जितना धार्मिक कार्योमें व्यय करेंगे उतनी ही बरकत होगी, किन्तु वह यह नहीं जानता है कि सदियों सेपीढियां इन धार्मिक कार्यो पर व्यय करती चली आ रही है, किनतु उनकी स्थितिज्यों की त्यों है और इस तरह वह स्वयं भी अपनी गरीबी को बढावा देता रहा है।गरीबी की आय तो सीमित होती है, किन्तु उनके व्यय उससे अधिक रहतेहैं।
अधिकतर लोगांे को देखा गया है कि वे नशाखोरी करते हैं, भांॅग , गांजा, शराबका नियमित सेवन करते हैं। चाहे उनके घर में चूल्हा जले या न जले। प्रायः देखागया है कि दो से दस -बीस रूपये तक ये लोग शराब आदि पर व्यय कर देते है।इसके लिए उनकी मजदूरी पर्याप्त नहीं होती है, वे कर्ज आदि लेने से भी नहींचूकते है। इस तरह वे पूरे माह की तनख्वाह नशाखोरी आदि में व्यय कर देते हैं,और ऊपर से कर्ज में डूबे रहते हैं, फिर सरकार व समाज को अपनी गरीबी के
लिए कौसते है।
सरकार जब गरीबों की उन्नति के लिए उन्हें धंधे , रिक्शे, ठेले आदि केलिए ऋण देती है वह कुछ दिनों तो ठीक से काम करते हैं फिर प्राप्त राशि कोअनुत्पादक कार्यों में व्यय कर देते हैं , प्राप्त राशि को अपनी लडकी की शादी मेंदहेज में लगाते हैं, नहीं तो जुए शराब आदि में खर्च कर देंगे। अन्यथा अपने लिएजेवर, कपडे आदि अनुत्पादक वस्तुएं खरीद लेंगे और इस तरह प्राप्त राशि काअपव्यय कर देंगे, उनकी गरीबी ज्यों कि त्यों बनी रहती है और वह कर्ज में डूबजाते हैं।
इसलिए सरकार को उन्हें नगद राशि न देकर कुछ उद्योग संबंधीउपकरण देना चाहिए व उन पर कडा नियंत्रण रखना चाहिए। इस तरह स्पष्ट हैकि उनकी दूषित मनोवृत्ति गरीबी बढाने में सहायक हैं। जब कभी भी सरकार,समाज सेवी संस्था आदि उनमें सुधार लाना चाहती है तो उनकी दूषित मानसिकताबाधा पहंुचाती है।स्पष्ट है कि गरीबी वर्ग जितना धार्मिक सामाजिक कार्यो में अपव्यय करताहै। वह नशाखोरी में जितना पैसा पानी की तरह बहाता है, उतना कोई राज पत्रितअधिकारी भी इन पर इतना खर्च नहीं करता है अर्थात् गरीबी के कारण उनकेधार्मिक अंधविश्वास दूषित मनोवृत्ति , नशाखोरी की आदतें हैं, जिन पर उनकानियंत्रण नहीं है ओर वे दोष समाज व सरकार को देते हैं।
वैसे यह माननाआवश्यक है कि देश में गरीबी के कारण जनसंख्या वृद्धि, बेकारी, अशिक्षा, कृषि परनिर्भरता महंगाई आदि हैं, किन्तु ये आर्थिक कारण ऐसे हैं, जिन पर कुछ नियंत्रणकिया जा सकता है व सरकार कर भी रही है। किनतु गरीबी के जो दूसरे कारणहै, जिनका मनुष्य से प्रत्यक्ष संबंध है, उन पर उसका नियंत्रण नहीं है।
वह सिर सेलेकर पांव तक धार्मिक अंध विश्वासों, भाग्यवाद, नशाखोरी , दूषित मनोवृत्ति,सामाजिक कुरीतियों आदि में डूबा हुआ है और गरीबी का जामा स्वयं ही मजबूतीसे ओढे हुए हैं, अतः सरकार या समाज जब तक इन अनुछुए पहलुओं पर ध्याननहीं देगी, कितना भी कुछ प्रयतन कर लें इस देश से गरीबी नहीं हटेगी।
, गरीबी वह स्थिति है जब लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति नहींकर पाते हैं। भारत में इसे लाईबायॅंड द्वारा दी गई ‘गरीबी की रेखा‘ से जाना जाताहै। इसके अनुसार यदि 2300 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से जो भी व्यक्ति कमउपयोग करते हैं, वह गरीबी की रेखा के नीचे रहते हैं।
भारतीय योजना आयोग नेग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति के लिए 2400 कैलोरी व शहरी क्षेत्र 2100 कैलोरी केआधार पर ‘गरीबी रेखा‘ को परिभाषित किया है। इसी आधार पर गांवों में 51प्रतिशत तथा शहरों में 40 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापनकर रही हैं। भारत में गरीबी के कारण जनसंख्या वृद्धि दर, बेरोजगारी, असमानता
अर्द्धविकास आदि को माना गया है।
जहां लोग गरीबी का आर्थिक पक्ष ही देखते हैवे मात्र इतना जानते हैं कि लोगों की मजदूरी कम है, महंगाई के कारण उनकागुजारा नहीं हो पाता है। उनकी न्यूनतम आवश्यकताओं भोजन, पीने का पानी ,मकान आदि पर्याप्त नहीं है, शिक्षा, चिकित्सा, नौकरी की आवश्कताएं अपर्याप्त हैकिन्तु वे गरीबी का दूसरा पक्ष नहीं देखते हैं जो कि हमारी दूषित सामाजिकमान्यताओं, धार्मिक अंधविश्वासों भाग्यवाद, नशाखोरी , दहेज प्रथा आदि से जुडाहुआ है।
हम जानते हैं कि देश में लोगों की मजदूरी कम है, उस पर उन्हें जनसंख्यावृद्धि के कारण परिवार के अधिक सदस्यों का पालन पोषण करना पडा है। इसकेअलावा उसे अनेक धार्मिक अंधविश्वासों का सामना करना पडता हैं। उसे हर माहपडने वाले धार्मिक त्यौहारों पर व्यय करना पडता है। उसके अलावा कभी उसेमुंडन पर और कभी नामकरण पर खर्च करना पडता है।
विभिन्न त्यौहारों पर भेंड,
बकरी, मुर्गियां आदि की बलि चढाना आदि ऐसे अनेक धार्मिक कार्य हैं, जिन पर
अनावश्यक रूप से व्यय करना पडता है। वह समझता है कि जितना धार्मिक कार्योमें व्यय करेंगे उतनी ही बरकत होगी, किन्तु वह यह नहीं जानता है कि सदियों सेपीढियां इन धार्मिक कार्यो पर व्यय करती चली आ रही है, किनतु उनकी स्थितिज्यों की त्यों है और इस तरह वह स्वयं भी अपनी गरीबी को बढावा देता रहा है।गरीबी की आय तो सीमित होती है, किन्तु उनके व्यय उससे अधिक रहतेहैं।
अधिकतर लोगांे को देखा गया है कि वे नशाखोरी करते हैं, भांॅग , गांजा, शराबका नियमित सेवन करते हैं। चाहे उनके घर में चूल्हा जले या न जले। प्रायः देखागया है कि दो से दस -बीस रूपये तक ये लोग शराब आदि पर व्यय कर देते है।इसके लिए उनकी मजदूरी पर्याप्त नहीं होती है, वे कर्ज आदि लेने से भी नहींचूकते है। इस तरह वे पूरे माह की तनख्वाह नशाखोरी आदि में व्यय कर देते हैं,और ऊपर से कर्ज में डूबे रहते हैं, फिर सरकार व समाज को अपनी गरीबी के
लिए कौसते है।
सरकार जब गरीबों की उन्नति के लिए उन्हें धंधे , रिक्शे, ठेले आदि केलिए ऋण देती है वह कुछ दिनों तो ठीक से काम करते हैं फिर प्राप्त राशि कोअनुत्पादक कार्यों में व्यय कर देते हैं , प्राप्त राशि को अपनी लडकी की शादी मेंदहेज में लगाते हैं, नहीं तो जुए शराब आदि में खर्च कर देंगे। अन्यथा अपने लिएजेवर, कपडे आदि अनुत्पादक वस्तुएं खरीद लेंगे और इस तरह प्राप्त राशि काअपव्यय कर देंगे, उनकी गरीबी ज्यों कि त्यों बनी रहती है और वह कर्ज में डूबजाते हैं।
इसलिए सरकार को उन्हें नगद राशि न देकर कुछ उद्योग संबंधीउपकरण देना चाहिए व उन पर कडा नियंत्रण रखना चाहिए। इस तरह स्पष्ट हैकि उनकी दूषित मनोवृत्ति गरीबी बढाने में सहायक हैं। जब कभी भी सरकार,समाज सेवी संस्था आदि उनमें सुधार लाना चाहती है तो उनकी दूषित मानसिकताबाधा पहंुचाती है।स्पष्ट है कि गरीबी वर्ग जितना धार्मिक सामाजिक कार्यो में अपव्यय करताहै। वह नशाखोरी में जितना पैसा पानी की तरह बहाता है, उतना कोई राज पत्रितअधिकारी भी इन पर इतना खर्च नहीं करता है अर्थात् गरीबी के कारण उनकेधार्मिक अंधविश्वास दूषित मनोवृत्ति , नशाखोरी की आदतें हैं, जिन पर उनकानियंत्रण नहीं है ओर वे दोष समाज व सरकार को देते हैं।
वैसे यह माननाआवश्यक है कि देश में गरीबी के कारण जनसंख्या वृद्धि, बेकारी, अशिक्षा, कृषि परनिर्भरता महंगाई आदि हैं, किन्तु ये आर्थिक कारण ऐसे हैं, जिन पर कुछ नियंत्रणकिया जा सकता है व सरकार कर भी रही है। किनतु गरीबी के जो दूसरे कारणहै, जिनका मनुष्य से प्रत्यक्ष संबंध है, उन पर उसका नियंत्रण नहीं है।
वह सिर सेलेकर पांव तक धार्मिक अंध विश्वासों, भाग्यवाद, नशाखोरी , दूषित मनोवृत्ति,सामाजिक कुरीतियों आदि में डूबा हुआ है और गरीबी का जामा स्वयं ही मजबूतीसे ओढे हुए हैं, अतः सरकार या समाज जब तक इन अनुछुए पहलुओं पर ध्याननहीं देगी, कितना भी कुछ प्रयतन कर लें इस देश से गरीबी नहीं हटेगी।
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