गु न् डा-टै क् स
समाज में एक नम्बर के नाम पर आम जनता के ऊपर कई टैक्स हैं, जिनकेवह नाम भी नहीं जानती और न ही समय पर अदा कर पाने के कारण वह हमेशाउनकी कर्जदार बनी रहती है। लेकिन अन्डर वर्ल्ड में दो नम्बर वालों के ऊपर जानबचाने के रूप् में लगने वाले गैर कानूनी सुरक्षा टैक्स से सभी परिचित होंगे जो‘पेटी‘ के रूप में भाई लोगों को ‘हवाला‘ के जरिए सुरक्षा एजेन्सियों के रहते हुएभी दिया जाता हैं
ऐसा नहीं है कि आम आदमी भी इनसे बचा है। आम आदमी सेभी साल के 365 दिन पडने वाले तीज त्यौहारों के चन्दे के नाम पर गैरसरकारीअनाधिकृत, अप्राधिकृत, रकम, ‘गुन्डा टैक्स‘ के रूप में वसूली जाती है। त्यौहारआते ही चंदाखोरों की चांदी हो जाती है। और बडी तेजी से अवैध चन्दा वसूली काधंधा आरंभ कर दिया जाता हैं ।
चन्दाखोंरों में अधिकांश बेरोजगार, बेकार, बिगडैल, कामचोर, आलसी, दादाटाइप के नवयुवक अधेड शामिल रहते है। जिमें से अधिकांश भूलवश गलती सेसुरक्षा साधनों का प्रयोग समय पर न कर पाने के कारण देश की आबादी बढानेवाले लोग शामिल रहते है। जो देश, घर , धरती, परिवार, समाज पर बोझ मानेजाते हैं। ऐसे ही चन्दाखोर गली, मोहल्ले, में टोलियां बनाकर दरवेशों की तरहजबदस्ती यातायात चौराहे की तरह का नजारा चन्दा वसूलते दिखाते हैं।
चन्दा खोर दम मारकर चन्दा मांगते हैं। ये लोग पहले से मनमुताबिक चन्देकी राशि रसीद में भरकर रखते हैं, वह राशि प्राप्त न होने पर लडते, झगडते,अकडते, ऐंठते, टर्राते हैं। खाकी वर्दी धारियों की तरह देख लेने की धमकी दीजाती है। कम राशि होने पर जमीन पर फेंकर उलटा नंगे लुच्चे होने का उलाहनादिया जाता है। यदि इन्हें कोई भिखारी समझकर दरवाजा न खोले तो लात घूसोंका इस्तेमाल किया जाता है।
लोगों को चुनाव की तरह एक नहीं कई चन्दा टोलियों, संगठनों, गुटोंपार्टियों का सामना करना पडता हैं। ये लोग पास, पडौस, मोहल्ले के हों तो ठीकहै, परन्तु दूर-दराज के कभी न देखे गये, सुने गये स्थानों के रहते है। जो अपने मुहल्ले के नाम पर जबरन चन्दा वसूली करते हैं। रास्ते में भी साइकिल, टंक, कार,स्कूटर, चालकों, को यातायात वालों की तरह तंग किया जाता है। न देने पर गाडियों के कांच फोडे जाते हैं।
चन्दाखोर धर्म, भगवान, आस्था, संस्कृति, सभ्यता के नाम पर एकत्र की गईराशि का जमकर दुरपयोग करते हैं। शराब, भांग, गांजा, स्मैक, सेवन में भी राशिउडाई जाती हैं । नशे मंे हुडदंग मचाकर भारतीय सभ्यता की संस्कृति की धज्जियांउडाकर ‘‘चन्दाखोर संस्कृति‘‘ का नंगा नाच दिखाया जाता है। चन्दा राशि से जोकपडे परदे, मां-बाप नहीं खरीद पाये उनकी खरीद की जाती है। पिकनिक मनाईजाती है।, महानगरों में जाकर कैबरे देखा जाता है, आप कमाई या बाप कमाई सेजो तीर नहीं मारा गया वो चन्दाकमाई से मारा जाता है।
हमारी धार्मिक मानसिकता का असमाजिक अवांछित तत्व गलत फायदाउठाते हैं और जबरन चन्दा वसूली कर जन जीवन को अस्त-व्यस्त करते हैं। आजराष्टंीय, एकता, अखंडता, आतंकवाद, धार्मिक उन्माद, पंथ कट्टरता की तरह अवैधचंदा वसूली और चन्दाखौरी राष्टंीय समस्या बन गई है। उसे ‘‘ जबरन चन्दावसूली निवारण अधिनियम‘‘ बनाकर गैर कानूनी घोषित किया जाना चाहिए। सरकारकी अनुमति से ही गंभीर राष्टंीय संकट, बाढ, तूफान, भूकम्प, गंभीर बीमारी के समयकेवल मान्यता प्राप्त समाज सेवी संस्थाओं से चन्दा प्राप्त करने की न कि वसूलनेकी अनुमति दी जानी चाहिए।
प्रतिवर्ष समारोह के नाम पर जो करोडों रूपये चन्दे से एकत्र कर पानी कीतरह टैंट, बिजली सजावट में बहा दिये जाते हैं उन्हें बेकारी, बीमारी, भूखमरी, कोमिटाने में उपयोग मंे लाना चाहिए, ऐसा नहीं है कि अधिकांश चन्दा एकत्र करनेवाले चन्दाखोर होते हैं देश की गली-गली में स्थित धार्मिक पूजा स्थल इस बात केप्रतीक हैं कि चनदे से प्राप्त राशि का सदुपयोग किया जाता है। लेकिन सौ मेंसे एक दो के द्वारा ही चन्दा राशि का उपयोग लोक हित में किया जाता है।
हमारे देश में गली-गली, कोने-कोने , कण-कण में इतने ज्यादा भगवान केमंदिर व्याप्त हैं कि आज मंदिर बनवाने के नाम पर चन्दा वसूली नहीं करनी चाहिएबल्कि हमें पुराने मंदिरों के संरक्षण, संवर्धन के लिए चन्दे से एकत्र राशि कासदउपयोग करना चाहिए जो हम नहीं करते हैं। इसी कारण पुराने मंदिर,ऐतिहासिक इमारतें खाक में मिलती जा रही हैं।
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