Friday, June 28, 2013

अस्पताल या पाच सितारा होटल

                अस्पताल या पाच सितारा होटल
                                         हमारे देश में आजकल ऐसे अस्पतालों की कमी नहीं है जो अस्पताल कम
और होटल ज्यादा नजर आते है। इन अस्पतालों मेंतीन तारा और पांच सिताराहोटलों की तरह सभी सुविधायें मरीजों को दी जाती है। ऐसे अस्पतालों में कमरेदेखकर कोई भी होटल के कमरे समझकर भ्रम में पड सकता है। उनमें वहीसुख-सुविधाएं दी जाती हैं, जो होटलों मंे रहती है। वातानुकूलित कमरे रहते हैं,अच्छे साफ-सुथरे इटालियन मार्बल से ढके सफेद संगमरमर के कमरे बनाये जातेहै।


                                इन अस्पतालों में आपके आराम की सौ प्रतिशत गारंटी रहती है, जान कीगारंटी कम रहती है। आप जितने दिन भी रहेंगे, उतने दिन प्रति मिनट के हिसाबसे आपका बिल, टैक्सी के भाडे की तरह बढता जायेगा और वह छः अंकों तक भीआराम से पहुच सकता है। इसी कारण हम बीमारियों के इलाज के नाम पर लोगोंके मकान, दुकान, बिकते, कई घर बर्बाद होते सुनते है। एक बार की बीमारी में
आदमी चारों धाम की तीर्थ यात्रा कर आता है।


                                              इन अस्पतालों में इलाज कराना आम आदमी के बस की बात नहीं है।
आपको जेब गवाही दे रही हो या न दे रही हो ये आपको जबरदस्ती काश्मीर सेकन्याकुमारी तक का सफर प्रथम श्रेणी में करवा देंगे। उसके बाद आप कहीं से भीपैसा लाकर इनका बिल भरिये, पैसा नहीं है तो बीमार बनकर अस्पताल मंे ही पैसोंका इंतजाम होने तक जबरदस्ती भर्ती रहिये।

                                      बडे अस्पतालों में छोटे डॉक्टरों की रिपोर्ट और टेस्ट कचरे में डाल दिया
जाता है और मरीज को पहले से पचासों टेस्ट खून, कफ, टट्टी, पेशाब आदि केकराये रहता है, उसे देखना भी ये गंवारा नहीं समझते हैं और जबर्दस्ती अपने यहांभर्ती करके अपनी लेबोटंरीज में टेस्ट करवाते हैं और उसका दस गुना पैसा वसूलते
है।


                                                     ऐसे अस्पतालों में एक मरीज को देखने दिन में दस डॉक्टर आते है। सबडॉक्टर अपने-अपने फील्ड में विशेषज्ञ रहते है। और सबके कमरे के प्रवेश कीफीस अलग-अलग रहती है। जो मरीज दर्शन के साथ उसके बिल में जुड जातीहै। यही हाल नर्साें का रहता है। दिन में तीन पाली में नर्सें बदलती है और उनकाभी चार्ज लिया जाता है। कुछ अलग सुविधा चाहिए तो वह भी शुल्क सहित मिलजाती है।


                                         आजकल बडे अस्पताल, अस्पताल कम रकम हडपू मशीन ज्यादा है। इतना
खर्च करने पर भी इलाज सही हो जायेगा इसकी कोई गारंटी इलेक्टंॉनिक सामानोंकी तरह नहीं रहती है। आपके पेट में रूई छूट जायेगी या कैची नहीं रह जायेगी।आपकी सही बीमारी पकड ली जायेगी। इस बात की कोई भी सही संभावना नहींरह जाती है। परन्तु आपको घर से ज्यादा आराम मिलेगा, अच्छे से रखा जायेगा
इसका जरूर ध्यान रखा जाता है। यही कारण है कि हमारे देश के बडे-बडे नेताजब काम से थक जाते हैं तो जाकर किसी बडे अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं ।
जहां आम जनता प्रवेश कर उनके आराम में खलल नहीं डाल सकती है।


                                                आपने किसी भी बडे नेता को सरकारी अस्पताल में इलाज कराते नहीं देखाहोगा, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में यह सब सुविधाऐं नहीं रहती है। सरकारीअस्पताल तो हम जैसे गरीब लोगों के लिए है। जिनके पास इलाज कराने के लिएपैसे नहीं है। बडे लोग सरकारी अस्पताल में इलाज करा भी नहीं सकते है। वे वहां
की गंदगी सहन नहीं कर सकते । पलंग के ऊपर, पलंग के नीचे, बरामदे में, छतमें, सीढी में जहां देखो वहां पडे बीमार खांसते -थूकते मरीजों को नहीं देख सकतेहै। सरकारी अस्पतालों में इतने मरीज एक दिन में आते हैं कि उनके भर्ती करनेकी जगह कम पड जाती हे। और भगवान भरोसे मरीज जहां जगह मिलती है, वहांपर रहकर वे डॉक्टरों , कम्पाउंडरों की डॉट-फटकार खाते इलाज कराते है।


                                           जनता के अस्पतालों में भी आम जनता को कम खर्च नहीं करना पडताहै। यहां पर भी उन्हें दवायें अपने पैसों से खरीद कर लानी पडती है। डॉक्टरों केप्रायवेट -नर्सिंग होमों में जाकर चैक-अप करवाना पडता है। महंगी दवायें, टेस्टआपको सही इलाज के लिए अपने प्रायवेट ‘तीन तारा-पांच सितारा‘ अस्पताल में
भर्ती होने की सलाह दे सकता है।


                                         इन पांच सितारा अस्पतालों और हमारे अपने अस्पतालों में इलाज ,
डॉक्टरों , सुविधाओं, कर्मचारियों साफ-सफाई में जमीन-आसमान का अंतर है।आपने इन बडे अस्पतालों में हमारे अस्पतालों की तरह वार्ड वॉय , नर्सो , जमादारोंको मरीजों के पीछे भागते हुए नहीं देखा होगा। अस्पतालों में कोई मरा हो, गिराहो, टांग टूटी हो, हाथ में फैक्चर हो, इन सब बातों से उनको कोई मतलब नहींरहता हैं आप जब भी इलाज कराकर अस्पताल में कंगाल होकर घर जाये तो थोडाबहुत कुछ जो भी बचा हो, वह भी आप नर्स , वार्ड बॉय, स्वीपर, जमादार कोबख्शीश के तौर पर देते जाये। ये लोग आपसे अधिकार स्वरूप पैसे मांगेंगे किआपको लगेगा कि उन्हें तनख्वाह नहीं मिलती है। वे इस तरह बातें करते हैं किलगता है कि उन्होंने जो लोक सेवा के दौरान पद-कर्तव्य में सेवा की , वह सेवानहीं, बल्कि अहसान किया था और उस उपकार के बदले में ये लोग होटलों के
बैरों की तरह टिप मांग रहे हैं।


                                             जच्चा-बच्चा वार्ड में सबसे ज्यादा लडाई इसी बात की होती है । लडके
होने पर न्यूनतम गणेश जी के चंदे की तरह एक सौ एक रूपये देने पडते हैं औरलडकी होने पर जो मर्जी हो देने की छूट रहती है। क्योंकि मरीज लडकी होने परपहले से ही उसकी शादी-ब्याह करने दहेज देने के नाम पर दुखी रहता है इसलिएउसे मनमर्जी से बख्शीश देने की छूट रहती है। लेकिन उस पर भी आप कितना भलडकी के हाने पर गम मनाये, आपको कुछ-न-कुछ तो खुशखबरी की फीस देनीपडती है। यह नजारा आपको बडे अस्पतालों में सेठ, महाजनों, उद्योग-पतियों केअस्पतालों में देखने को नहीं मिलता है।


                                                 आम आदमी का प्रवेश तो इन पांच सितारा अस्पतालों में वर्जित है और वहवहां पर बिछी कालीन लगी महंगी मूर्तियां, पेण्टिंग, जगमगाते फव्वारे , भव्यझाडफानूस, सैकडों लाइटों को देखकर प्रवेश करने की हिम्मत भी नहीं कर सकताहै। इलाज कराना तो बहुत दूर की बात है उसकी हिम्मत अस्पताल के बाहर खडी
सब मॉडलों की महंगी कार और लिफ्ट से प्रवेशकरते सूटधारियों को देखकरजवाब दे जायेगी। वह तो बस टी. वी. फिल्मों में ही इन्हें देखकर इनकी विलासिता
का अंदाजा लगा सकता है।

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