Friday, June 28, 2013

विज्ञापन मे नारी या नारी मे विज्ञापन


                                          विज्ञापन मे नारी या नारी मे   विज्ञापन
                                                 आज नारी प्रचार का साधन हो गई है। किसी भी वस्तु का ऐसा कोई भीविज्ञापन नजर नहीं आयेगा, जिसमें नारी का उपयोग न किया गया हो। आपटेलीविजन, देखिये, पत्र-पत्रिकाओं के पन्ने पलटाये , आपको प्रायः विज्ञापनों में मुंहबिचकाते, आंख मारते, आकर्षक स्तन दिखाते, किसी न किसी रूप में जरूर नारीकी तस्वीर नजर आयेगी। आजकल शत-प्रतिशत विज्ञापनों में नारी की देह प्रदर्शनकरते हुए अश्लीलता व फूहडता को बढावा देते हुए आसानी से देखा जा सकताहै। विज्ञानों में बढती नारी हिस्सेदारी आम बात हो गई है।

                                                           विज्ञापनों में बढती नारी हिस्सेदारी को देखकर एक प्रश्न दिमाग में कौंधताहै, कि नारी को ही क्यों प्रचार का माध्यम बनाया जा रहा है ? इसका सीधा साउत्तर मुझे यही नजर आता है कि सदियों से नारी के प्रति पुरूषों का चला आ रहाआकर्षण ही इसके लिए जिम्मेदार है। जिसके लिए वह चांद-सितारे तोड लाने सेलेकर जमाने की बात करने को राजी रहा है। नारी आकर्षण के पीछे ही पुरूषों नेमहाभारत जैसे युद्ध लडे हैं। यह नारी आकर्षण ही था, जिसके कारण सारा यूरोपक्लिोपेटंा के इशारे पर नाचता था। आज का विज्ञापनदाता भी इसी नारी आकर्षणका फायदा उठा रहा है। वह अपनी हर वस्तु बेचने में नारी का उपयोग कर रहाहै।


                                                        आज का व्यापारी वर्ग यह बात बहुत अच्छी तरह से जानता है कि अगरपुरूषों की वस्तुओं में नारी होगी तो उस पर अधिक अच्छा प्रभाव पडेगा। इसी तरहनारी से वस्तुओं का प्रचार करने में व्यापारी वर्ग को सबसे बडा फायदा यह है किदेह प्रदर्शन कराकर विज्ञापनों में एक नया आकर्षण पैदा कर लेते हैं, जिससेज्यादा-से ज्यादा उपभोक्ता का ध्यान अपनी वस्तु की ओर खींचा जा सकताहै। यही कारण है कि आज विज्ञापनों में नारी की भागीदारी बहुत बढ गई है।

                                         भारतीय नारी का विज्ञापनों के प्रति आकर्षित होने का कारण उसेआर्थिक रूप से स्वतंत्र होना भी रहा है। वह भी पश्चिमी नारी की तरह नारीस्वतंत्रता के मार्ग पर चलकर आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहती है। इसके लिएउसने पश्चिमी नारी की नकल पर ग्लैमरमय, दौलत, शौहरत वाला मार्ग अपनाया है,जिसमें भरपूर जिस्म की नुमाईश करके अल्प समय में आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कीजा सकती है।


                                                                               आज विज्ञापनों में खुले आम नारी देह का शोषण हो रहा है। विज्ञापनदाताउसे विज्ञापनों के नाम पर जरा सी पज्जी व खुली ब्रा पहना कर सैक्सी पोज मेंखडा कर देते हैं । स्वीमिंग पूल में नहलाते हुए, साबुन से शरीर रगडते हुएविज्ञापन देना आज आम बात हो गई है। पानी में नहाते हुए, तालाब में गोता लगातेहुए विज्ञापन दिलवाने में प्रचारकों में होड सी लगी हुई है।
अब सवाल यह उठता है कि विज्ञापनों में नारी देह प्रदर्शन के लिए किसे
दोषी ठहराया जाये ।तो इसका सीधा सा जवाब यही है कि सबसे ज्यादा दोषी नारीहै जो नारी स्वतंत्रता के नाम पर अपरम्परागत मांगों पर चलकर जिस्म की नुमाईशकर रही है, लेकिन नारी के साथ-साथ विज्ञापनदाता व उपभोक्ता वर्ग भी कमजिम्मेदार नहीं है। जो विज्ञापनों में नारी देह प्रदर्शन को बढावा दे रहे हैं, लेकिनवह उतने दोषी नहीं है, जितनी स्वयं नारी दोषी है।


                                                                                         आज का युग प्रतिस्पर्था का युग है। आज उद्योग-धंधों में कडी प्रतिस्पर्धा है,जिसमें अपने को बनाये रखने के लिए अपने माल का भी मार्केट बनाये रखनापडता है। इसके लिए व्यापारी वर्ग विज्ञापनों का सहारा लेते हैं, जिससे ज्यादा सेज्यादा लोगों को अपनी वस्तु से परिचित व प्रभावित किया जा सके। इसके लिएविज्ञापनदाता फिल्म निर्माताओं की नकल करते है। जिस तरह एक फिल्म कानिर्माता अपनी फिल्म को हिट करने के लिए ‘सैक्स‘ का सहारा लेता है , उसी तरहविज्ञापनदाता भी माल में आकर्षण पैदा करके नारी देह का सहारा लेता है। इसमेंदोष नारी का है जो देह प्रदर्शन करती है। अगर वह मना कर दे तो कोई भीविज्ञापन दाता जबर्दस्ती उससे जिस्म की नुमाइश नहीं करा सकता है।


                                                विज्ञापनों में नारी देह प्रदर्शन के लिए आज का फैशन परस्त उपभोक्ता वर्गभी कम जिम्मेदार नहीं है जो आंखें बंद किये इन विज्ञापनों को बढावा दे रहा है,जिस तरह फिल्मों में अश्लीलता को फिल्मी दर्शकों ने बढावा दिया है, उसी तरहउपभोक्ताओं ने उन विज्ञापनदाताओं को सर पर चढाया है।

                                                      अगर आज काउपभोक्ता वर्ग नारी देह प्रदर्शन करते विज्ञापनों में विज्ञपित वस्तुओं का बहिष्कारकर दे ंतो विज्ञापनों में अश्लीलता को बढावा नहीं मिल सकता है, लेकिन उपभोक्तावर्ग दोनों के बीच में ‘हरिश्चंद्र‘ बना बैठा है। एक तरफ वह विज्ञापनों में नारी देहप्रदर्शन को गलत मान रहा है, तो दूसरी तरफ वह विज्ञापनदाताओं के माल कीखपत कर उन्हें और ऐसे विज्ञापन बनाने को उकसा रहा है। उपभोक्ताओं को इसदोहरी मनःस्थिति से उबरना होगा। उन्हें खुलकर विज्ञापनों में नारी देह प्रदर्शन काविरोध करना होगा, तभी इस समस्या से निपटा जा सकता है।

                                                 इसी तरहविज्ञापनदाताओं को भी अपनी दूषित मानसिकता त्यागनी होगी, उन्हें विज्ञापनों मेंनारी की सही तस्वीर पेश करनी होगी। इसके साथ ही सबसे जयादा जागरूकनारी का होना होगा। उसे इस ‘प्रदर्शन‘ को त्यागना होगा। जिसमें ज्यादा सेजयादा शरीर का प्रदर्शन , चंद पैसों के खातिर करना पडता है। विज्ञापन बुरे नहींहै। आज के समय की प्रमुख आवश्यकता है, लेकिन बिना नारी देह प्रदर्शन के भीविज्ञापन प्रचारित किये जा सकते है। इस बात को विज्ञापनदाता, नारी व उपभोक्तावर्ग तीनों को नहीं भूलना चाहिए।


No comments: