जिला बदल के हादसे
आपने जिला बदल के बारे में तो बहुत सुना होगा लेकिन उसके बाद केहादसों को कभी देखा नहीं होगा। यदि देखना है तो उस अधिकारी को देखिएजिसका अभी-अभी तबादला, स्थानांतरण, टंांसफर डेरा-बदल, दाना-पानी उठनेका आदेश हुआ है। तबादले के बाद अधिकारी की वही हालत होती है जो चुनाव मेंहार जाने के बाद कार्यकारी सरकार की होती है।
तबादला आदेश आते ही अधिनस्थों की आंखों में चमक आ जाती हैं। वे तडीपार का लिफाफा देखते ही हुक्म अर्दली शुरू कर देते हैं। चुनाव में नेताओं कीतरह वोट मांगने, मक्खन पालिस करने पर नई बहू के नखरे के साथ काम करतेहैं। घर के सामन को भी ढीला-ढाला बांधते है।
तबादला के बाद बडे बाबू, अधिकारी, को बीमा अभिकर्ता के समान, पालिसीले चुके ग्राहक को भूलने की तरह भूल जाते हैं। जो सुबह-दोपहर , शाम तीनसमय जुगाली करते थे। एक बार भी नहीं पूछते है। छोटा बाबू जो भूले भटके दिनमें एक बार पान खिला दिया करता था। बिलकुल चूना लगा देता है। टाइपिस्ट केभी हाथ दुखने लगते हैं। चपरासी भी बेचारा काम करते-करते थक गया होता हैऔर जैसे ही उसकी बुद्धि में यह बात घुसती है कि साहब बेकाम हो गये है वह भीनिष्काम हो जाता है।
तबादले की खबर जंगल में आग की तरह फैलती है। जान पहचान वालेअजनबियों की तरह व्यवहार करने लग जाते हैं। छोटे-छोटे कर्जदार , दूध,पेपरवाला अधिकारी से जाने से पहले पैसे लेने का तकाजा महाजनों की तरह करनेलग जाते हैं। एक से एक मेढक की तरह रूप रंग बदलते चेहरे सामने आते हैं।जो पहले अधिकारी का अपने बच्चांे से ज्यादा ध्यान रखते थे। अपनी पत्नी सेज्यादा अधिकारी से डरते थे। वहीं सबसे ज्यादा ठेस पहुंचाते हैं।
तबादले के बाद सारे शहर मंे अधिकारी के नाम परमूंछ ऊपर किए घूमतेअसली रिश्तेदार को तो छोडो काम निकलवाऊ नकली रिश्तेदार भी अपना असलीरंग दिखाते हैं सबसे पहले ये लोग बिना सामने आये तलाक-तलाक-तलाक करकेसारे सामाजिक बंधन तोड देते हैं। बिदाई की रस्म अदायगी, घर में बैठे-बैठे टंकको नाके के बाहर जाते देखकर करते हैं।
तबादला के बाद समान ले जाने की चिंता सताती है और टंक वाला ‘बदली‘के बाद किसी काम की चीज न होने के कारण उनके इन भाकड में समान लेजाता है। उसे समझ में आ जाता है कि इनकी अब शहर में कोई भी नहीं सुनेगा।अपना काम, महाकाम वाले मतलब के साथी जो अपना उल्लू सीधा करनेअधिकारी के तलुए चाटते थे। जिनका काम ‘जी हजूरी‘ करके सिर्फ कामनिकलवाना था। ऐसे अवसरवादी ‘गंजेडी यार किसके दम लगाये खिसके‘ वालीकहावत चरितार्थ करते हैं। तबादला के बाद इनके दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं ये आंखेंफेर लेते हैं। पहले इनके मुंह से फूल झडते थे। डेरा उठने के बाद आग उगलनेलगते है।
तबादले के बाद अधिकारी का जादू अधीनस्थों के सिर पर चढकर नहींबोलता है। अधिकारी के पेट में जो ‘साहबियत‘ की गैस भरी होती है। दो-चारसाथियों की दुलत्तियों के साथ ही हवा हो जाती है। सब की आस्था विपक्ष कीतरह कुर्सी की तरफ समर्पित हो जाती हैं। वे सब उस नये अधिकारी के लिएसमर्पित हो जाते हैं जो अभी आया नहीं है और उनके दिये हादसों को पुरानेस्टेशन पर झेलकर उन्हें कोस रहा होता है।
तबादला के बाद इस बात का बोध होता है कि लोग सिर्फ पद की इज्जतकरते हैं। कुर्सी को सिर झुकाते हैं। काम निकलवाने हीराबाई की तरह नाचते हैं।अवसरवाद, स्वार्थ , मौकापरस्ती की बिसात बिछाते हैं । हाड मांस का आदमीउनके लिये बडा नहीं है। उसकी मेहनत , लगन, कार्यक्षमता, कार्यकुशलता, बडीनहीं है। उसका पद बडा है। कुर्सी पूज्य हैं। स्वार्थ भगवान है।
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