Friday, June 28, 2013

‘ लोग क्या कहेंगे ?

                          ‘ लोग क्या कहेंगे ?
                      ‘‘ लोग क्या कहेंगे ?‘‘ हमारे समाज का कॉमन, कर्णप्रिय, रोज सुनेजाने वाला, लोकप्रिय शब्द है। जब देखो तब हम कोई न कोई बनावटीपन,चमक-दमक, विरोधाभास, ढोंग, पाखंड, खोखलापन के पीछे इन शब्दों को सुनतेआ रहे हैं।

                                                 व्यक्ति ‘लोग क्या कहेंगे‘ के चक्कर में सामर्थ्य से अधिक खर्च करते हैं।तडक-भडक में रईसों को मात कर देते हैं। लोक, लाज की शर्म में अपना सबकुछ गिरवी रखकर शादी ब्याह, जन्मदिन, तेरहवीं करते हैं।

                                               ‘‘जाये लाख रहे साख‘‘ की धुन पर अचल संपत्ति गिरवी रख देते हैं, 10प्रतिशत प्रतिमाह ब्याज की दर पर साहूकारों, महाजनों, से कर्ज लेते हैं औरजिन्दगी भर कर्ज अदा करते-करते मर जाते हैं। विरासत में वारसानों के लिएपैतृक संपत्ति न छोडकर पैतृक कर्ज छोडकर जाते हैं।

                                   भले ही पडोस में गरीब भूखा मर जाये,लोग मृत्यु भोज ‘‘ लोग क्या कहेंगे‘‘ के चक्करसूचना क्रांति के इस दौर में कोई जरूरत नहींसमाज के परिचितों को बुलाकर खाना खिलायाके गुजरने की जानकारी हो जाये। लेकिन आजकर देते है।

                                      गाय बिना चारा मर जाये, लेकिनमें अवश्य कराते हैं, जिसकी आजहैं पहले व्यक्ति के मरने पर गांव,जाता था, ताकि लोगों को वयक्तियह काम अखबार वाले आसानी सेआत्मा शांति के लिए ‘गंगा और गया‘ है, तेरह ब्राहृणों को भोजन कराकर,गाय को चारा पानी देकर, गोधन दान करके, इस कर्ज से मुक्ति मिल सकती है,

                              लेकिन समाज, रिश्तेदार, नातेदार क्या कहेंगे सब खिल्ली उडायेंगे इसी कारणअस्सी के आमद में नब्बे का खर्च करते हैं।दकियानूसी, रूढिवादी, कट्टरपंथी विचारों के कारण ‘लोग क्या कहेंगे‘ केचक्कर में हम कहीं के नहीं रह जाते हैं। जिन लोगों को दिखाने काम करते हैं,

                                वही लोग कर्ज से लद जाने के बाद गाली बकते हैं और ‘घर मंे नहीं दाने, बुढियाचली भुनाने, घर में नहीं राशन, सारे मोहल्ले को नयौता जैसे व्यंग्य बाणों से कोसतेहैं। जो पहले पीठ थपथपाते थे, वहीं बाद में पीछे-पीछे गाली देते हैं।

                                      हमारे देश में शादी-ब्याह में ‘‘लोग क्या कहेंगे‘‘ के चक्कर में कर्ज लेकरसामर्थ्य से अधिक खर्च किया जाता है। दहेज जानबूझकर दिया जाता है। विचारकिया जाता है कि ‘लोग क्या कहेंगे‘ लडकी को कुछ नहीं दिया, जैसे पैदा कियाथा वैसे ही डोली में बिठा दिया। इस चक्कर में शादी-ब्याह घर बेचकर भीकरतेहै। जबकि समाज में सामूहिक विवाह होते हैं, लोग उन्हें गरीबीकीनिशानी मानकरलोक, लाज, शर्म के चक्कर में, उन्हें ताक पर, रखकर, उनकी उपेक्षा करते हैं।


                                    लडकी जैसे ही बडी होती है, उसे पैरों पर खडे होने नहीं दिया जाता हैऔर कहीं घर से भाग गई तो ‘‘ लोग क्या कहेंगे‘‘ की कल्पना में उसकाबालविवाह, अनमेल विवाह कर दिया जाता है।

                                                      ‘‘ लोग क्या कहेंगे‘‘ के चक्कर में हम आज समाज में चकाचौंध देखते हैं,लेकिन उसके पीछे का अंधेरा देखने लायक होता हैं लोग बनावटी जिन्दगी, ‘‘लोगक्या कहेंगे‘‘ के चक्कर में जीते हैं और वास्तविक जिन्दगी चमक-दमक में गिरवीरख देते हैं। अपनी कमजोरियों, गलतियों को छिपाने को कृत्रिमता का सहारा लेतेहैं और बनावटीपन का ऐसा ताना-बाना बुनते हैं कि गरीबी, बेकारी, बेईमानी,चोर-बजारी के जाल में फंसकर खुद को भूल जाते हैं। उनके आचार-विचार,रहन-सहन, बातचीत, चरित्र-व्यवहार में बनावटीपन भर जाता है। मूल निर्मलस्वच्छ छवि धूमिल हो जाती है।

                             ‘‘ लोग क्या कहेंगे‘‘ के चक्कर में लोग ज्यादा पैसे कमाने लग जाते हैं औरअपराधी बन जाते है। कल्पना की उडान भरते-भरते धरती के रसातल में समाजाते है। कालगर्ल, बार गर्ल इसी बनावटीपन की देन है।

                                  भारी भीड मंे किसी विषय का ज्ञान न होने पर उस पर बोलना विद्वानकहलाने वालों की आदत होती है, लेकिन गाडी बहुत जल्दी पटरी से उतर जाती हैऔर ‘‘ थोथा चना बाजे घना‘‘ वाली बात साबित होती है। डींग हांककर कुछ लोगोंको आकर्षित किया जा सकता हैं, लेकिन स्थायी छवि नहीं बनायी जा सकती है।

                                        हम पहनावे में भी ‘‘ लोग क्या कहेंगे‘‘ के चक्कर में वही दिखावापन देखते हैं।कितने घरों में कपडे के लिए बच्चे अनशन, भूख हडताल करते है। मां, पिता की,पिता मां की , चोरी से कपडे बच्चों को दिलवाकर लाते है।

                                              इस ‘‘ लोग क्या कहेंगे‘‘ के चक्कर में लोगों की चाल-ढाल बदल जाती है।लोग वास्तविक जिंदगी भूलकर बनावटी जिन्दगी जीते हैं और बनावट की क्षणभंगुरता में ही नष्ट हो जाते हैं। इसलिए जितनी चादर हो, उतना ही पांव पसारनाचाहिए,‘‘ लोग क्या कहेंगे‘‘ की लोक, लाज, शर्म से बचना चाहिए, नही ंतो ‘‘ अपनीलाज गवाई के घर-घर मांगे भीख वाली बात होती है।


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