Monday, June 24, 2013

ज्ञान का कूडादान


                            ज्ञान का  कूडादान

                                हमारे देश में अखबार, समाचार पत्र, रसाला से ताजी और बासी चीज कोईनहीं हैं। जब तक पढते नहीं हैं, तब तक उसकी कीमत बहुत होती हैं, लेकिन जबहम पढ लेते हैं तो वह कूडे के ढेर में शमिल हो जाता है और उसे हम कबाडी कोरद्दी के भाव में पुराने टूटे-फूटे, कटे-पिटे समान के साथ बेच देते है।

                                          अखबार पढने के लिए घरों में संघर्ष होते हैं जिसकी सबसे जयादा चलती हैवही सबसे पहले अखबार पढता हैं उसके बाद अन्य बलशाली सदस्यों का नंबरआता है। अखबार पढने वाले भी एक से एक लोग देखने को मिलते हेैं। पहले पन्नेसे लेकर आखिरी लाइन तक अखबार बांचते हैं, उनकी नजर से कोई खबर चूकनहीं पाती है। कुछ लोग सिर्फ दिलचस्प खबरें पढते है। कुछ खेल की तो कुछराजनीति की पढकर छोड देते हैं।

                                                अखबारों में आजकल ज्ञान-विज्ञान, नीतिशास्त्र, नेता दर्शन ज्यादा रहता है।शीर्षक वाचन, फोटो दर्शन, हेड लाइन के बाद अखबार बासी लगने लगता हैं जबसे घरों में टेलीविजन आया है, तब से खबरें पुरानी लगने लगीं हैं और विज्ञापनों सेढके अखबारों में खबरे ढूंढना भी अच्छे नेता तलाशने की तरह मुश्किल काम लगताहै।

                                      अखबार वालों में भी आजकल होड चल रही है। फिल्मी दुनिया की तरहकौन नंबर एक है, इसी का झगडा हमेशा चलता रहता है। उपभोक्ताओं से विज्ञापनपाने , वितरण संख्या को लेकर रोज आंकडे बाजी देखने को मिलती है।अखबार घर में ही पढना अच्छा रहता हैं। यदि भूल से रेलगाडी में ले लियातो समझ लो कोई भी यात्री आपको पेपर पूरा पढने नहीं देगा और नही आप पूरापेपर घर ले जा पायेंगे। सभी लोग एक-एक करके पन्ने पढने के लिए ले लेंगे औरअखबार संयुक्त परिवार की तरह तितर-बितर हो जायेगा।

                                               अखबार के बहुत से फायदे हैं। पढने के बाद अखबार को थाली के नीचेचादर में दाग लगने से बचाने के लिए बिछाया जा सकता है, तबादले में पैकिंग केकाम आ सकता है, सिगडी-चूल्हा जलाने ईंधन के रूप में उपयोग में ला सकते है।घर में छोआ बच्चा हो तो भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।

                                                   अखबार ज्ञान-विज्ञान से भरे होते हैं तथा सामान्य ज्ञान के सर्वश्रेष्ठ स्रोतहोते है। इसके बाद भी हम पढने के बाद उन्हें कूडे में शामिल करके ज्ञान काकूडादान बना देते हैं। ऐसे में कचरे के ऊपर बैठी ज्ञान की देवी मां सरस्वती क्यासोचती होगी यह प्रश्न विचार करने योग्य है।

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