Sunday, June 23, 2013

निंदक नियरै राखिये vyangya umeshgupta

संत कबीरदास तो ‘‘ निंदक नियरै राखिये‘कह गये, लेकिन उनका
आम जिंदगी में धोबी, दर्जी, बढई, गाडी सुधारने वाले मिस्त्रीयों से पाला नहीं पडाथा नही ंतो वे भी इनका नाम निंदक के साथ जोड जाते।

धोबी के यहां आप अपने कपडे धोने डालिये, वह कहेगा शाम को ले जाना।शाम को कहेगा कि , भट्टी नहीं लग पायी है, कल घर पहुंचा दूंगा। आप घर मेंदूसरे दिन इंतजार करते रहिए वह नहीं आयेगा। फिर आप अगले दिन जाये तोकहेगा कि कल ‘बदली‘ थी न ? इसलिए भट्टी नहीं लगायी कल पक्का ले जानाऔर इसके बाद फिर आपको कपडे दे दें तो आप मानिए कि वह दिन आपके लिएबहुत अच्छा है और आप लॉटरी खरीद सकते हैं।

                                        यही बात आपके साथ इस्त्री करने वालों द्वारा दोहराई जाती है और ज्यादाजल्दी करो तो आपको किसी दूसरे के कपडे भी पहनने के लिए वह पकडा सकताहै, लेकिन वह आपकी कोई भी बात सुनने के लिए तैयार नहीं होगा।नववर्ष, वेलेन्टाइन डे और खासकर शादी-ब्याह के समय आपने कपडे दियेतो सूट तो आपको मिलना नहीं है। निश्चय ही वह धोने वाला, प्रेस करने वाला
पहनकर जायेगा, पार्टी अटैण्ड करके आयेगा, उसमें दाल, दही चावल के दागलगाकर आयेगा, उसके बाद बडे जतन से धोकर आपको देगा। इसके पहले चाहेआपकी गाडी छूअ जाये, घोडा बिदक जाये, प्रेमिका भाग जाये, पार्टी बिगड जायेेपर आपको कपडे मिलना मुश्किल हैंे।

                                                         स्कूटर, कार, मोटर साइकिल सुधारने वालों से भी यही अनुभव प्राप्त होगा।हमारे मैकेनिक भी किसी से कम नहीं है। काले, कलूचे, मैले, कपडे पहने दोनों
जेबों में बीडियोें की तरह नोट खोंसे हुए ये लोग भले ही ज्यादा पढे-लिखें न हो,लेकिन कारगुजारी में किसी नेता से कम नहीं होते हैं। यदि आप गाडी छोडकरचले गये तो समय पर गाडी नहीं मिलेगी, उसमें जो खराबी आप बता रहे हैं, वह नबनकर कुछ दूसरी ही निकलेगी और आप मजदूरी कम देने वाले हैं तो अच्छा
खासा पार्ट पुर्जा आपको बदलना भी पड सकता है। यदि आप बेशर्मों की तरह पुर्जाअपने साथ नहीं ले गये तो वह जरूर किसी दूसरे जान-पहचान वाले की गाडी मेंडाल दिया जायेगा और आपकी बकाया मजदूरी बैंक के चक्रवृद्धि ब्याज सहितवसूली जायेगी।

                                                 यदि सर्विसिंग के लिए, साफ-सफाई के लिए गाडी दी जाती है तो केवल
पानी की तेज बौछार डालकर आपको बिना आईल, पानी, हवा, चैकिंग के गाडीजल्दी से पूरे न किये गये काम के कारण समय पर मिल जायेगी, लेकिन यदिआपने भूले से गाडी, आंख, नाक, कान की डैंटिंग, पेन्टिंग, शैडिंग, रंग रोगन केलिए दी है तो आपको जल्दी मिलना उसी तरह मुश्किल है, जैसे भारतीयओलम्पिक दल को पदक मिलना मुश्किल हो जाता हैं।आप बीबी के मायके जाने के बाद ससुराल आने के इंतजार की बांअ जोहतेरहे, किस्मत पर रोते रहिए, तो बीबी के मायके से आने के बाद और फिर से मायके
जाने की तैयारी के समय गाडी मिल जाये, नहीं तो राधा की तरह कृष्ण काइंतजार करते रहे, गाडी, बीबी दोनों के लिए विरह के गीत गाते रहिए, तभी आपकोगाडी मिलेगी।

                                        हमारे देश के क्रिकेटरों जो ‘‘ हम किसी से कम नहीं ‘‘ का नारा देते हमारे
नेताओं को मुंह चिढा रहे हैं। उसी तरह दर्जी, टेलर, बढई, धोबी भी इन गाडी
सुधारने वालों से किसी भी मामले में कम नजर नहीं आते हैं दर्जी के यहां आप
कपडे डालिये सारे शहर का चक्कर लगभग 40-50 किलोमीटर नहीं लगवा लेगा,
तब तक आपको कपडे नहीं देगा। पहले तो नाप लेगा, फिर सात दिन बाद
बुलायेगा, इसके बाद आप जायेंगे तो कहेगा काम बहुत था अभी कटिंग नहीं हुई हैं
फिर सात दिन बाद की डैट देगा। उसके बाद जायेंगे तो कहेगा, कपडे तो कट
गये हैं, सिलना बाकी है। फिर सात दिन का समय देगा। इसके बाद जायेंगे तो
कहेगा बन तो गये हैं, तुम बीच में नहीं आये, फिटिंग देखनी थी, एक बार टेस्ट ले
लेता हूं अच्छा होगा। उल्टे तुम्हीं पर गुस्सा होगा। इसके बाद बडी मुश्किल से
आपको कपडे बनाकर देगा, उस के बाद आप सूटेड-बूटेड दिख सकते हैं।
बढई महाराज भी किसी से कम नहीं हैं। इन कारपेंटरों के चक्करों में
पडकर भी आपके पागल होने की नौबत आ सकती हैं। आपने भूल से बना बनाया
फर्नीचर नहीं लिया और मजबूती तथा असली सागौन के लोभ-लालच में फर्नीचर
बनाना तय किया है तो समझ लो कि बजट तो डबल होगा, साथ ही साथ बढई के
चक्कर लगाते-लगाते आपको हाई ब्लड प्रेशर हो सकता है।


पहले सात दिन तो वह आपके डिजाइन छांटने में खा जायेगा, पहले बना
बनाया फर्नीचर दिखायेगा,उसके बाद पहले से बनाये गये फर्नीचर की बाबा आदम
के जमाने की फोटो दिखायेगा। फिर विदेशी केटलॉक और उसी डिजाइन को
जयादा जोर देगा जो वह पहले कई बार बना चुका होगा। सिर्फ लकडी आपकी
जेब के अनुसार पतली-मोटी हो सकती हैं । डिजाइन पसंद करने के बाद लकडी
की डिजाइनानुसार खरीदी होगी। उसके बाद धीरे-धीरे ताजमहल की तरह आपके
सोफा, डाइनिंग, संेटर टेबल , दीवान का बनना शुरू होगा।


जब तक वह बनकर तैयार होगा, तब तक आप छिंदवाडा से जबलपुर का
सफर अपनी स्कूटर से कर चुके होंगें इसके बाद भी पुनः मैच फिक्सिंग की गारंटी
की तरह यह गारंटी नहीं होगी कि अंदर के भागों में असली लकडी डाली गई है
और सामरिक महत्व के सौदों की तरह कुछ बचाया नहीं गया है। घर में फर्नीचर
बनाने का ठेका बढई लेगा तो भी आपको समय पर फर्नीचर बनकर नहीं मिलेगा।
वह काम फंसाकर आपके घर को कचराघर बनाकर दूसरा काम ले लेगा और आप
इंतजार करते रहिए, जब तक तीसरा काम नहीं मिल जाता है, तब तक आपका
काम पूरा नहीं करेगा। उसके बाद पॉलिश का सिरदर्द अलग से रहता है, जिसका
खर्च बनवायी से कम नहीं होगा।

गरम मसाले की तरह बीस तरह का सामान इस हिदायत के साथ पॉलिश
के लिए बतायेगा कि बाजार की पॉलिश में आज के नेताओं की तरह चमक नहीं
है। बाजारू पालिश असली नहीं है और उसके बाद, पॉलिश बनाने में आपको
फर्नीचर के बनवाई के बराबर खर्च करना पडेगा, उसके बाद फर्नीचर नेताओं के
भाग्य की तरह चमकेगा।

यही कारण है कि महात्मा गांधी ने स्वावलंबन की शिक्षा दी थी और
स्वावलंबी बनने के लिये प्रेरित किया था। हमारे शिक्षाविद भी इसी कारण देश में
तकनीक शिक्षा के विकास पर जोर दे रहे हैं यदि देश में तकनीकी शिक्षा प्रारंभिक
स्तर से दी जाये तो देश में बेकारी, बेरोजगारी कम होगी। लोगों को काम-धंधा
मिलेगा। गरीबी, भुखमरी कम होगी, परन्तु इसके बाद भी हमारे उपरोक्त हीरों
सुधरने वाले नहीं है और हम अपना काम-धंधा छोडकर इनका काम करने वाले भी
नहीं हैं, इसलिए इनसे काम लेने से जो आनंद प्राप्त होता है, वही सुख भोगने
लायक हैं।

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