फिल्मो मे भगवान उर्फ डाक्टर
हमारी फिल्मों में भगवान डॉक्टरों की तरह कार्य करता है। जब कोई फिल्मी
पात्र गंभीर रूप से घायल हो जाता है, तब उसे असली एम.बी.बी.एस. डॉक्टर के
पास न ले जाकर मंदिर अर्थात् भगवान के दवाखाने में ले जाया जाता है, जहां पर
मरीज के शुभचिंतक भगवान के गुण गाते हैं और भगवान कुशल डॉक्टरों की तरह
मरीज को कुछ ही क्षण में ठीक कर देते है।
अपने फिल्मों में देखा होगा कि जब फिल्म का मुख्य पात्र बहुत गंभीर रूप
से घायल हो जाता है या कंेसर, दमा, हृदय रोग जैसी असाध्य बीमारी अपने अंतिम
चरण में पहुच जाती है, तब मरीज के घर वाले उसे भगवान के सजे-सजाये मंदिर
ंमें ले जाते हैं और उनसे उस मरीज को ठीक करने की मिन्नत करते हैं, वे कुछ
इस ढंग से मिन्नत मांगते हैं कि ‘हे भगवान तेरे से आज तक हमने कुछ नहीं मांगा,
आज मांग रहे हैं। अगर तू मेरा काम कर देगा तो ठीक, अन्यथा तेरे पर से मेरा
विश्वास उठा जायेगा।‘‘ इस प्रकार ठोस शुरूआत करते हुए मां अपने बच्चे का
जीवन, बीबी अपने पति का सुहाग और बाप अपने बेटे , प्रेमिका अपने प्रेमी की
जान भगवान से मांगती है।
फिल्मों में भगवान उन्हें निराश नहीं करता है, भले ही वास्तविक जिंदगी में
लोगों को निराश कर दें लेकिन फिल्मी पात्रों को तो भगवान कभी भी निराश नहीं
करता हैं । वह फिल्मों में एक कुशल डॉक्टर की तरह कार्य करता है। सब रोगों
का विशेषज्ञ रहता है, उसमें बाल रोग, पैथालाजिस्ट, गायानोकालोजिस्ट , कुशल
सर्जन आदि सभी विशेषज्ञों के गुण मौजूद रहते है। वह एक कुशल सर्जन की तरह
छुरा, चाकू, तलवार, गोली आदि से गंभीर रूप से घायल मरीज को चुटकी भर में
ठीक कर देता है। घायल मरीज को भगवान की मूर्ति के सामने लिटा दिया जाता
है। और मरीज के घर वाले जो शोर से गाते बजाते हैं। भगवान का मंदिर हिलने
लगता है। ऐसा लगता है जैसे भूकंप आ गया है। उसके कुछ क्षण बाद ही घंटों से
निस्तेज पडा मरीज एकदम चंगा होकर उठ बैठता है। उसके कुछ क्षण बाद ही घ्
ांटों से निस्तेज पडा मरीज एकदम चंगा होकर उठ बैठता है। उसका आपरेशन
भगवान बिना ऑक्सीजन, ग्लूकोज, छुरा, चाकू, चीर-फाड आदि के ऐसे ही सम्पन्न
कर देते हैं।
आपने देखा होगा कि फिल्म के हीरो की पत्नी प्रसव पीडा से बुरी तरह
तडप रही होती है और उसके कमरे के बाहर खडा फिल्म का हीरो हाथ जोडकर
भगवान से प्रार्थना करता है और फिल्म की हीरोइन एक सुंदर बच्चे की मां बन
जाती है। फिल्म की हीरोइन का बच्चा बहुत बीमार है। शहर के बडे-बडे डिग्रीधारी
फॉरेन रिटर्न डॉक्टर जवाब दे चुके है।, तब बच्चे की मां फिल्मों के असली डॉक्टर
भगवान के पास जाती है और भगवान एक कुशल डॉक्टर की भांति बच्चे को स्वस्थ
कर देते है। बच्चे का बुखार पल भर में फुर्र हो जाता है, उसकी आंखों की रोशनी
ट्यूबलाइट की तरह वापस आ जाती है।
आमतौर पर डॉक्टर दो प्रकार के देखे गये है। एक तो जो दिमाग से
प्रेक्टिस करते है, दूसरे वे जो जुबान से प्रेक्टिस करते है, और काम कम बात
ज्यादा करते है। तथा मुंह से मरीज का इलाज करते हैं। लेकिन फिल्मी डॉक्टर
अर्थात् भगवान को न तो दिमाग का उपयोग करना पडता है और न जबन का
। ये हमेशा मूक बने रहते हैं। इलाज करते समय मरीज के हाथ की नब्ज भी नहीं
टटोलते हैं। बिना स्टेथस्कोप लगाये उसके दिल की धडकन नाप लेते हैं। ये बिना
कुछ बोले , दवा दिये, प्रतिक्रिया व्यक्त किये हर मर्ज का इलाज शर्तियां कर देते
है।
भगवान यों तो मंदिर में बैठकर बहुत सा काम करते हैं, लेकिन यदि उन्हें
किसी का इलाज करने की याद दिलानी हो तो उन्हें धूप, दीप, अगरबत्ती की
चढोतरी चएानी पडती है। ज्यों ही उनकी पत्थर की नाक में धूप-दीप की
भीनी-भीनी खूशबू व गले में मोंगरे की तीखी खूशबू पहुंचती हैं वे मरीज का इलाज
करने के लिए राजी हो जाते हैं। धूप, दीप , अगरबत्ती भगवान रूपी डॉक्टर के
मंदिर रूपी दवाखाने में फीस का काम करते हैं। भगवान का सहायक अर्थात्
कंपाउण्डर मंदिर का मोटा तगडा पुजारी रहता है, जो घंटा बजाकर डॉक्टर साहब
को मरीज के आने की सूचना देता है।
फिल्मों में भगवान को डॉक्टर की तरह कार्य करते हुए देखकर लगता है कि
अगर आम जिन्दगी में भी भगवान इसी तरह लोगों का इलाज करने लगे तो
कितना अच्छा हो, सारे भारतवर्ष में खुशी का साम्राज्य छा जाए। भगवान के अनन्य
भक्त गरीबों पर तो उनका बहुत अहसान हो जाये। वे बेचारे चिकित्सा के अभाव में
मरे नहीं। देश का हर आदमी फिल्मी दुनिया के पात्रों की तरह खुशहाल हो जाएं ।
आज जरा सी बीमारी में लोगों का भट्ठा बैठ जाता है। एक रोग के नाम पर ब्लउ
टेस्ट , यूरिन टेस्ट, एक्स-रे, आदि पचासों डॉक्टरी टेस्ट करवाने पडते हैं, जिन पर
बहुत पैसा खर्च होता है। अगर ऑपरेशन का नंबर आ जाए तो समझो कि बाप
दादाओं की जायदाद बेचने की नौबत आ गयी । ऐसी विषम परिस्थ्तिियों में फिल्मों
में भगवान का भक्तगण को बीमारियों का इलाज करते हुए देखते हैं तो उनके
दिलों पर क्या बीतती है यह भगवान ही जान सकते है।
हमारी फिल्मों में भगवान डॉक्टरों की तरह कार्य करता है। जब कोई फिल्मी
पात्र गंभीर रूप से घायल हो जाता है, तब उसे असली एम.बी.बी.एस. डॉक्टर के
पास न ले जाकर मंदिर अर्थात् भगवान के दवाखाने में ले जाया जाता है, जहां पर
मरीज के शुभचिंतक भगवान के गुण गाते हैं और भगवान कुशल डॉक्टरों की तरह
मरीज को कुछ ही क्षण में ठीक कर देते है।
अपने फिल्मों में देखा होगा कि जब फिल्म का मुख्य पात्र बहुत गंभीर रूप
से घायल हो जाता है या कंेसर, दमा, हृदय रोग जैसी असाध्य बीमारी अपने अंतिम
चरण में पहुच जाती है, तब मरीज के घर वाले उसे भगवान के सजे-सजाये मंदिर
ंमें ले जाते हैं और उनसे उस मरीज को ठीक करने की मिन्नत करते हैं, वे कुछ
इस ढंग से मिन्नत मांगते हैं कि ‘हे भगवान तेरे से आज तक हमने कुछ नहीं मांगा,
आज मांग रहे हैं। अगर तू मेरा काम कर देगा तो ठीक, अन्यथा तेरे पर से मेरा
विश्वास उठा जायेगा।‘‘ इस प्रकार ठोस शुरूआत करते हुए मां अपने बच्चे का
जीवन, बीबी अपने पति का सुहाग और बाप अपने बेटे , प्रेमिका अपने प्रेमी की
जान भगवान से मांगती है।
फिल्मों में भगवान उन्हें निराश नहीं करता है, भले ही वास्तविक जिंदगी में
लोगों को निराश कर दें लेकिन फिल्मी पात्रों को तो भगवान कभी भी निराश नहीं
करता हैं । वह फिल्मों में एक कुशल डॉक्टर की तरह कार्य करता है। सब रोगों
का विशेषज्ञ रहता है, उसमें बाल रोग, पैथालाजिस्ट, गायानोकालोजिस्ट , कुशल
सर्जन आदि सभी विशेषज्ञों के गुण मौजूद रहते है। वह एक कुशल सर्जन की तरह
छुरा, चाकू, तलवार, गोली आदि से गंभीर रूप से घायल मरीज को चुटकी भर में
ठीक कर देता है। घायल मरीज को भगवान की मूर्ति के सामने लिटा दिया जाता
है। और मरीज के घर वाले जो शोर से गाते बजाते हैं। भगवान का मंदिर हिलने
लगता है। ऐसा लगता है जैसे भूकंप आ गया है। उसके कुछ क्षण बाद ही घंटों से
निस्तेज पडा मरीज एकदम चंगा होकर उठ बैठता है। उसके कुछ क्षण बाद ही घ्
ांटों से निस्तेज पडा मरीज एकदम चंगा होकर उठ बैठता है। उसका आपरेशन
भगवान बिना ऑक्सीजन, ग्लूकोज, छुरा, चाकू, चीर-फाड आदि के ऐसे ही सम्पन्न
कर देते हैं।
आपने देखा होगा कि फिल्म के हीरो की पत्नी प्रसव पीडा से बुरी तरह
तडप रही होती है और उसके कमरे के बाहर खडा फिल्म का हीरो हाथ जोडकर
भगवान से प्रार्थना करता है और फिल्म की हीरोइन एक सुंदर बच्चे की मां बन
जाती है। फिल्म की हीरोइन का बच्चा बहुत बीमार है। शहर के बडे-बडे डिग्रीधारी
फॉरेन रिटर्न डॉक्टर जवाब दे चुके है।, तब बच्चे की मां फिल्मों के असली डॉक्टर
भगवान के पास जाती है और भगवान एक कुशल डॉक्टर की भांति बच्चे को स्वस्थ
कर देते है। बच्चे का बुखार पल भर में फुर्र हो जाता है, उसकी आंखों की रोशनी
ट्यूबलाइट की तरह वापस आ जाती है।
आमतौर पर डॉक्टर दो प्रकार के देखे गये है। एक तो जो दिमाग से
प्रेक्टिस करते है, दूसरे वे जो जुबान से प्रेक्टिस करते है, और काम कम बात
ज्यादा करते है। तथा मुंह से मरीज का इलाज करते हैं। लेकिन फिल्मी डॉक्टर
अर्थात् भगवान को न तो दिमाग का उपयोग करना पडता है और न जबन का
। ये हमेशा मूक बने रहते हैं। इलाज करते समय मरीज के हाथ की नब्ज भी नहीं
टटोलते हैं। बिना स्टेथस्कोप लगाये उसके दिल की धडकन नाप लेते हैं। ये बिना
कुछ बोले , दवा दिये, प्रतिक्रिया व्यक्त किये हर मर्ज का इलाज शर्तियां कर देते
है।
भगवान यों तो मंदिर में बैठकर बहुत सा काम करते हैं, लेकिन यदि उन्हें
किसी का इलाज करने की याद दिलानी हो तो उन्हें धूप, दीप, अगरबत्ती की
चढोतरी चएानी पडती है। ज्यों ही उनकी पत्थर की नाक में धूप-दीप की
भीनी-भीनी खूशबू व गले में मोंगरे की तीखी खूशबू पहुंचती हैं वे मरीज का इलाज
करने के लिए राजी हो जाते हैं। धूप, दीप , अगरबत्ती भगवान रूपी डॉक्टर के
मंदिर रूपी दवाखाने में फीस का काम करते हैं। भगवान का सहायक अर्थात्
कंपाउण्डर मंदिर का मोटा तगडा पुजारी रहता है, जो घंटा बजाकर डॉक्टर साहब
को मरीज के आने की सूचना देता है।
फिल्मों में भगवान को डॉक्टर की तरह कार्य करते हुए देखकर लगता है कि
अगर आम जिन्दगी में भी भगवान इसी तरह लोगों का इलाज करने लगे तो
कितना अच्छा हो, सारे भारतवर्ष में खुशी का साम्राज्य छा जाए। भगवान के अनन्य
भक्त गरीबों पर तो उनका बहुत अहसान हो जाये। वे बेचारे चिकित्सा के अभाव में
मरे नहीं। देश का हर आदमी फिल्मी दुनिया के पात्रों की तरह खुशहाल हो जाएं ।
आज जरा सी बीमारी में लोगों का भट्ठा बैठ जाता है। एक रोग के नाम पर ब्लउ
टेस्ट , यूरिन टेस्ट, एक्स-रे, आदि पचासों डॉक्टरी टेस्ट करवाने पडते हैं, जिन पर
बहुत पैसा खर्च होता है। अगर ऑपरेशन का नंबर आ जाए तो समझो कि बाप
दादाओं की जायदाद बेचने की नौबत आ गयी । ऐसी विषम परिस्थ्तिियों में फिल्मों
में भगवान का भक्तगण को बीमारियों का इलाज करते हुए देखते हैं तो उनके
दिलों पर क्या बीतती है यह भगवान ही जान सकते है।
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