अंधविश्वास बनाम अन्धे विश्वास
हम भारतीयों का इतिहास अंधविश्वासों का इतिहास है। हम लोग अक्सरकिसी न किसी अंधविश्वास के शिकार हो जाते हैं। आखिर में अंधविश्वास है क्या ?
कोई भी लीक से चली आ रही बात अंध विश्वास है। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा हैकि ‘‘किसी एक ही दिशा में झुक पडना अंध विश्वास है।‘‘ किसी भी अंधविश्वासका आपको और कोई उचित वैज्ञानिक कारण नहीं मिलेगा। अगर किसी से भी पूछोकि ‘‘ ऐसा क्यों मानते हैं।‘‘ तो जवाब मिलेगा‘‘ भगवान जाने‘‘ तभी विनोबा भावे नेकहा है कि ‘‘ अंधविश्वास तर्क ईश्वर जाने पर आधारित अंध-श्रद्धा का नाम है।‘‘
अंधविश्वासों का कोई वैज्ञानकि औचित्य नहीं है। यह एक प्रकार क भयग्रस्त वहम्है। जिन्हें हम पीढी दर पीढी पालते चले आ रहे हैं। ये हमारी कमजोरी के परिणामहै।
समाज मंे एक से एक अंधविश्वास व्याप्त हैं। अगर छत पर कौआ बोलेगा तो
जरूर कोई मेहमान आयेगा, भले ही कौआ बरी-पापड देखकर अपने साथियों को
कावं-कावं कर रहा हो। आपकी चप्पल पर चप्पल पड गई तो आप जरूर यात्रा
करेंगे, भले ही आपका घर से निकलने का मन न रहा है। अगर बिल्ली रास्ता काट
जाये तो आप कहीं नहीं जा सकते, क्योंकि आपका काम बिगड जायेगा। भले ही
कोई पढा-लिखा बेरोजगार युवक नौकरी का इन्टरव्यू देने जाये और पहचान,
सिफारिश, लेनदेन के अभाव में उसकी नौकरी न लगे, तो वह सारा दोष उस
पडोसी की बिल्ली को देगा, जिसने उसका रास्ता काटा था, या दोष उस व्यक्ति
पर थोपेगा जिसने अकारण छींका था।
हम लोग बुरी तरह से अंधविश्वासों से जकडे हुए हैं हमने यात्रा करने, दाढी
बनवाने, गृह प्रवेश करने, दुकान का मुर्हुत निकलवाने आदि काम दिनों पर आधारित
किये हुए है। यहां तक कि हमारे सोने, खाने, पीने तक को अंधविश्वासों द्वारा
निर्धारित किया गया है। विवाह जैसा पवित्र कार्य पूरी तरह अंधविश्वास पर
आधारित है। आप नौवे या तेरहवें दिन यात्रा नहीं कर सकते । अगर करते हैं, तो
कोई अनहोनी घट जाने पर सारा दोष आपकी नौवे और तेरहवे दिन की यात्रा के
मत्थे मढ दिया जायेगा। आप पूर्व दिशा की तरफ पैर रखकर सो नहीं सकते, चाहे
आपके घर में चारपाई रखने की चगह हो या नहीं। शनिवार को तेल, लोहा नहीं
खरीदा जाता। पता नहीं क्यों ? इस तरह न जाने कितने अंधविश्वास हम लोगों के
बीच में फल-फूल रहे हैं।
अंधविश्वासों से व्यक्तियों को कितनी हानि होती है, इसका अंदाजा लगा
पाना कठिन है। मेरा एक मित्र है, उसकी नई-नई शादी हुई थी कि ससुराल से
चिट्ठी आयी कि तुम्हारी सार गुजर गई। वह बडे आश्चर्य में पड गया। अपनी
नई-नवेली दुल्हन को लेकर चार-पांच सौ रूपये कर्ज लेकर , आफिस से छुट्टी
मांगकर, ससुराल गया, वहां जाकर क्या देखता है कि उसकी सास तो जिंदा है,
उसका सिर चकरा जाता है। तब उसको समझाया जाता है कि तुम्हारी सास के
सिर पर कौआ ने चोंच मारी थी , इसलिए किसी सगे संबंधी के मरने का डर था,
झूठी चिट्ठी अपशगुन दूर किया करती है, वह बेचारा सिर धुनकर रह गया ।
अंध विश्वास निरर्थक होते हैं । यह बात हम बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।
सोचो अगर अंधविश्वास सत्य होते तो यह पृथ्वी , कई बार पडने वाले सूर्यग्रहण,
चंद्रग्रहण, खग्रास ग्रहण के जाल में फंसकर तहस-नहस हो गई होतीं कितने ग्रहण
आये और चले गये, यह पृथ्वी पूर्ववत विद्यमान हैं। इसी तरह विवाह पूर्व जन्मपत्री
दिखाई जाती है, ताकि विवाह बाद पति-पत्नी में पटे व सुखी रहें , परन्तु इसके
बाद भी अनगिनत विवाह असफल होते हैं। हजारों बहुएं जलायी जाती हैं। सैकडों
तलाक होते हैं। यह बात लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि भूत नहीं होते, हमारे
वहम भूत होते हैं तब भी लोग भूत-प्रेेतों से डरते है।
जहां तक अंधविश्वासों के जन्म का प्रश्न है, अंधविश्वासों का जन्म पीढी -
दर - पीढी मां-बाप द्वारा अपने बच्चों को अच्छी नसीहते देने के लिए हुआ था।
अगर रात में बंसी बजाने से मना किया जाता है तो उसका कारण रात में शांति
बनाये रखना है, अगर आपको ग्रहण में निकलने से मना किया जाता है तो उसका
कारण कोई राक्षस नहीं, बल्कि वातावरण में पैदा होने वाली पराबैंगनी किरणें हैं,
जिनका आंख और गर्भवती महिलाओं पर बुरा प्रभाव पडता है, इसी तरह अगर
विवाह पूर्व जन्मपत्री या गौत्र मिलान किया जाता है तो इसका कारण एक ही रक्त
समूह के दो लोगों में शादी न होने से है, क्योंकि इससे संतानोत्पति में कठिनाई
होती है। अगर आपको कैंची बजाने से मना किया जाता है तो उसका कारण
लडाई-झगडा नहीं हो सकता है। इस तरह अंध विश्वासों का जन्म समाज को
अच्छी नसीहतें देने के लिए हुआ था, उनका ठीक तरह से पालन हो। इसके लिए
इनके साथ भय की भावना जोड दी गई थी, जिसे हमारे धर्म-भीरू, अंधविश्वासी
समाज में ‘अंध-श्रद्धा‘ का रूप दे दिया आज सारा समाज इन अंधविश्वासों से
जकडा हुआ है, जिसके दुष्परिणाम हमारे सामने स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे हैैं।
अंधविश्वास किसी व्यक्ति के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए
हानिप्रद होते हैं। व्यक्ति में हीनता की भावना आती हैं। अंधविश्वासों से
आत्मविश्वास में कमी हो जाती है। अंधविश्वास जहां व्यक्ति को अकर्मण्य बनाकर
निकृष्ट कर देते हैं, वहीं वे उसे भाग्यवादी बनाते हैं व्यक्ति अंध विश्वास के चक्कर
में अपनी किस्मत का फैसला भगवान को सौंप देता हैं । अंध विश्वासों से समाज
का विकास अवरूद्ध होता है। तभी अरविंद घोष ने कहा है कि ‘‘ अंधानुकरण से
आत्मविश्वास के बजाये आत्मसंकोच होता है।‘‘ कोई कार्य जो समाज में आराम से
हो सकता है। अंधविश्वास बीच में विघ्न बन जाते हैं। इस तरह अंधविश्वास बहुत
बुरी हैं, हमें इन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
अंधविश्वासों से छुटकारा पाने के लिए आवश्यक है कि उन्हें तर्क के आधार
पर तौला जाये, अंधानुकरण न किया जाये। अगर कोई कार्य करने से मना किया
जा रहा है तो क्यों मना किया जा रहा है। कोई ठोस लाभप्रद कारण है, तो उसे
माने अन्यथा मानने की कोई जरूरत नहीं है।उदाहरणार्थ परिवार के किसी सदस्य
को सर्दी है तो वह जरूर छींकेगा, इसमें अंधविश्वास को मानने की जरूरत नहीं है,
अंधविश्वास को जब हम वैज्ञानिक कसौटी ‘क्यों, और कैसे‘ पर कसेंगे तब हम
पायेंगे कि यह व्यर्थ है और उसका खौफ भी हमारे दिल से निकल जायेगा। इस
तरह अंधविश्वासों से बचने के लिए आवश्यक है कि समाज में छायी कुछ बातों का
तो अंधानुकरण न किया जाये।
स्वयं के व्यक्तित्व विकास व समाज की उन्नति के लिए आवश्यक है कि
अंधविश्वास को न माना जाये । समाज को अंधविश्वासों के दुष्परिणामों से परिचित
कराकर उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए। हमें अंधविश्वासों के साथ जो भय
की भावना जुडी है, उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए तभी हम समाज को
अंधविश्वासों से मुक्त कर पायेंगे।
हम भारतीयों का इतिहास अंधविश्वासों का इतिहास है। हम लोग अक्सरकिसी न किसी अंधविश्वास के शिकार हो जाते हैं। आखिर में अंधविश्वास है क्या ?
कोई भी लीक से चली आ रही बात अंध विश्वास है। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा हैकि ‘‘किसी एक ही दिशा में झुक पडना अंध विश्वास है।‘‘ किसी भी अंधविश्वासका आपको और कोई उचित वैज्ञानिक कारण नहीं मिलेगा। अगर किसी से भी पूछोकि ‘‘ ऐसा क्यों मानते हैं।‘‘ तो जवाब मिलेगा‘‘ भगवान जाने‘‘ तभी विनोबा भावे नेकहा है कि ‘‘ अंधविश्वास तर्क ईश्वर जाने पर आधारित अंध-श्रद्धा का नाम है।‘‘
अंधविश्वासों का कोई वैज्ञानकि औचित्य नहीं है। यह एक प्रकार क भयग्रस्त वहम्है। जिन्हें हम पीढी दर पीढी पालते चले आ रहे हैं। ये हमारी कमजोरी के परिणामहै।
समाज मंे एक से एक अंधविश्वास व्याप्त हैं। अगर छत पर कौआ बोलेगा तो
जरूर कोई मेहमान आयेगा, भले ही कौआ बरी-पापड देखकर अपने साथियों को
कावं-कावं कर रहा हो। आपकी चप्पल पर चप्पल पड गई तो आप जरूर यात्रा
करेंगे, भले ही आपका घर से निकलने का मन न रहा है। अगर बिल्ली रास्ता काट
जाये तो आप कहीं नहीं जा सकते, क्योंकि आपका काम बिगड जायेगा। भले ही
कोई पढा-लिखा बेरोजगार युवक नौकरी का इन्टरव्यू देने जाये और पहचान,
सिफारिश, लेनदेन के अभाव में उसकी नौकरी न लगे, तो वह सारा दोष उस
पडोसी की बिल्ली को देगा, जिसने उसका रास्ता काटा था, या दोष उस व्यक्ति
पर थोपेगा जिसने अकारण छींका था।
हम लोग बुरी तरह से अंधविश्वासों से जकडे हुए हैं हमने यात्रा करने, दाढी
बनवाने, गृह प्रवेश करने, दुकान का मुर्हुत निकलवाने आदि काम दिनों पर आधारित
किये हुए है। यहां तक कि हमारे सोने, खाने, पीने तक को अंधविश्वासों द्वारा
निर्धारित किया गया है। विवाह जैसा पवित्र कार्य पूरी तरह अंधविश्वास पर
आधारित है। आप नौवे या तेरहवें दिन यात्रा नहीं कर सकते । अगर करते हैं, तो
कोई अनहोनी घट जाने पर सारा दोष आपकी नौवे और तेरहवे दिन की यात्रा के
मत्थे मढ दिया जायेगा। आप पूर्व दिशा की तरफ पैर रखकर सो नहीं सकते, चाहे
आपके घर में चारपाई रखने की चगह हो या नहीं। शनिवार को तेल, लोहा नहीं
खरीदा जाता। पता नहीं क्यों ? इस तरह न जाने कितने अंधविश्वास हम लोगों के
बीच में फल-फूल रहे हैं।
अंधविश्वासों से व्यक्तियों को कितनी हानि होती है, इसका अंदाजा लगा
पाना कठिन है। मेरा एक मित्र है, उसकी नई-नई शादी हुई थी कि ससुराल से
चिट्ठी आयी कि तुम्हारी सार गुजर गई। वह बडे आश्चर्य में पड गया। अपनी
नई-नवेली दुल्हन को लेकर चार-पांच सौ रूपये कर्ज लेकर , आफिस से छुट्टी
मांगकर, ससुराल गया, वहां जाकर क्या देखता है कि उसकी सास तो जिंदा है,
उसका सिर चकरा जाता है। तब उसको समझाया जाता है कि तुम्हारी सास के
सिर पर कौआ ने चोंच मारी थी , इसलिए किसी सगे संबंधी के मरने का डर था,
झूठी चिट्ठी अपशगुन दूर किया करती है, वह बेचारा सिर धुनकर रह गया ।
अंध विश्वास निरर्थक होते हैं । यह बात हम बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।
सोचो अगर अंधविश्वास सत्य होते तो यह पृथ्वी , कई बार पडने वाले सूर्यग्रहण,
चंद्रग्रहण, खग्रास ग्रहण के जाल में फंसकर तहस-नहस हो गई होतीं कितने ग्रहण
आये और चले गये, यह पृथ्वी पूर्ववत विद्यमान हैं। इसी तरह विवाह पूर्व जन्मपत्री
दिखाई जाती है, ताकि विवाह बाद पति-पत्नी में पटे व सुखी रहें , परन्तु इसके
बाद भी अनगिनत विवाह असफल होते हैं। हजारों बहुएं जलायी जाती हैं। सैकडों
तलाक होते हैं। यह बात लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि भूत नहीं होते, हमारे
वहम भूत होते हैं तब भी लोग भूत-प्रेेतों से डरते है।
जहां तक अंधविश्वासों के जन्म का प्रश्न है, अंधविश्वासों का जन्म पीढी -
दर - पीढी मां-बाप द्वारा अपने बच्चों को अच्छी नसीहते देने के लिए हुआ था।
अगर रात में बंसी बजाने से मना किया जाता है तो उसका कारण रात में शांति
बनाये रखना है, अगर आपको ग्रहण में निकलने से मना किया जाता है तो उसका
कारण कोई राक्षस नहीं, बल्कि वातावरण में पैदा होने वाली पराबैंगनी किरणें हैं,
जिनका आंख और गर्भवती महिलाओं पर बुरा प्रभाव पडता है, इसी तरह अगर
विवाह पूर्व जन्मपत्री या गौत्र मिलान किया जाता है तो इसका कारण एक ही रक्त
समूह के दो लोगों में शादी न होने से है, क्योंकि इससे संतानोत्पति में कठिनाई
होती है। अगर आपको कैंची बजाने से मना किया जाता है तो उसका कारण
लडाई-झगडा नहीं हो सकता है। इस तरह अंध विश्वासों का जन्म समाज को
अच्छी नसीहतें देने के लिए हुआ था, उनका ठीक तरह से पालन हो। इसके लिए
इनके साथ भय की भावना जोड दी गई थी, जिसे हमारे धर्म-भीरू, अंधविश्वासी
समाज में ‘अंध-श्रद्धा‘ का रूप दे दिया आज सारा समाज इन अंधविश्वासों से
जकडा हुआ है, जिसके दुष्परिणाम हमारे सामने स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे हैैं।
अंधविश्वास किसी व्यक्ति के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए
हानिप्रद होते हैं। व्यक्ति में हीनता की भावना आती हैं। अंधविश्वासों से
आत्मविश्वास में कमी हो जाती है। अंधविश्वास जहां व्यक्ति को अकर्मण्य बनाकर
निकृष्ट कर देते हैं, वहीं वे उसे भाग्यवादी बनाते हैं व्यक्ति अंध विश्वास के चक्कर
में अपनी किस्मत का फैसला भगवान को सौंप देता हैं । अंध विश्वासों से समाज
का विकास अवरूद्ध होता है। तभी अरविंद घोष ने कहा है कि ‘‘ अंधानुकरण से
आत्मविश्वास के बजाये आत्मसंकोच होता है।‘‘ कोई कार्य जो समाज में आराम से
हो सकता है। अंधविश्वास बीच में विघ्न बन जाते हैं। इस तरह अंधविश्वास बहुत
बुरी हैं, हमें इन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
अंधविश्वासों से छुटकारा पाने के लिए आवश्यक है कि उन्हें तर्क के आधार
पर तौला जाये, अंधानुकरण न किया जाये। अगर कोई कार्य करने से मना किया
जा रहा है तो क्यों मना किया जा रहा है। कोई ठोस लाभप्रद कारण है, तो उसे
माने अन्यथा मानने की कोई जरूरत नहीं है।उदाहरणार्थ परिवार के किसी सदस्य
को सर्दी है तो वह जरूर छींकेगा, इसमें अंधविश्वास को मानने की जरूरत नहीं है,
अंधविश्वास को जब हम वैज्ञानिक कसौटी ‘क्यों, और कैसे‘ पर कसेंगे तब हम
पायेंगे कि यह व्यर्थ है और उसका खौफ भी हमारे दिल से निकल जायेगा। इस
तरह अंधविश्वासों से बचने के लिए आवश्यक है कि समाज में छायी कुछ बातों का
तो अंधानुकरण न किया जाये।
स्वयं के व्यक्तित्व विकास व समाज की उन्नति के लिए आवश्यक है कि
अंधविश्वास को न माना जाये । समाज को अंधविश्वासों के दुष्परिणामों से परिचित
कराकर उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए। हमें अंधविश्वासों के साथ जो भय
की भावना जुडी है, उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए तभी हम समाज को
अंधविश्वासों से मुक्त कर पायेंगे।
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