देश के नेता
देश के नेता और घर के चूहे में एक मुंह, एक नाक,
दो आंख, दो कान के अलावा कोई खास समानता तो नहीं है, परन्तु
उनके कुछ गुण एक-दूसरे से मेल खाते हैं और यह समझ में नहीं
आता है कि किसने , किससे कौन-सा गुण उधार लिया है। किस
ओर लेपिंग के कारण देश कुतर गये, योजनांए खा गये, पैसा चबा
गये, जेसे चूहे नुमा शब्द नेताओं के साथ चिपकाएं जाते हैं।
जिस तरह घर में अधिक मात्रा में चूहे पाये जाते हैं, उसी
तरह देश में नेता पाये जाते हैं। जहां देखों वहां हर जगह एक नेता
आपको मिल जायेगा। नेता अलग से भीड में, मैले-कुचैलों के बीच
ट्यूबलाइट की सफेदी लिये नजर आ जाते हैं, जिन्हें पहचानने के
लिए हमें अलग से किसी विशेष चश्में की जरूरत नहीं पडती है।
चूहे को बिल्ली से डर लगता है, नेताओं को केवल सी.बी.
आई. वालों से डर लगता है। लेकिन जिस तरह बिल्ली को चूहे को
पकडने में मुश्किल आती है, उससे कहीं अधिक मुश्किल सी.बी.आई.
वालों को घोटाले पकडने में आती है। सी.बी.आई. वाले जब जी जान
लगाते हैं, तभी वे तोप, चारा, कफन आदि घोटाले पकड पाते हैं,
लेकिन फिर भी वे बिल्ली की तरह चूहे को चट नहीं कर पाते हैं।
नेताओं को जेलों में ऐशोआराम की जिन्दगी गुजारने बंद कर दिया
जाता है। जहां पर मोबाइल फोन, एयर कंडीशन, टी.वी. आदि
विलासितापूर्ण वस्तुओं के बीच, वे अपनी जिंदगी राजा महाराजाओं
की तरह जीते हैं।
नेताओं में चूहे की तरह कुतरने का विशेष गुण होता है ये
देश की कई मजबूत सीमेंट, डामर, की सडकें कुतर जाते है। इसकी
गिट्टी मिट्टी , सीमेंट चट कर जाते है। डैमों में छेद कर देते हैं।
जो खडे होने से पहले ही जमीन में दफन हो जाते हैं। इस तरह पूरे
देश को कुतर-कुतर कर छिन्न-भिन्न कर देते है। जिसके कारण
देश में गरीबी, बेकारी, भुखमरी के पैबंद अलग से लगे दिखाई देते
है।
चूहे परजीवी होते हैं, नेता भी परजीवी होते हैं और जनता की
अमरबेल का सहारा लेकर पलते हैं। अनाज,सफाई को छोड चूहें की
तरह नेता भी कुछ काम नहीं करते है। ये सिर्फ सत्य मेव जयते
वालों की तरह देशभक्ति, जन सेवा करते हैं। दोनों के अपने-अपने
कमाने, खाने, दिखाने के ढंग हैं, जिसके कारण दोनों जनता में
समान लोकप्रिय हैं।
नेताओं को बहुत कम मानदेय प्राप्त होता है, परन्तु उनके
ठाठ-बाट किसी उद्योगपति, बिजनेस मैन, एन. आर. आई. से कम
नहीं होते हैं। उनके पास कृषि फार्म, पॉश कालोनी में बंगला,
आधुनिकतम मॉडल की कई कारें आदि सब कुछ होता है, जो पहले
सोने की चिडिया वाले देश के राजा-महाराजाओं के पास रहता था।
नेताओं की रईसी देखकर स्वर्ग के देवताओं को भी जलन
होती होगी और इंद्र के दरबार में कई बार सभासद दल-बदल कर
पृथ्वीलोक की पार्टी में शामिल होने का मन बना चुके होंगे, परन्तु
पता नहीं कौन सी रंभा, उर्वशी, मेनका स्वर्ग में उन्हें रोके हुए हैं।
जिस तरह चूहों की पूंछ होती है, उसी तरह समाज में नेताओं
की भी पूछ होती है। सारा समाज उन्हें पूजता-पूछता है, इसलिए
दोनों की समाज में पूछ दिखती है। चूहे दोनों हाथों से खाते हैं नेता
भी खाते हैं और सार्वजनिक जीवन के शिष्टाचार को नहीं मानते हैं।
वैसे भी सारे सामाजिक बंधन तोडने का ठेका लेकर ही राजनीति में
जगह बनाई जा सकती है।
चूहे अपने पिछले पैरों पर खडे होते हैं। नेता भी जनता
पर योजनाओं का वजन लेकर खडे होते हैं, योजनाएं अधूरी रहने पर
आम जनता का दम घुटता नजर आता है। चूहा अपने नुकीले दांतों
से काटता है, नेता अपनी नीतियों से जनता को दर्द का अहसास
कराता है। वे हर दिन नये वादों , आश्वासनों, क्रियाकलापों से आम
जनता को क्षत-क्षित कर पांच साल में इस लायक भी नहीं छोडते हैं
कि जनता उनके विरूद्ध कुछ सोच समझ सके। जनता को बंदूक की
नोक से, कुछ के हाथ इतना डराया धमकाया जाता है, कि वे केवल
उसे ही वोट देते हैं, नहीं तो फर्जी वोट डालकर मत छपवाकर,
जनता के विरूद्ध वे मत प्राप्त करते हैं।
चूहें की आंखें होती हैं, वे बिल्लियों को देख भाग लेते हैं, और
नेता आंख होते हुए भी सूरदास होने का ढोंग करते हैं। उन्हें जनता
की रोटी, कपडा मकान से जुडी समस्याऐं नहीं दिखती है। हजारों
टन अनाज गोदामों में रखा सड जाता है। नेता को जनता की बातें
भी सुनाई नहीं देती है। वे जनता की चीत्कार सुन नहीं पाते हैं। बाढ
में बहे गांव, आंधी तूफान से नष्ट हुए मकान, अकाल से मर रहे
लोगों की चीख न सुनना, नेता गिरी है।
चूहा केवल चीं-चीं करता है। नेता सारे समय ‘‘वोट दो वोट
दो‘‘ करते रहते हैं और जमीन को स्वर्ग, जंगल में मंगल करने की
बात करते हैं। रामराज्य की स्थापना का सपना दिखाते हैं। हर शरीर
के लिए रोटी, छावं और धोती की बात करते हैं, जो रात में देखे गये
भयानक सपने की तरह, चुनाव के कुछ दिन बाद, टूट जाते हैं।
जिस तरह चूहे अपने पालनें वालों का अनाज चाट जाते है,
उसी तरह नेता भी जनादेश का धन चट कर जाते हैं, और
विकास योजनाओं की लाखों, करोडों अरबों रूपये की राशि घोटाला
करके हडप ली जाती है। जिस तरह चूहे हमारे घर के कपडों को
कुतरकर किसी काम का नहीं छोडते हैं, उसी तरह नेता भी देश को
खोखला करके किसी काम का नहीं छोडते हैं।
आज देश कीआर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर लगता है
कि यह देश नेताओं के भरोसे नहीं, बल्कि भगवान के भरोसे चल रहा
है और देश की गति को देखकर नास्तिकों का भी भगवान पर
विश्वास जाग उठा है।
No comments:
Post a Comment