Wednesday, May 15, 2013

अ ंग ेर ज ी औ र आधु िनकता का भ ूत

अ ग र ज ी औ र आधु  िनकता का भ ूत
हम भारतवासियों पर अंग्रेजी का भूत चढ गया है, जो उतरने का नाम नहीं
ले रहा है। हम-मेरा भारत महान् सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां के वासी अंग्रेजी के
पीछे पागल हो गये हैं। अंग्रेजी हमारी मानसिकता, सभ्यता, संस्कृति, राजनीति में
बुरी तरह से रच-बस गई है। हम अंग्रेजी को आधुनिकता की कसौटी मान बैठे हैं,
इसलिए उसका चाहकर भी मोह, त्याग नहीं कर पा रहे हैं।

आपने देखा होगा कि जब भी हम हिन्दी बोलते हैं तो यह ख्याल जरूर
रखते हैं कि उसके साथ दो-चार अंग्रेजी के शब्द अवश्य बोले। ऐसा हम आसपास
वालों पर रौब झाडने के लिए करते हैं, जिससे कि वह हमें अपने से ज्यादा
पढा-लिखा और आधुनिक समझे। हम लोग आधुनिकता की परिभाषा भूल गये है।
और उसे अंग्रेजों से तौलने लगे हैं।

 इसी चक्कर में अंग्रेजी के चार शब्द थैंक्यू,
सॉरी, मैंशन नॉट, एक्सक्यूज मि, सीखकर अपने आप को देश का सबसे होशियार
आदमी समझने की भूल करते हैं हम लोग अंग्रेजी की तरह मुंह में सिगार लगाकर
सूट बूट टाई पहनकर1⁄4 भले ही टाई का नॉट लगाना ना आता हो1⁄2 अपने आपको
दुनिया का सबसे महान् 1⁄4मार्डन1⁄2 व्यक्ति समझते हैं।

हम लोग अंग्रेजी को आधुनिकता का पूरक मान बैठे हैं। और इसी
भूल-भूलैया में हिन्दी की कब्र खोद रहे है। अंग्रेजी को आधुनिक समझने वाले भूल
गये हैं कि वे विदेशी भाषा अपनाने से आधुनिक नहीं बल्कि नवप्रर्वतन, नये विचार,
नव तकनीक , नई वैज्ञानिक खोजे अपनाने से आधुनिक कहलायेंगे। इन बातों का
हम हिन्दुस्तानियों से कोई वास्ता नहीं है। हम लोग आज भी सदियों से चली आ
रही सडी गली रूढियों प्रथाओं, अंध विश्वासों को गले लगाये बैठे हैं। एक विदेशी
भाषा को अपनाकर आधुनिकता का दंभ भर रहे है।


हम लोग अपनी नाम पत्रिका हिन्दी में नहीं अंग्रेजी में बनवाते हैं, क्योंकि
इससे पढने वाले को पता चल जाये कि वह पढा- लिखा आधुनिक व्यक्ति है। इसी
कारण हम लोग अपने सामाजिक , सांस्कृतिक , पारिवारिक , समारोह जो हिन्दू
रीति-रिवाजों रस्मों से भरेे होते हैं, के परिचय-पत्र को हिन्दी में न छपवाकर
अंग्रेजी में छपवाते हैं जिससे आगन्तुकों को पता चल जाये कि वह व्यक्ति भी
आधुनिकता में किसी से पीछे नहीं है।


हमारे देश में कम पढे-लिखे नहीं बल्कि डॉक्टर, वैज्ञानिक, शिक्षक,
राजनीतिक आदि विद्वान लोगों का भी यही हाल है। वे अच्छी खासी हिन्दी जानते
हैं, लेकिन सार्वजनिक सभाओं, रेडियो, दूरदर्शन आदि के समय जब उनके सामने
देश की अधिकांश जनता रहती है, वे मातृभाषा हिन्दी बोलना भूल जाते हैं। उनके
सिर पर आधुनिकता का भूत चढ जाता है और वे अधिकांश लोगों के समझ में आने
वाली हिन्दी भाषा को छोडकर अंग्रेजी में बात करने लग जाते हैं। ऐसे लोग हिन्दी
को गवारों, जाहिलों, अल्पज्ञों की जाहिल भाषा मानकर लोगों के सामने बोलना
अपना अपमान समझते हैं।

हम लोग आधुनिकता के चक्कर में अंग्रेजी को अपनाकर अपनी संस्कृति का
कबाडा कर रहे हैं। पिता श्री, माता श्री, जैसे शब्दों का स्थान हाय, बाय, हाय डैड
हाय मोम ने लिया है। स्कूलों में राम, अंकल, सीता आंटी, रावन रास्कल सिखाया
जाता है। अंग्रेजी के कान्वेंट स्कूलों में हिन्दी बोलना महापाप समझा जाता है। अगर
कोई गलती से हिन्दी का एक शब्द बोल देता है तो उसे गंवार की संज्ञा के साथ
बैंत तक खाने पड जाते है। उन्हें जबरदस्ती दूसरे धर्म की सभाओं में भाग लेने पर
मजबूर किया जाता है। यहां तक कि उन्हें धन, पद, नौकरी का लालच देकर उन
पर धर्म परिवर्तन करने तक का दबाव डाला जाता हैं अंग्रेजी ने हमारी संस्कृति की
इतनी दुर्गति की है कि हम आपका , आपके, आपको जैसे इज्जत सूचक शब्दों की
जगह तुम, तुम्हारे तेरे वाले यू, यूवर, यूवर्स जैसे अंग्रेजी शब्द उपयोग में लाने लग
गये है।

आज हममें से लाखों-करोडों लोग अंग्रेजी के कारण दिमागी तौर पर
अपाहिज हो गये हैं। वे अंग्रेजी को ही अपना सब कुछ समझ बैठे हैं और इस
चक्कर में न तो पूरी अंग्रेजी सीख पाते हैं न ही हिन्दी । बस त्रिशंकु की तरह
दोनों भाषाओं के बीच आधा अधूरा ज्ञान बटोर कर लटके रहते हैं। अपने अच्चों को
अंग्रेजी पढाने के चक्कर में देश के हजारों गरीब मां-बाप अपने महीने की आधी
तनख्वाह उनके महंगे स्कूलों की फीस में भर देते हैं, वे सोचते हैं कि अंग्रेजी
आधुनिक भाषा है। उनके बच्चों की नौकरी में पुल का काम करेगी। अंग्रेजी पढने
के बाद उनकी समाज में ज्यादा पूछ होगी और उन्हें आगे बढने से कोई रोक नहीं
पायेगा, जबकि ऐसा कुछ नहीं होता है। आज देश में हजारों अंग्रेजी जानने वाले
मात्र मेडिकल , रिप्रेजेन्टैटीव बनकर देश की सडकें नाप रहे हैं। सभ्यता , संस्कृति
हिन्दी का ज्ञान न होने के कारण वे प्रतियोगी परीक्षाओं में ज्यादा सफल नहीं हो
पाते हैं और अंग्रेजी के चक्कर में उच्चतम शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। वे थोडी
बहुत अंग्रेजी पढने के बाद ही अपने आपको दुनिया का सबसे काबिल आदमी
समझने लगते हैं।


हम लोगों में से कुछ अंग्रेजी भक्त इस भाषा को वैज्ञानिकता की पर्यायवाची
बताकर उसकी जोरदार वकालत कर , दुनिया को महाभारत , रामायण , शून्य की
खोज, खगोल की जानकारी देने वाले, अनुपम देश भारत की भाषा की बेइज्जती
करते है। वे भूल जाते हैं कि आज दुनिया में जितने भी वैज्ञानिक और तकनीकीं
दृष्टि से विकसित देश रूस, जापान, चीन, फ्रांस आदि है। सब अपनी मातृभाषाओं
की बदौलत ही आगे बढे है। । वे कभी भी किसी भी विदेशी भाषा के मोहताज न
रहे हैं और न आगे कभी रहेंगे। यह हम भारतीय ही है जो आज तक अपनी दूषित
मानसिकता के कारण मातृभाषा के महत्व को समझ नहीं पाये हैं। विदेशी भाषा को
अपने सिर पर बिठायें हुए हैं। हम भारतीय आज तक आधुनिकता के चक्कर में
स्वभाषा हिन्दी के विकास की बात अपने दिमाग में नहीं बैठा पा रहे है। बस
गाहे-बगाहे मौका मिलते ही हिन्दी की बुराई और अंग्रेजी की बढाई में अपना
अमूल्य समय नष्ट करते है। जबकि विदेशी भाषा की इस समस्या को विशाल शब्द
कोष तैयार करके हम कभी का खत्म कर सकते थे, लेकिन हमने इस संबंध में कोई
कारागर उपाय अभी तक नहीं किये हैं। क्योंकि हमारे सिर से आज तक अंग्रेजी कीआधुनिकता का भूत नहीं उतरा है।


आज हमारा देश भले ही सैकडों वर्षो की अंग्रेजी की गुलामी से आजाद हो
गया है, एक स्वतंत्र प्रभुत्व , सम्पन्न , समाजवादी, धर्म निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक
गणराज्य है, जिसमें विचारों की अभिव्यक्ति और भाषा के विकास की पूर्ण स्वतंत्रता
है, लेकिन आज भी हम भाषा के मामले में अंग्रेजी के गुलाम हैं जो हम भारत के
लोगों के लिए, जो अपने आप को आजाद देश की आजाद नागरिक समझते हैं,
बहुत शर्मनाक बात है।

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