Saturday, August 15, 2009

पवित्रता की घोतक नारियां

                  पवित्रता की घोतक नारियां

                                            रमण महषिZ ने कहा है कि पति के लिए चरित्र, संतान के लिए ममता, समाज के लिए शील विश्व के लिए छाया तथा जीवमात्र के लिए करूणा संजोने वाली महाप्रकृति का नाम नारी है। नारी सृष्टि के प्रारंभ से ही अनत गुणों से भरपूर रही है। उसमें सूर्य सा तेज, चद्रमा जैसी शीतलता पृथ्वी की सी क्षमा, पर्वतों सी मानसिक उच्चता एक साथ दृष्टिगोचर होती है। नारी प्रकृति की जननी है। नलिन ने कहा है कि नारी सृष्टि की परम सौंदर्यमयी सर्वश्रेष्ठ कृति है।सृजन के आदि से विश्वस उसकी गोद में क्रीड़ा करता आ रहा है। उसकी मधुमती मुस्कान में महानिर्माण के स्वप्न है। और भू भं्रग में विनाश की प्रलयकारी घटाएं। इस तरह नारी अनंत गुणों से भरपूर है, फिर भी समाज उसका शोषण करता चला आ रहा है। कल की घर की चहारदीवारियों में कैद नारीहोया आज की तेजतर्राट स्वच्छंद नारी सभी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है।

                                      नारी युगों से अपमानित होती चली आ रही है। जिसे कविवर मैथिलीशरण गुप्त ने अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी आंचल में हेै दूध और ऑंखों में पानी कहकर प्रकट किया है। नारी को समाज में अबला माना जाता है। जिसका काम बच्चों को पैदा कर उसका पालन पोषण हीसमझा जाता है। नारी में सहनशक्ति की इतनी असीमित शक्ति रहती है कि वह कितना भी सताए जाने पर उफ तक नहीं करती है।तभी महादेवी वर्मा ने कहा है कि युगोंे से पुरूष स्त्री को उसकी शक्ति के लिए नही सहनशक्ति के लिए दंड देता आा रहा है। नारी में सहनशक्ति की ताकत अब देखने मिलती है जब उसकी बिना मर्जी के कहीं भी शादीकर दी जाती है। विधवा हो जाने पर समाज के उपेक्षा सहना उसका पति उसके साथ चाहे जैसा भी सुलूक करे ।


                                           वैसे साईरस ने सच कहा है कि नारी या तो प्रेम करती है याघृणा ही उसके बीच का मार्ग उसे ज्ञात नहीं। नारीजब किसी से प्रेम करती है तो अपनी सांसोंसे बढ़कर चाहती है। उसकी छायामात्र ही उसे पुलकित कर देती है। लेकिन अगर वह किसी से घृणा करने लग जाए तो दुनिया की कोई भी ताकत उसका विचार नहीं बदल सकती। नारी या तो किसी से प्यार करती है या घृणा। वह उसके साथ छल, कपट, दुव्र्यवहार आदि नहीं करती है। वैसे नारी के बारे में कहा जाता है कि वह जानबूझकर पुरूषों के हाथों समर्पित हो जाना चाहती है।

                                           तभी तो कवयित्री महादेवी वर्मा नेकहा है कि काव्य और प्रेम दोनों नारी हृदय की संपत्ति है। पुरूष विजय का भूखा होता है। नारी सर्मपण की पुरूष लूटना चाहता हेै नारी लुट जाना सही बात है जब नारी के कोमल प्यार रूपी झरने के रस को पुरूष अपना बनाना चाहता है तब उसके वशीभूत हो नारी अपना सब कुछ त्यागकर उसे अपना तन मन धन सभी लुटा बैठती है। और अपने उस पुरूष मित्र को हृदय के मंदिर का देवता मानकर पूजती है।तभी तो पंचतंत्र में कहा गया है किक चंद्रमा की कलाओं की भांति नारी का हृदय भी सदैव परिवर्तनशील होता है। किंतु इसमें सदा एक ही पुरूष का वास रहता है। जब नारी किसी को मनमंदिर का देवता मान लेती है तब सिर्फ उसे ही अपनी सेवा के सुमन अर्पित करती है। पह पुरूष की ओर आंख उठाकर देखना भी वह पाप समझती है। पवित्रता की घोतक नारियां

नारियां पवित्रता की घोतक है। सीता सावित्री, शकुतला आदि कितनी ही नारियों की पवित्रता के आगे संसार नतमस्तक है। आज संसार के जितने भी धार्मिक कृत्य है। सब नारियों की बदोेैलत ही जिंदा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कहना पड़ा कि जीवन में जो कुछ पवित्र और धार्मिक है, िस़्त्रयां उसकी विशेष संरक्षिकाएं है। नारी की पवित्रता ही उसकी सबसे बड़ीपूंजी है

नोबल पुरूस्कार विजेता कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है कि पवित्र नारी सृष्टिकर्ता की सर्वोत्तम कृति होती है। वह सृष्टि के संपूर्ण सौंदर्य को आत्मसात किए रहती है। पवित्र नारी का हृदय पवित्रता का आगार बन जाता है, उस समय उससे अधिक कोमल वस्तु संसार में नहंी रह जाती हेै। नारी की पवित्रता उसके त्याग, बलिदान, सर्मपण, साहस, वीरता आदि से अलग दृष्टिगोचर होती है।

नारी के चरित्र की गणना उसकी आंखो में होती है। जिसमें शर्महया के भाव रहते है। उन्हीं के आधार पर की जाती है। जिस नारी को समाज मे घूमते देखा जाता है उसके बारे में समाज विपरीत धारणा बनालेता है। कोल्टन ने तो यहां तक कहा है कि लज्जा नारी का सबसे कीमती आभूषण है। चरित्रहीन नारी का समाज में कोई स्थान नहीं है। लज्जाशील नारी की ही सर्वत्र इज्जत की जाती है। समाज भीं सम्मान की दृष्टि से देखता है।

गौेल्डिस्मथ ने कमाल की बात कही है कि कंटा भरी साख को फूल सुदर बना देते है और गरीब से गरीब आदमी के घर को लज्जावती नारी सुंदर और स्वर्ग बनादेती है।

नारी पुरूष संबंधों की बात आती है तो यह देखा गया है कि पुरूष नारी से संबंध बनाने के इच्छुक रहते है। लेकिन कुछ लोग शील और सदगुणों से भरपूर नारी से दूर रहना चाहते है। वैसे पुरानी किताबों में भी लिखा गया है कि जर,जमीन और जोरू ये तीनों झगड़े की जड़ है। ऐसे लोग नारी को झूठा मानते है। उसका संपर्क मिथ्या समझते है। उनकों नहीं मालूम रहता है कि नारी के रूप में सत्य उनकी परीक्षा ले रहा है। जैनेन्द्र कुमार ने कहा है कि जो स्त्री से अपने को बचाता है वह सच सें अपने को दूर रखता है।स्त्री झूठ नहीं है और पुरूष के लिए सच की चुनौती स्त्री के रूप में आती है। कुछ पुरूष ऐसे होते है जो नारी के पीछे भागते है। तो ऐसे पुरूषों की नारी अवहेलना करने लग जाए तो यह बात उसके लिए सबसे अधिक असहनीय होती है इस संबध में चैफर्ट ने कहा हेै कि नारी पुरूष की छायामात्र है । उसको पाने का प्रयास करो तो वह दूर भागती है यदि उससे पलायन करो तो वह अनुसरण करती है।वैसे पुरूष के चरित्र की परीक्षा नारी के संपर्क मे आने पर ही होती है।

तभी तो दार्शनिक गेटे ने कहा है कि नारियों का संपर्क ही उत्तम शील की आधारशिला है।

शीलवती नारियों के सपंर्क में आकर ही पुरूष चरित्रवान धैर्यवान एवं तेजस्वी बनता है नारी सम्मान की बात याद आती हेै तो हमारे पूर्वज मनु का कथन याद आता है कि जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहां देवना निवास रत होते है। यह बात सही है कि जिस समाज में िस्.त्रयों का स्थान उंचा है उसे श्रेष्ठ माना जाता है। हमारे यहां नारी को पैरों की जूती समझा जाता है। लेकिन अब कुछ परिस्थितियां बदल रही है फिर भी समाज में नारी की स्थिति में ंसतोषजनक सुधार हुआ है। आज भी वह अनमेल विवाह दहेज प्रथा, अंधविश्वासों, अशिक्षा आदि अनेक सामाकि कुरीतियों से घिरी है।

तभी तो प्रसि़़द्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चटटोपध्याय को कहना पड़ा कि चाहे कोईदेश चाहे कोई जाति हो जब समाज में नारी का स्तर नीचा हो जाता है तब उसके साथ शिशुअों का भी स्तर नीचा हो जाता है । सही बात है नारी सृष्टि की जननी है और जब सृष्टि की ही उपेक्षा की जाएगी तो वह उपेक्षित फल देगी ही।

प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने भी यही बात कही है कि स्त्री की उन्नति और अवनति पर ही राष्ट की उन्नति और अवनति निर्भर करती है।जब नारी को अपने परंपरागत मूल्यों सेहटते हुए देखता हूं तो स्टील का कथन याद आ जाता है कि संसार में एक नारी को जो करना है वह पुत्री बहन,पत्नी और माता के पावन कत्र्तव्यों के अंतर्गत आ जाता है। फिर भी पता नहीं क्यों आधुनिकता के चक्कर मे पड़ी नारी पश्चिमी देशों के बनाए हुए अंधे रास्ते पर चलकर ग्लैमर की दुनिया में खोना चाहती है। और यही वह कदम है जो पंरपरागत मूल्यों पर चलने वाली कल की नारी और आज की स्वच्छंद नारी में अंतर स्पष्ट करता है। भारतीय नारी भारतीय संस्कृति के परंपरागत मूल्यों को त्यागकर विदेशी नारी की नकल कर रही है। आज बनावट पैसे की चकाचौंध विज्ञापन की दुनिया व फिल्मी माध्यमों से प्रभावित नारी ने अपने सारे परंपरागत मूल्यों को धोकर अश्रृद्धा का रूप धारण कर लिया है। आज भी नारी को कविवर ु जयशंकर प्रसाद की एक बात याद रखनी होग कि नारी तुम केवल श्रृद्धा हो।

आज नारी स्वयं अपनी भूल से अनेक समस्याओं से घिर गयी है। उसकी समस्याओं का समाधान करना समाज का प्रथम कत्र्तव्य है। पुरूष प्रधान समाज को नारी का शोषण न करके उसकी उन्नति के लिए ईमानदारी से कार्य करना चाहिए। हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि ईश्वर के पश्चात् हम सर्वाधिक ़ऋणी नारी के है। प्रथम तोजीवन के लिए पुनश्च इसको जीने योग्य बनाने के लिए। आज नारी को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होने देने के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह विवाह समस्या ने भी उग्र रूप धाराण कर लिया है। जिसके कारण दहेज प्रथा, अनमेल विवाह ,बाल विवाह आदि समस्याओं का सामना नारी को करना पडता है।

 आज भी नारी की एक मुख्य समस्या उसका अशिक्षित होना है जिसके कारण वह अनेक धार्मिक अंध विश्वासों, सामाजिक कुरीतियों, रूढ़ियों एवं कुप्रथाओं से घिरी हुयी है। अत: आज समाज का कत्र्तव्य है कि वह इनकी समस्याओं का निराकरण करे । नारी मां पत्नी बहन पुत्री आदि के रूप मे अपने कत्र्तव्य को पूर्ण करने के लिए प्रयत्नशील है। लेकिन हमारा पुरूष प्रधान समाज अपना कत्र्तव्य पूरा नहीं कर पाता कि नारी को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाए। अत: समाज को अपना यह कत्र्तव्य पूर्ण करना चाहिए ताकि देश की उन्नति हो और न्यायोचित ढंग से नारी को उसका हक मिलें ।

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