Saturday, August 15, 2009

नारी

 नारी
महात्मा गांधी नारी से बहुत अधिक प्रभावित थे। महात्मागांधी के अनुसार नारी त्याग की मूर्ति है। जो कोई कार्य सही और शुद्ध भावना से करती है। तो पहाडों को भी हिला देती है नारी की धार्मिक प्रवृति को देखकर महात्मा गांधी को कहना पड़ा था कि जीवन में जो कुछ पवित्र और धार्मिक है स्त्रियां उसकी विशेष संरक्षिकाएं है। नारी की नैतिकता के संबंध में बापू ने कहा है कि यदि बल से अभिप्राय पशुबल से है तो निश्चय निश्चयही पशुबल में नारी कम शक्तिशालीहै यदि शक्ति से अ भिप्राय नैतिक बल से है तो नारी पुरूष से कही अधिक श्रेष्ठ है।


चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने नारी को संसार का सार बताया है वह युवावस्था में पुरूष की प्रेमिका रहती है, प्रौढ़ की मित्र और वृद्ध की सेविका रहती है।

 सेविलि नारी के प्रमुख अस्त्र आसुओं से बहुत प्रभावित है। वे कहते है कि नारी के रूप मात्र में हमारे कानूनों से अधिक सरलता रहती है। उनके आसुंओं में हमारे तकोZ से अधिक शक्ति होती है। 

नारी के शर्महया गुणों से प्रभावित कोल्टन को कहना पड़ा कि लज्जा नारी का सबसे कीमती आभूषण है।

 अंग्रेज कवि गोल्डिस्मथ का कहना हेै कि कांटो भरी साख को फूल सुंदर बना देते है। और गरीब से गरीब आदमी के घर की लज्जावती स्त्री सुंदर और स्वर्ग के समान बना देती है। 

भारतीय नारी अपनी लज्जा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। शर्म उसका प्रिय गहना है, तभी तो विवेकानंद को कहना पड़ा कि भारतीय नारी का नारीत्व बहुत आर्कषक है।

 जयशंकर प्रसाद जैसे कवि नारी,तुम केवल श्रृद्धा हो कहकर चुप हो जाते है। मगर इन कम शब्दों में भी कितनी बड़ी बात है।

नारी को पुरूषों के गुणों की कसौटी बताते हुए दार्शनिक गेटे कहते है कि नारियों का संपर्क ही उत्तमशील की आधारशिला है। शीलवती नारियो के संपर्क में आकार ही पुरूष चरित्रवान, धैर्यवान, एवं तेजस्वी बनता है।

लेखक जैनेन्द्र कुमार नारी को पुरूष के लिए सच की कसौटी मानते हुए कहते है कि जो स्त्री से अपने को बचाता है, वह सच से अपने को सदैव दूर रखता है। स्त्री झूठ नहीं है। और पुरूष के लिए सच की चुनौती स्त्री के रूप में आती है। बाबी का तो कहना है कि ईश्वर के पश्चात हम सर्वाधिक ऋणी नारी के है। प्रथम तो जीवन के लिए पुनश्च उसको जीने योग्य बनाने के लिए

प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक विक्टर ह्यूगो ने कहा है कि मनुष्यों के पास दृष्टि होती है, नारी के पास दिव्यदृष्टि।

महषिZ रमण नारी के त्याग, ममता, गुणों, से प्रभावित होकर कहते है कि पति के लिए चरित्र, संतान के लिए ममता, समाज के लिए शील, विश्व के लिए छाया तथा जीवमात्र के लिए करूणा संजोने वाली महाप्रकृति का नाम नारी है।

Z आचार्य चतुरसेन शास्त्री कहते है कि नारी जगत की एक पवित्र स्वर्गीय ज्योति है, त्याग उसका स्वभाव क्षमा प्रदान उसका धर्म सहनशीलता उसका व्रत और प्रेम उसका जीवन नारी के सबसे प्रभावशाली जननी के रूप से प्रभावित होकर कहते है कि नारी सृष्टि की परम सौन्दर्यमयी सर्वश्रेष्ठ कृतिहै। सृजन के आदि से विश्व उसकी गोद में क्रीड़ा करता आ रहा है। उसकी मधुमति मुस्कान में महानिर्माण का स्वप्न है ओैर भ्रमण में विनाश की प्रलयकारी घटायें।

प्रेम करने के नारी के अनूठे गुण से प्रभावित होकर कवियित्री महादेवी वर्माZZZ कहती है कि काव्य और प्रेम नारी हृदय की संपत्ति है। पुरूष विजय का भूखा होता है। नारी सर्मपण की पुरूष लूटना चाहता है नारी लुट जाना। 

मोपासा तो कहते है कि प्रेम किस प्रकार किया जाता है इसे कवेल नारियां ही जानती है। नारी की सुंदरता से प्रभावित हस्र्ट बोलर्ते है कि विश्व में कोई वस्तु इतनी मनोहर नहीं जितनी की सुशील और सुंदर नारी।
नारी का बातूनी होना आम बात है तभी तो मोलिना को कहना पड़ा कि नारी का होना और चुप रहना दो विरोधी बातें है। 

नारी की पवित्रता से प्रभावित नोबल पुरस्कार प्राप्त रविन्द्रनाथ टैगोर कहते है। पवित्र नारी सृष्टि की सर्वोत्तम कृति होती है। वह सृष्टि के संपूर्ण सौन्दर्य को अपने में आत्मसात किए रहती हेै।

नारी के संबंध में महापुरूषों की अपनी राय है। किसी ने उसे श्रृद्धा की देवी, किसी ने त्याग की मूर्ति, किसी ने पवित्रता का घोतक तो किसी ने पेरों की जूती ताड़न का अधिकारी बताया है।

 नारी की महिमा महापुरूषों ने अनेक रूपों में बतायी है। वैसे किसी ने कहा है कि हर महापुरूष की सफलता के पीछे किसी न किसी नारी का हाथ रहा है। मर्यादा पुरूषोत्तम राम की नींव यदि सीता पर आधारित है तो गांधी जी की महानता में कस्तूबा का हाथ कम नहीं है। तुलसीदास को महान बनाने में रत्नावली का हाथ माना जाता है। जब महापुरूषों की सफलता के पीछे नारी का इतना हाथ है तो वे नार से प्रभावित हुए बिना नहीं रहे होगें। 

इस तरह देश विदेश के अनेक विद्वानों , कवियों, लेखकों ने नारी के संबंध में विचार प्रकट किए है। सभी उसके अलग अलग रूपों से प्रभावित हुए दिखते है। नारी को अनंत गुणों से भरपूर इस पृथ्वी की सर्वश्रेष्ठ रचना माना जा सकता है। 


इतना सब कुछ होते हुए भी समाज में नारी की दशा दयनीय है। वह दहेज प्रथा, अशिक्षा, अंध विश्वासी रूढ़ियों प्रथाओंआदि सामाजिक बुराईयों से घिरी है। उसे तुलसीदास के त्रेता युग के समाज आज इक्कीसवीं सदी में प्रवेशकरते भारत में ताड़ना, का अधिकारी मानाजा रहा है। 

परिस्थियां बदल गयी है। नारी काम कर रही है। पुरूषों के साथ चल रही है। फिर भी उसे अनपढ़ होने के कारण गंवार, उपेक्षित होने के कारण शूद्र अनार्थिक जीव के कारण ढोर के समकक्ष रखा जा रहा है। आज नारी होशियर सामथ्र्यवान है फिर भी नारी को समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं हुआ है। अत: हमारा यह कत्र्तव्य बनता है कि हम इन महापुरूषों से कुछ सीखें व नारी को समाज मे सम्मानजनक स्थान प्रदान करें

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