शौंचालय और स्वास्थ्य
हमारे देश के सार्वजनिक शौंचालय हमारे स्वास्थ्य व स्वच्छता के प्रति हमारी सोच व मानसिकता को दर्शाते हैं। गंदगी से भरे, बीमारियों के ढेर, बुरी तरह बसाते, मक्खियो मच्छरों से सने, बज-बजाते, शौचालय हमारे अस्वस्थ मानसिकता को दर्शाते हैंऔर यह प्रदर्शित करते हैं कि खुले में शैाच करना हमारी वंशानुगत बीमारी है । जिससे हमें निजात पाना होगा।
यही कारण है कि अपने पूर्वजों को याद करते हुये कहीं भी खड़े होकर अपनी लघुशंका मिटा लेते हैं और जहाॅ पानी देखते हैं वहाॅ अपनी बड़ी शंका का समाधान कर लेते हैं। हमें किसी भी सार्वजनिक स्थान पर जब खुले आम लघु शंका करने में दिक्कत नहीं होती है तोगांव देहात में दिशा मैदान जाना फेशन है। घर में सुविधा होते हुये भी लोग नहीं जाते हैं और यही कारण है कि धन-धान्य से सम्पन्न होने के बावजूद भी अपने घरों को इसके लायक नहीं बनाते।
यदि सरकार के द्वारा यह सुविधा कहीं यदि उपलब्ध कराई जाती है तो उसे भी गन्दा कर नष्ट कर देते हैं और अच्छा काम न करेंगे और न करने देंगे वाले भले मानस की तरह कार्य करते हैं। इसी कारण इस देश की 67 प्रतिशत से अधिक आबादी खुले में शौंच का आनंद ले रही है जिसे अपने धार्मिक अंधविश्वासों से जोड़कर इस प्रथा को और बढ़ावा दिया जा रहा है।
हजारों साल पुरानी यह परम्परागत प्रथा उस समय थी जब घनी आबादी नहीं थी । लोग जंगलों में रहा करते थे। गांव देहात में पानी की व्यवस्था नहीथी। अधिकांश गांव की आबादी नदी तालाब नाले से पानी लेने जाती थी और वहीं पर कपड़े धाने नहाने आदि पानी सम्बन्धी कार्य के साथ इस कार्य को भी किया जाता था।
लेकिन आज परिस्थिति बदल गई है। घर घर गांव-गांव पानी बिजली उपलब्ध है। गांव की घनी आबादी हो गई है। जंगल कटकर समाप्त हो गये हैं। ऐसे माहौल में पुरानी व्यवस्था के अनुसार खुले में शौंच करना अपराध को जन्म दे रहा है और इसी कारण 70 प्रतिशत महिलाओं के साथ यौन हमले सम्बन्धी अपराध घटित हो रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी हम अपनी पुरानी व्यवस्था में परिवर्तन करने तैयार नहीं है।
सरकार के द्वारा निर्मल भारत अभियान एवं ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के अन्तर्गत करोड़ों रूपये इस व्यवस्था को समाप्त करने में खर्च किये जा चुके हैं लेकिन हमारे द्वारा इस व्यवस्था को जानबूझकर नहींअपनाया जा रहा है और शासकीय कार्य में असहयोग प्रदान कर निर्मल भारत योजना को असफल किया जा रहा है।
हमारे देश के सार्वजनिक शौंचालय हमारे स्वास्थ्य व स्वच्छता के प्रति हमारी सोच व मानसिकता को दर्शाते हैं। गंदगी से भरे, बीमारियों के ढेर, बुरी तरह बसाते, मक्खियो मच्छरों से सने, बज-बजाते, शौचालय हमारे अस्वस्थ मानसिकता को दर्शाते हैंऔर यह प्रदर्शित करते हैं कि खुले में शैाच करना हमारी वंशानुगत बीमारी है । जिससे हमें निजात पाना होगा।
यही कारण है कि अपने पूर्वजों को याद करते हुये कहीं भी खड़े होकर अपनी लघुशंका मिटा लेते हैं और जहाॅ पानी देखते हैं वहाॅ अपनी बड़ी शंका का समाधान कर लेते हैं। हमें किसी भी सार्वजनिक स्थान पर जब खुले आम लघु शंका करने में दिक्कत नहीं होती है तोगांव देहात में दिशा मैदान जाना फेशन है। घर में सुविधा होते हुये भी लोग नहीं जाते हैं और यही कारण है कि धन-धान्य से सम्पन्न होने के बावजूद भी अपने घरों को इसके लायक नहीं बनाते।
यदि सरकार के द्वारा यह सुविधा कहीं यदि उपलब्ध कराई जाती है तो उसे भी गन्दा कर नष्ट कर देते हैं और अच्छा काम न करेंगे और न करने देंगे वाले भले मानस की तरह कार्य करते हैं। इसी कारण इस देश की 67 प्रतिशत से अधिक आबादी खुले में शौंच का आनंद ले रही है जिसे अपने धार्मिक अंधविश्वासों से जोड़कर इस प्रथा को और बढ़ावा दिया जा रहा है।
हजारों साल पुरानी यह परम्परागत प्रथा उस समय थी जब घनी आबादी नहीं थी । लोग जंगलों में रहा करते थे। गांव देहात में पानी की व्यवस्था नहीथी। अधिकांश गांव की आबादी नदी तालाब नाले से पानी लेने जाती थी और वहीं पर कपड़े धाने नहाने आदि पानी सम्बन्धी कार्य के साथ इस कार्य को भी किया जाता था।
लेकिन आज परिस्थिति बदल गई है। घर घर गांव-गांव पानी बिजली उपलब्ध है। गांव की घनी आबादी हो गई है। जंगल कटकर समाप्त हो गये हैं। ऐसे माहौल में पुरानी व्यवस्था के अनुसार खुले में शौंच करना अपराध को जन्म दे रहा है और इसी कारण 70 प्रतिशत महिलाओं के साथ यौन हमले सम्बन्धी अपराध घटित हो रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी हम अपनी पुरानी व्यवस्था में परिवर्तन करने तैयार नहीं है।
सरकार के द्वारा निर्मल भारत अभियान एवं ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के अन्तर्गत करोड़ों रूपये इस व्यवस्था को समाप्त करने में खर्च किये जा चुके हैं लेकिन हमारे द्वारा इस व्यवस्था को जानबूझकर नहींअपनाया जा रहा है और शासकीय कार्य में असहयोग प्रदान कर निर्मल भारत योजना को असफल किया जा रहा है।
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