आतंकवाद विरोध
हम यह सोचते है कि शांति पूर्वक मोमबत्ती की एक लौ जलाकर आतंकवाद के हेंड ग्रेनेड, आर.डी.एक्स ,एके. 47 रायफल का मुकाबला नहीं किया जा सकता । तो हम गलत हैं । पूरे देश की सड़कों पर हर मूल, वंश ,वर्ण,वर्ग ,मजहब , तबके के लाखों लोगों ने मोमबत्ती की छोटी सी लौ जलाकर एकता की ऐसी मिसाइल जलाई है जिसके सामने परमाणु बम की चमक-धमक, दमक भी फीकी पड़ गई है ।
हमारा यह सोचना गलत है कि आतंकवाद का विरोध सरकारी वाहन जलाकर होना चाहिए । सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले करके होना चाहिए । जन सेवकों के पुतला दहन से विरोध होना चाहिए । हम यह गलत देखना चाहते हैं कि आतंकवाद के विरोध स्वरूप उन सुरक्षा कवच की होली जलाई जानी चाहिए थी । जो हमारे सिपाहियों को नहीं बचा पाई । उन हेलमेट की तोड़ -फोड़ होना चाहिए थी जो जंग लगे होने के कारण ऐन वक्त पर काम नहीं आये । हमारा यह भी सोचना गलत है कि उन बंदूकों को नष्ट करके विरोध होना चाहिए था जो ऐन वक्त पर काम न आ सकी, और सुरक्षा बल केवल हाथ मलते रहें ।
हमारा यह भी सोचना गलत है कि विरोध स्वरूप उस खुफिया तंत्र को तितर-बितर करना चाहिए था जो समय रहते जानकारी होते हुए भी कठोर कदम नहीं उठा पाया । उन व्यक्तियों को सरेआम सूली पर चढ़ाकर विरोध होना चाहिए था जो आतंकवादियों से मिले हुए है । उन चौकीदारों को सरे आम पदमुक्त करके विरोध होना चाहिए था जिनकी सघन चौकसी में वे सीमा में प्रवेश कर गये । उन सुरक्षा कर्मचारियों को बेनकाब करके विरोध होना चाहिए था जिनके सुरक्षा दस्ते में वे सेंघ लगाकर आये थे । उन जयचंदों को मौत के घाट उतारकर विरोध होना चाहिए था, जिनकी सहायता से वे महीनों से भारत में फलफूल रहे थे ।
उन विभीषणों के नरसंहार से आतंकवाद विरोध होना चाहिए था जिन्होंने देश के भेद बेचे । उनके सहयोगियों के कफन-दफन से विरोध होना चाहिए था। जिन्होंने चंद पैसों के खातिर उन्हें मोबाइल सिम, सूचना, नक्शे, जानकारी, उपलब्ध कराई । उस धरती को नष्ट करके विरोध होना चाहिए था । जहां रहकर उन्होंने आतंकवाद की शिक्षा, दीक्षा, प्रशिक्षण प्राप्त किया था । उन आकाओं की मृत्यु से विरोध होना चाहिए था जिनके इशारे पर उन्होंने काम किया ।
यदि हम ऐसा सोचते हैं तो गलत सोचते हैं । हमें ऐसा विरोध करना चाहिए था कि हम भ्रष्टाचार की होली जलाये, सीमा पर कड़ी चौकसी रखें, आपस में जाति, धर्म, मजहब, के नाम पर बम की तरह न फटे । जिस तरह देश की जनता ने सड़क पर आम और खास का भेद भाव न रखते हुए विरोध व्यक्त किया है । वह देश चलाने वालों के लिए एक सीख है कि वह सब करें, लेकिन देश की एकता, अखंडता , अक्षुण्णता के साथ खिलवाड़ न करें । यदि समय रहते उन्हें समझ नहीं आती है तो उन्हें राजमहलों से सड़क पर आने में ज्यादा समय नहीं लगेगा ।
हमें यह समझना चाहिए कि देश की जनता करोड़ों रूपयों का टैक्स, कर, चुंगी, राजस्व, लगान, फीस अदा करती है जिसके पीछे स्वतंत्रता से जीना, उनके प्राण एवं देह की रक्षा करना ,व्यापार, व्यवसाय, आवागमन की स्वतंत्रता होना ,बोलने और लिखने की छूट होना ,आदि मौलिक बातें शामिल है । यदि हमें संविधान में प्रदत्त प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का मूल अधिकार प्राप्त नहीं होता है तो यह हमारी नीतियों की कमी है जिसे हम आतंकवाद का नाम देकर नहीं छुपा सकते हैं ।
आतंकवाद हमारी लचर नीतियों की उपज है । हम ऐसे लोगों को घर में घुसने देते हैं जो हमारे देश के दुश्मन है । जो नहीं चाहते कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहें । जो नहीं चाहते कि भारत के लोग जातिपात, मजहब की दीवारों को तोड़कर एक साथ रहे ,जो धर्म के नाम पर मंदिर मस्जिद की आड़ लेकर लड़वाना चाहते हैं । उन लोगों को हम बढ़ावा देते हैं । अपने जहन में उन्हें पनाह देते हैं ।
ऐसे कुछ देश द्रोंही देश के दुश्मन हमारे देश में भी मौजूद हैं । जिनके पास अपना अस्तित्व बनाये रखने, लोगों को आपस में लड़वाने के सिवाय अन्य कोई तरीका नजर नहीं आता है । यही कारण है कि आज भारत धर्म, भाषा, जाति के नाम पर कई टुकड़ों में बंट चुका है । देश के अंदर उसके कई भाग हो गये हैं । आजादी का तिरंगा लहराने के लिए हमें जंग की तरह देश के अंदर तैयार करनी पड़ती है । कुछ जगह तो आजाद तिरंगा लहर भी नहीं पाता है ।
हम यह सोचते है कि शांति पूर्वक मोमबत्ती की एक लौ जलाकर आतंकवाद के हेंड ग्रेनेड, आर.डी.एक्स ,एके. 47 रायफल का मुकाबला नहीं किया जा सकता । तो हम गलत हैं । पूरे देश की सड़कों पर हर मूल, वंश ,वर्ण,वर्ग ,मजहब , तबके के लाखों लोगों ने मोमबत्ती की छोटी सी लौ जलाकर एकता की ऐसी मिसाइल जलाई है जिसके सामने परमाणु बम की चमक-धमक, दमक भी फीकी पड़ गई है ।
हमारा यह सोचना गलत है कि आतंकवाद का विरोध सरकारी वाहन जलाकर होना चाहिए । सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले करके होना चाहिए । जन सेवकों के पुतला दहन से विरोध होना चाहिए । हम यह गलत देखना चाहते हैं कि आतंकवाद के विरोध स्वरूप उन सुरक्षा कवच की होली जलाई जानी चाहिए थी । जो हमारे सिपाहियों को नहीं बचा पाई । उन हेलमेट की तोड़ -फोड़ होना चाहिए थी जो जंग लगे होने के कारण ऐन वक्त पर काम नहीं आये । हमारा यह भी सोचना गलत है कि उन बंदूकों को नष्ट करके विरोध होना चाहिए था जो ऐन वक्त पर काम न आ सकी, और सुरक्षा बल केवल हाथ मलते रहें ।
हमारा यह भी सोचना गलत है कि विरोध स्वरूप उस खुफिया तंत्र को तितर-बितर करना चाहिए था जो समय रहते जानकारी होते हुए भी कठोर कदम नहीं उठा पाया । उन व्यक्तियों को सरेआम सूली पर चढ़ाकर विरोध होना चाहिए था जो आतंकवादियों से मिले हुए है । उन चौकीदारों को सरे आम पदमुक्त करके विरोध होना चाहिए था जिनकी सघन चौकसी में वे सीमा में प्रवेश कर गये । उन सुरक्षा कर्मचारियों को बेनकाब करके विरोध होना चाहिए था जिनके सुरक्षा दस्ते में वे सेंघ लगाकर आये थे । उन जयचंदों को मौत के घाट उतारकर विरोध होना चाहिए था, जिनकी सहायता से वे महीनों से भारत में फलफूल रहे थे ।
उन विभीषणों के नरसंहार से आतंकवाद विरोध होना चाहिए था जिन्होंने देश के भेद बेचे । उनके सहयोगियों के कफन-दफन से विरोध होना चाहिए था। जिन्होंने चंद पैसों के खातिर उन्हें मोबाइल सिम, सूचना, नक्शे, जानकारी, उपलब्ध कराई । उस धरती को नष्ट करके विरोध होना चाहिए था । जहां रहकर उन्होंने आतंकवाद की शिक्षा, दीक्षा, प्रशिक्षण प्राप्त किया था । उन आकाओं की मृत्यु से विरोध होना चाहिए था जिनके इशारे पर उन्होंने काम किया ।
यदि हम ऐसा सोचते हैं तो गलत सोचते हैं । हमें ऐसा विरोध करना चाहिए था कि हम भ्रष्टाचार की होली जलाये, सीमा पर कड़ी चौकसी रखें, आपस में जाति, धर्म, मजहब, के नाम पर बम की तरह न फटे । जिस तरह देश की जनता ने सड़क पर आम और खास का भेद भाव न रखते हुए विरोध व्यक्त किया है । वह देश चलाने वालों के लिए एक सीख है कि वह सब करें, लेकिन देश की एकता, अखंडता , अक्षुण्णता के साथ खिलवाड़ न करें । यदि समय रहते उन्हें समझ नहीं आती है तो उन्हें राजमहलों से सड़क पर आने में ज्यादा समय नहीं लगेगा ।
हमें यह समझना चाहिए कि देश की जनता करोड़ों रूपयों का टैक्स, कर, चुंगी, राजस्व, लगान, फीस अदा करती है जिसके पीछे स्वतंत्रता से जीना, उनके प्राण एवं देह की रक्षा करना ,व्यापार, व्यवसाय, आवागमन की स्वतंत्रता होना ,बोलने और लिखने की छूट होना ,आदि मौलिक बातें शामिल है । यदि हमें संविधान में प्रदत्त प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का मूल अधिकार प्राप्त नहीं होता है तो यह हमारी नीतियों की कमी है जिसे हम आतंकवाद का नाम देकर नहीं छुपा सकते हैं ।
आतंकवाद हमारी लचर नीतियों की उपज है । हम ऐसे लोगों को घर में घुसने देते हैं जो हमारे देश के दुश्मन है । जो नहीं चाहते कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहें । जो नहीं चाहते कि भारत के लोग जातिपात, मजहब की दीवारों को तोड़कर एक साथ रहे ,जो धर्म के नाम पर मंदिर मस्जिद की आड़ लेकर लड़वाना चाहते हैं । उन लोगों को हम बढ़ावा देते हैं । अपने जहन में उन्हें पनाह देते हैं ।
ऐसे कुछ देश द्रोंही देश के दुश्मन हमारे देश में भी मौजूद हैं । जिनके पास अपना अस्तित्व बनाये रखने, लोगों को आपस में लड़वाने के सिवाय अन्य कोई तरीका नजर नहीं आता है । यही कारण है कि आज भारत धर्म, भाषा, जाति के नाम पर कई टुकड़ों में बंट चुका है । देश के अंदर उसके कई भाग हो गये हैं । आजादी का तिरंगा लहराने के लिए हमें जंग की तरह देश के अंदर तैयार करनी पड़ती है । कुछ जगह तो आजाद तिरंगा लहर भी नहीं पाता है ।
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