कबीर
एक क्रांतिकारी कवि
संत
कबीर एक महान क्रांतिकारी
कवि थे। जिन्होंने बिना लाग
लपेट के समाज में व्याप्त
कुरीतियोंए बुराईयांे को
उजागर किया था। उन्होंने समाज
में व्याप्त जातिए धर्मए वर्ग
आदि के मध्य विद्यमान भेदभाव
को बडी सहजता से व्यक्त किया
था।
उनकी
वाणी बहुत सरलए सुन्दरए आम
बोलचाल की भाषा में थी। उन्होने
क्षेत्रीय भाषा अपनाकर दैनिक
बोलचाल के शब्दो का प्रयोग
अपनी वाणी में किया था।
उनके
दोहाए साखीए बीजकए उलटए बंसिया
आज भी शोध का विषय है। एक पंक्ति
में एक ग्रंथ की बात कह देना
उनकी विशेषता थी बडी आसानी
से उन्होने अंधविश्वासए जातिय
भेदभावए छुआछूतए पांखड जैसी
सामाजिक बुराईयो को व्यक्त
किया था । यही कारण है कि आज
कई कवि आकर चले गये परन्तु
कबीर अपने स्थान पर अडिग हैं
। उनके आसपस दुनिया का कोई कवि
नहीं लगता है।
कबीर
के दोहो को साखी कहा जाता है
। साखी शब्द साक्षी का प्रतीक
है । साक्षी का अर्थ है सामने
होना । महान कबीर ने अपने जीवन
में जो देखा जो सुना जो अनुभव
किया उसी को अपनी साखियों में
व्यक्त कियाए जिन्हें दोहा
भी कहा जाता है । इसी कारण आज
साखी हिन्दी साहित्य में ज्ञान
के कोष के रूप में जानी जाती
है ।
भक्तिकालीन
निर्गुण संत परंपरा के प्रमुख
कवि कबीर का जन्म काशी में हुआ
और निर्वाण मगहर में प्राप्त
हुआ । उन्होने कोई प्रारंभिक
शिक्षा प्राप्त नहीं की थी।
आस.पास
के अनुभव से ज्ञान प्राप्त
किया था। आस.पास
की अव्यवस्था शब्दों में
व्यक्त कर महानता प्राप्त की
थी ।
संत
कबीर भक्तिकालीन एक मात्र
कवि थे जिन्होने राम.रहीम
के नाम पर चल रहे पाखंडए भेद.भावए
कर्म.कांड
को व्यक्त किया था। उस समय राज
सत्ताए प्रभु सत्ता के नाम
पर व्याप्त डर के कारण आम आदमी
जो कहने से डरता थाए उसे विचारक
कबीर ने धूम धडाके से कहा ।
दार्शनिक
कबीर का आदर्श मनुष्य धर्मिकए
सामाजिक भेदभाव से मुक्त
प्राणी था जो पत्थर नहीं पूजता
थाए ईश्वर के नाम पर मुर्गे
जैसी बांग नहीं देता था।
छोटे.बडे
सभी उसके लिए बराबर थ्ज्ञे ।
जो कर्मवान थाए ज्ञान का पुजारी
थाए अपने अंदर ईश्वर को खोजता
था। उसके नाम की माला नहीं
फेरता था बल्कि जुबान से भक्ति
करता थाए वह संकीर्णताओ से
दूर था।
कबीर
का मनुष्य ज्ञान की सहायता
से दुर्बलताओ को मुक्त करने
वाला प्राणी था जिसने बाहरी
आंडबरांे का विरोध कर अपने
भीतर झांककर ईश्वर की प्राप्ति
की थी ।
कबीर
के प्राणी की पहचान कुल से नही
बल्कि कर्म से होती थी । यही
कारण है कि उनका ईश्वर के सबंध
में कहना था कि न मैं देवल मेंए
न मै मस्जिद मेंए न काबे.कैलाश
मेंए न तो कौने क्रिया कर्म
मेंए न ही योग.बैराग
मेंए मैं सब श्वांसों की श्वास
में ।
कबीर
जन भाषा की निकट कवि थे । सरल
ढंग से कठिन चिंतन को व्यक्त
करने की अद्भूत शक्ति उनमें
थी । वे एक शब्द में सम्पूर्ण
दर्शन ज्ञान उडेल देते थेए
यही कारण हे कि दिगम्बर के
गांव में क्या धुबियन का काम
ष्ष्कहने वाला कवि केवलए कबीर
हो सकता है ।
ज्ञान
की महिमा का बखान करने वाला
कबीर का कहना था कि जैसे तलवार
का महत्व होता है मयान का नहीं
वैेसे ही साधु के ज्ञान की परख
होती हैए उसकी जातिकी परख नहीं
होती ।
कबीर
हिन्दी साहित्य के पहले
व्यंग्यकार है जिन्होंने
अपनी वाणी में सामाजिकर्ए
आिर्थकए धार्मिक जाति विरोधाभासों
को व्यक्त किया है । यही कारण
है कि वे आज व्यंग्यकारो के
आदर्श है ।
महान्
कबीर भारत के वे सुकरात हैंए
जिन्होंने जहर के प्याले में
बैठकर अमृत की वर्षा की ।
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