आ बैल मुझे मार
‘‘ आ बैल मुझे मार‘‘ कहावत बहुत लोग हमारे बीच मंे चरितार्थ करते हैं।
जिसका अर्थ होता है, बैठे -बिठाये मुसीबत मोल लेना या जानबूझकर विपत्ति में
फंसना ऐसे लोगों की हमारे बीच में कमी नहीं है , जो जानबूझकर विपत्तियों को
बुलावा देते हैं। यह बात सोचने की है कि ‘‘ कोई मनुष्य बैल जैसे भीमकाय जीव
से क्यांे बोलेगा कि आ भाई और मुझे मार‘‘ । लेकिन इस दुनिया में दया धर्म,
स्वार्थ, लोभ परोपकार आदि अच्छाइयां व बुराइयां मौजूद है। जिनके कारण लोगों
को ‘‘ अब आ बैल मुझे मार‘‘ वाला काम करना पड जाता है। यहां पर बैल
मुसीबत, जोखिम विपत्ति , हानि आदि का द्योतक है।
भगवान शंकर का वाहन ‘‘ बैल‘‘ बडा सीधा-साधा , मस्तमौला, व
हट्टा-कट्टा जीव है, लेकिन अगर हम जानबूझकर उसे छेडे, बार-बार उसके
सामने लाल कपडा पहनकर जायें, उसके गुस्से को भडकाये तो वह हमें बुरी तरह
खदेड देता है। आम जीवन में इसी तरह कई अनुभवनों को लेकर ‘ आ बैल मुझे
मार‘ उक्ती का जन्म हुआ है, जिसके हम प्रायः शिकार होते रहते है।
अब आप अपने लोकतांत्रिक भारत देश की जनता को देखिये लोग बडे
शौक से नेता चुनते हैं, उन्हें अपना अमूल्य वोट देते है। जब काम का वक्त आता
है, तब नेताजी नदारत रहते है।अब आप ही सोचिए यह ‘‘ आ बैल मुझे मार‘6 वालीकहावत हुई या नहीं। कई लोगों की आदत होती है। कि वह जानबूझकर मुसीबतमें फंसते हैं। अब आप मुझे ही देखिये एक दिन जबरदस्ती पडोसी की स्कूटरसुधारने बैठ गया । दिन भर भूखा-प्यासा स्कूटर सुधारता रहा स्कूटर तो नहींसुधरी , उपर से पडोसी का यह ताना जरूर सुनने को मिला कि ‘आपने अच्छीभली स्कूटर खराब कर दी , जरा सी खराबी थी, मिस्त्री के पास जाने देते सुधरजाती ।‘
यह बात नहीं है कि हम जानबूझकर मुसीबत को बुलाये , तभी हमारी जग
हंसाई हो। कई बार जब हम अपनी विद्वता झाडने लगते है। तब भी ‘आ बैल मुझे
मार‘ कहावत के शिकार हो जाते है। अब आप अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किये मेरे
मित्र को देखिये। एक बा रवह अपनी विद्वता जतलाने कुछ कम पढे-लिखे युवक सेअंग्रेजी शब्दों के हिन्दी अर्थ पूछने लगा। उस युवक से तो नहीं बने, लेकिन जब
मेरे मित्र से उस युवक ने उडद की दाल ,मूंग की दाल, अरहर की दाल आदि की
अंग्रेजी पूछी तो उनकी डिग्री धरी रह गई ।
जीवन में कंजूसी करना अच्छी बात है। ठोस आर्थिक आधार का पहला मंत्र
कंजूसी ही है लेकिन कई बार कंजूसी के चक्कर में अपनी मुसीबत हो जाती है।
अब शर्माजी का ही देखिये। उनकी बीबी ने कहा कि एक बढई बुला लाओ,
बीस-तीस रूपये लेगा, पर टेबिल कुर्सी सही कर देगा। शर्माजी ने सोचा‘ कौन
खर्च करें छोटा-मोटा काम तो मैं खुद ही कर सकता हॅू, अरे जब बडे-बडे डैमों ,
पुलों के नक्शे बना दिये तो क्या टेबिल का पाया और कुर्सी का सनमाइका नहीं
लगा सकते।‘‘ बस टीवी को छोडकर शर्माजी बैठे गये बढईगिरी करने। सुबह से
शाम हो गई सारा फेविकोल खत्म हो गया, लकडी के टुकडे उटपटांग कट गये,
लेकिन शर्माजी का काम न हुआ। आखिर में थक-हारकर बढई बुलाना पडा।
चुस्त, चालाक बनना बहुत अच्छा है, लेकिन जब हम जरूरत से ज्यादा
चालाक बनते हैं तब मुसीबत को गले लगाते हैं। अब मेरे सहकर्मी दोस्त को देखियेदफ्तर में बॉस से बीबी की बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी मांग ली और
बीबी-बच्चों समेत पहंुच गया टॉकीज देखने पिक्चर, लेकिन उसे क्या पता था किवहां पर पहले से बॉस लाइन में लगे मिलंेगे और उसे अपनी जगह खुद लाइन मेंलगायंेगेः और उनकी टिकट खरीदनी पडेगी।
भलाई करना मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है, लेकिन कई दफा भलाई
करने के चक्कर में बुराई हाथ लगती है। अब आप किसी को अपनी जमानत पर
बैंक का ऋण दिलवायें और ऋण लेने वाला बैंक को ऋण वापिस न करें तो
मुसीबत आपकी होगी। यह बात नहीं कि भलाई करने पर ही मुसीबत गले पडती
है। किसी का बुरा करने पर भी ‘‘ उल्टे बांस बरेली ‘‘ को लद जाते है।
किसी के प्रति दया , दर्शाना, परोपकार करना, गलती को माफ करना,
सद्व्यवहार है, लेकिन कई बार इसी दया-धर्म के चक्कर में अपनी खाट खडी हो
जाती है। अब आप देश में उग्रवादियों को देखिए सरकार ने कई बार उनको पकडा
जेल में बंद किया और माफी मांगने पर छोड दिया, लेकिन जब-जब सरकार इनके
प्रति ढीली पडी तब-तब इन्होंने सारे देश में अराजकता फैलाने की कोशिश की है।
यह बात विचारणीय है, कि क्या सौ करोड लोगों की सरकार इतनी कमजोर है
िकवह इन थोडे से आतंकवादियों पर नियंत्रण नहीं रख सकती ? यह देखा गया हैकि कभी-कभी किसी का उपकार करने में अपनी गांठ ढीली हो जाती है। अब जबहम अपने किसी जान-पहचान वाले को दुकानदार से सामान दिलवायें और उसकेन चुकाने पर खुद चुकायें, तब समझ में आता है कि उपकार करने पर मुसीबतकिस प्रकार गले पडती है।
इसी प्रकार ज्यादा होशियार बनने पर, शेखी बघारने पर अपने मुंह मिया
मिट्ठू बनने पर हम लोग‘आ बैल मुझे मार‘ उक्ति को चरितार्थ करते हैं और अगर
हम कोई काम सावधानीपूर्वक आगे पीछे सोच-समझकर करें तो कभी मुसीबत में
नहीं फंस सकते हैं, लेकिन जल्दीबाजी के कारण हम अपना काम बिगाड बैठते हैं
और लोगों को ‘आ बैल मुझे मार‘ कहकर हंसने का मौका मिल जाता है।
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