Monday, June 24, 2013

नई पीढ़ी के व्यंग्यकारों में श्री उमेश कुमार गुप्ता

                                                             वेलेन्टाइनडे कानून

                                                                                 भूमिका
                                                           हिन्दी गद्य में व्यंग्य एक शैली के रूप में पिछले 50 वर्षो में इतनी तीव्रता से प्रति स्थापित हुआ कि सब उसकी प्रगति से चौकन्ने हो गये । यद्यपि व्यंग्य के जन्मदाताओं में  कबीर का नाम सर्वप्रथम लिया गया है तथापि भारतीय भाषाओं में कबीर के समकालीन और भी लेखक हुये हैं जिन्होने समाज में फैली विसंगतियों, धार्मिक दुराचरण, अत्याचार, अनाचार आदि से समाज को हानि पहुंचाने वाले तत्वों पर वक्रोक्तियों के माध्यम से करारे व्यंग्य बाण छोड़कर समाज को तिलमिला दिया । सफेद पोशों की कलई खोलकर रख दी । सही अर्थो में कबीर और व्यंग्यकारों ने समाज के दुश्मनो के चेहरो पर चढ़े मुखौटों को उतारकर उनके सही चेहरे, चाल और चरित्र को उजागर किया । 


                                                                      वर्तमान हिन्दी साहित्य मे व्यंग्य को स्थापित करने वालों में मध्य प्रदेश के श्री हरिशंकर परसाई एंव शरद जोशी का नाम बड़े आदर के साथ लिया गया है । उनका लेखन इतना लोकप्रिय हुआ कि समाचार  पत्र और पत्रिकाओं ने नियमित कॉलम स्थापित किये और उन्हें बड़े सम्मान के साथ प्रकाशित किया । स्वतंत्र भारत में जिस गति से समाज, शासन और व्यक्ति का चारित्र पतित हो रहा था उसे रोकने टोकने वाला शायद कोई नहीं था । इसलिये अच्छे खासे कथाकार श्री परसाई और शरद जोशी ने अपनी लेखनी को व्यंग्य की और मोड़ दिया । आज उनका सोपा बिरवा पुष्पित पल्लवित होकर ऐसा लहलहा रहा है कि हिन्दी साहित्य में व्यंग्य लेखको की बाढ़ सी आ गई है । 


                                                         नई पीढ़ी के व्यंग्यकारों में श्री उमेश कुमार गुप्ता एक प्रखर व्यंग्यकार माने जाते हैं । उन्होने समाज में फैल रही विसंगतियों पर अपनी लेखनी से तीव्र प्रहार किये हैं । ‘‘ वेलेन्टाईनडे कानून’’  उनके ऐसे ही पैने व्यंग्यों का संग्रह है जिसे पढ़कर अपने संस्कारों और संस्कृति से च्युत, कर्तव्यभ्रष्ट दुराचारी,नारी शोषक, अंधविश्वासी, प्र्रपंचियों आदि के चेहरों से नकाब उतर जायेगें । संक्षेप मे इतना ही कहना चाहूंगा कि इन व्यंग्यों को पढ़कर ही इनका स्वाद चखा जा सकता है । आशा करता हू कि लेखक की इस कृति का पाठकगण गर्मजोशी के साथ स्वागत करेगें। 


                                                                   बटुक चतुर्वेदी
                                           प्रसिद्ध साहित्यकार भोपाल

           
 

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