मध्यस्थ बिचौलिये जिन्हें हिन्दी में मध्यस्थ , उर्दू में दलाल, अंग्रेजी में आरबिटेंटर
कहते हैं, बहुत काम के आदमी रहते हैं जो काम इस दुनिया में हम स्वयं नहीं कर
सकते हैं, उनहें यह बड़ी आसानी से कर देते हैं जिस काम के बीच में बिचौलिये
आ जाते हैं, उसके निपटने में ज्यादा समय नहीं लगता है। इनके शब्दकोष में
नेपोलियन और नेताओं की तरह ‘असंभव‘ शब्द नहीं होता है, इनके लिए सभी काम
संभव है। ये कहीं ना कहीं से काई तिकड़म भिड़ाकर लोगों का काम कर देते है।
बिचौलिये के पास हकीम लुकमान की तरह हर ला - इलाज मर्ज का
इलाज रहता है, ये आपको सात समुन्दर पार खाड़ी के देशों में नौकरी दिवाल
सकते हैं, घर बैठे बी.ए. पास करवा सकते हैं, मैटिंक की जाली अंक सूची लाकर
कालेज में प्रवेश दिलवा सकते हैं, किसी भ्रष्टाचारी से मिलकर आपके नालायक
इंटर फेल आवारा बेटे की अच्छी सरकारी नौकरी लगवा सकते हैं, बिचौलिये इस
पृथ्वी पर हर वह काम कर सकते हैं, जिसके लिए भगवान को विभिन्न रूपों में इस
संसार में बार-बार अवतार लेना पडता था।
बिचौलियों के लिए कोई काम छोटा या बडा नहीं रहता है। ये आपके पुत्र
पु़ित्रयों की शादी से लेकर उनके सुकुमार तक का नर्सरी में प्रवेश आसानी से करा
सकते हैं, ये छोटी सी खरीद से लेकर देश के सामरिक महत्व के सौदे तक में
अपना दखल रखते है, इनकी खोजबीन करना कठिन काम है, ये ऊपर से दिखने
में अदृष्यमान, सिर्फ अनुभव करने वाले जीव होते हैं, इनका हमें आभास हो सकता
है, परिचय नहीं ।इनकी खोजबीन के लिए रॉ.सी.आई.ए.के.जी.बी.स्कॉटलैंड यार्ड
जैसी प्रसिद्ध जासूसी संस्थाएं लगानी पडती हैं । वौफोर्स तोप सौदे को ही देखिए,
अभी तक बिचौलिये का पता नहीं चल पाया है और प्रतिभूतिकांड में बीच वाले
इतना खा गये हैं कि सही घोटाला राशि का आंकलन नहीं हो पाया है।
बिचौलिये का काम प्रायः सभी लोग करते हैं, डाक्टर , इंजीनियर, आदि सभी
इसमें सम्मिलित हैं। छोटा डाक्टर कमीशन पर बडे डॉक्टर के पास ऑपरेशन केस
भेजता है, वकील भी हर मुकदमें में मध्यस्थता करता है, बिचौलिए का काम आदमी
ही नहीं बल्कि उसके द्वारा संचालित पत्र-पत्रिकाएं , रेडियो, टेलीविजन आदि सभी
जनसंचार के सभी माध्यम भी करते हैं। पत्र-पत्रिकाएं घर बैठे ही आपका काम
करती है।, ये आपके लिए वर-वधू, नौकर-नौकरी, घोडा-गाडी, आदि की व्यवस्था
जुटाती है, ये बिना किसी परेशानी के हमारे लिए सुन्दर सुशील, गृहकार्य में दक्ष,
गौर वर्ण कन्या और चार अंकों की आय वाला सुशिक्षित , अमीर खान की तरह
सुन्दर वर दिलवाने में सहायक होते है। बिचौलिये जीवन की तीन मूलभूत
आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा, और मकान के लिए बहुत जरूरी हो गये हैं। आज के
जमाने में इनकी उपेक्षा करना रावण के दरबार में मेघनाथ की उपेक्षा के समान है।
जिस तरह सरकारी दफ्तरों में बिना मेवा चढ़ाये आपका काम नहीं हो सकता है,
उसी तरह बिना बिचौलियों के भी कोई काम नहीं हो सकता हैं।
बिचौलिये मुफ्त में काम नहीं करते हैं, मुफ्त में काम करना इनके उसूलों के
खिलाफ है, ये जनसेवा में नहीं बल्कि ‘मुफ्त नियरे राखिए‘ में विश्वास रखते हैं। ये
हम काम का ‘सत्य मेव जयते‘ वाले देशभक्तों की तरह अग्रिम वसूल कर लेते हैं,
इनमें हनुमान की तरह स्वामिभक्ति , राम की तरह पितृभक्ति का अभाव रहता है।
अगर हम यह सोचे कि ‘‘थैक्यू सर्विस‘‘ से काम चल जाएगा तो हमारा ऐसा सोचना
व्यर्थ है। ‘‘ थैक्यू सर्विस‘‘ का इन पर कोई असर नहीं पडता है। बिचौलियों से
मुफ्त में काम कराना आज के जमाने में हनुमानजी की तरह उडकर समुद्र पार
करने जैसे असंभव कार्य से भी बढकर दुष्कर कार्य है।
बिचौलिए जहां लाभदायक हैं, वहीं गुलाब में कांटे की तरह हानिकारक भी
है। ये मौका मिलने पर पंचतंत्र की नायिका ‘बंदरिया‘ की तरह दो लोगों की लडाई
में उनका हिस्सा हथियाने से नहीं चूकते हैं। इसलिए उनसे काम निकल जाने के
बाद लोग उसी तरह पछताते हैं, जिस तरह पांच साल के लिए नेता चुनने के बाद।
बिचौलियों से काम निकलवाने के लिए लोगों को आधुनिक लैलाओं की तरह
सावधानी बरतना चाहिए। आधुनिक लैलाएं जो नित्य अपना काम निकलवाने
नये-नये मजनुओं को जनम इस सावधानी के साथ देती है कि काम निकल जाये
और वह उनके गले में घंटी भी ना बांध पाये अर्थात समाज में हल्ला भी मचने ना
पाये और मजनूं शादी की बात सोचे बिना उनके आगे पीछे कुत्ते की तरह मंडराता
रहे। यदि यह सावधानी बिचौलिए से काम निकलवाते समय अपनायी जावे तो
सुनिश्चित ही चित भी हमारी होगी और पट भी।
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