Friday, December 30, 2011

भारत का संविधान और समाजिक न्याय


             भारत का संविधान और समाजिक न्याय

सामाजिक न्याय का आशय आम तौर पर समाज में लोगो के मध्य समता, एकता, मानव अधिकार, की स्थापना करना है तथा व्यक्ति की गरीमा को विशेष महत्व प्रदान करना है । यह मानव अधिकार और समानता की अवधारणाओं पर आधारित है और प्रगतिशील कराधन, आय, सम्पत्ति के पुनर्वितरण, के माध्यम से आर्थिक समतावाद लाना सामाजिक न्याय का मुख्य उद्देश्य हैं । भारतीय समाज में सदियों से सामाजिक न्याय की लडाई आम जनता और शासक तथा प्रशासक वर्ग के मध्य होती आई है । यही कारण हेै कि इसे हम कबीर की वाणी बुद्ध की शिक्षा, महावीर की दीक्षा, गांधी की अहिंसा, सांई की सीख, ईसा की रोशनी, नानक के संदेश में पाते हैं ।


सदियों से मानव सामाजिक न्याय को प्राप्त करने भटकता रहा है और इसी कारण दुनिया में कई युद्ध, क्रांति, बगावत, विद्रोह, हुये हैं जिसके कारण कई सत्ता परिवर्तन हुए हैं । जिन राज्यों और प्रशासकों ने सामाजिक न्याय के विरूद्ध कार्य किया उनकी सत्ता हमेशा क्रांतिकारियों के निशानों में रही है । इसलिए प्रत्येक शासक ने अपनी नीतियों मे सामाजिक न्याय को मान्यता प्रदान की है । इसे हम चाणक्य की राजनीति, अकबर की नीतियों, शेरशाह सूरी के सुधारों, में देखते हैं ।
हमारा भारतीय समाज पहले वर्ण व्यवस्था पर आधारित था जो धीरे धीरे बदलकर जाति व्यवस्था मंे परिवर्तित हो गया, उसके बाद असमानता, अलगाववाद, क्षेत्रवाद, रूढीवादीता, समाज में उत्पन्न हुई जिसका लाभ विदेशियों के द्वारा उठाया गया और ‘‘फूट डालो और राज्य करों’’ की नीति अपनाकर भारत को एक लम्बी अवधि तक पराधीन रखा। 

लेकिन लोगो की एकता अखण्डता और भाईचारे की भावना से आजादी की लडाई लडने पर भारत 15 अगस्त सन् 1947 को आजाद हुआ और उसके बाद भारत में सामाजिक न्याय की स्थापना, व्यक्ति का शासन, सोच की स्वतंत्रता, भाषण प्रेस की आजादी, संघ बनाने की स्वतंत्रता हो, इसके लिए सर्वोच्च कानून बनाये जाने की आवश्यकता समझी गई और डाॅ.राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा का गठन किया गया जिसमें डाॅ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जैसे महान् व्यक्तित्व को मसौदा समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया गया । 

संविधान सभा की कई बैठको के बाद भारत के संविधान की रचना की गई, जो विश्व का सबसे बडा, लिखित, अनूठा, संविधान है जिसमें सामाजिक न्याय को सर्वोच्चता प्रदान की गई है । यह दुनिया का सामाजिक न्याय को दर्शित करने वाला एक प्रमाणिक अभिलेख है ।

हमारे संविधान मंे सामाजिक और आर्थिक न्याय की गारंटी समस्त नागरिकों को तथा जीवन जीने की गारंटी प्रत्येक व्यक्ति को दी गई है। सामाजिक न्याय का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत हित और सामाजिक हित के बीच सामान्जस्य स्थापित करना है । इसलिए कल्याणकारी राज्य की कल्पना संविधान निर्माताओं ने की है। बहुजन हितांयैं, बहुजन सुखांयै को ध्यान में रखते हुये समाजवादी व्यस्था स्थापित की गई है ।


भारतीय समाजवाद अन्य राष्ट्ों के समाजवाद से अलग है । यहां पर सत्ता समाज में निहित रहती है, परन्तु उसका उपयोग समाज के हित के लिए हो इसलिए सरकार नियंत्रण रखती है । सामाजिक न्याय के लिए संविधान में जो प्रावधान दिये गये हैं उनका मुख्य उद्देश्य वितरण की असमानता को दूर करना तथा असमानों में संव्यवहारों में असमानता को दूर करना व कानून का प्रयोग वितरण योग साधन के रूप में समाज में धन का उचित बटवारां करने में किया जाये। इसका विशेष ध्यान रखा गया है ।
हमारे संविधान की उद्देशीयका संविधान का आधारभूत ढांचा है । जिसमें सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक न्याय प्रदान किये जाने की गारंटी प्रदान की गई है । इसके लिए भारतीय संविधान के भाग-3 में मौलिक अधिकार दिये गये हैं । भाग-4 में राज्यों को नीतिनिदेशक तत्व बताये गये है, जो राज्य की नीति का आधारस्तम्भ बताये गये हैं ।
लेकिन सामाजिक, आथर््िाक और राजनीतिक न्याय प्रदान किये जाने संबंधी उपरोक्त संवैधानिक उपबंध केवल संविधान के ‘‘आइना’’ में छबि बनकर रह गये हैं। लोगो का जीवन स्तर निम्न है, गरीबी, बेकारी, भुखमरी, अशिक्षा, अज्ञानता व्याप्त है । आर्थिक सामनता, सामाजिक न्याय आम जनता से कोसो दूर है ।
आज हमारे देश में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय प्राप्त करना आम जनता के लिए परीलोक की कहानी है। सामाजिक न्याय चुनावी मरूस्थल में मृगतृष्णा के रूप में जनता को दिखाया जाता है ।सभी राजनैतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय प्रदान किये जाने के नारे से भरे रहते हैं, लेकिन कोई भी दलगत जातिगत, व्यक्तिगत राजनीति से उठकर देशहित में न्याय प्रदान नहीं कर पाता है ।


देश की अधिकाशं जनता, गांव में रहती है । गांव में आज भी आजादी के 65 साल बाद भी बिजली, पानी, सडक, की सुविधाओं का अभाव हैं । देश की आधी आबादी लगभग अशिक्षित अल्पशिक्षित, अर्द्धशिक्षित है । 30 प्रतिशत लोग गरीबी का जीवन जी रहे हैं । एक समय का भोजन भी उनके लिए नसीब नहीं है । आज भी गावं की अधिकाश आबादी दिशा मैदान को जाती है । 


गांव में स्वास्थ्य, शिक्षा, जैसी बुनियादी सुवधिओं का अभाव है । देश के गावों में लोगो का जीवन स्तर निम्न है मनोरंजन साधनो का अभाव है, अधिकांश लोग गांव में आज भी जुआ, शराब, को मनोरंजन का साधन समझते हैं । गांव में पानी लाने आज भी मीलो जाना पडता है । घरों में फ्लेैश लेट्र्नि नहीं है लोग खुले आम जानवरों की तरह निस्तार करने मजबूर है ।

देश के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का अभाव है । लोगो को पढने के लिए कोसो मील दूर जाना पडता है । बीमार पडने पर घंटो बाद शहरो में स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती है तब तक अनेक लोग रास्ते में दम तोड चुके होते हैं । 

देश में अधिकाशं गांव को जोडने वाली पक्की सडक नहीं है शहर में सडक की यह स्थिति है कि मर्द को भी प्रसुति दर्द का एहसास करा देती है। बिजली नाम के लिए आती है केवल मोहनी के रूप में दर्शन देकर चली जाती है जिसके कारण लाखों हेक्टेयर खेती असिंचित रह जाती है । किसानों को समय पर बिजली, खाद, बीज, पानी नहीं मिलता है उसके उपर से प्राकृतिक आपदा भी सहन करनी पडती है । जिसके कारण कई किसान कर्ज न चुका पाने के कारण आत्म हत्या करते है ं। 

देश में आर्थिक न्याय का यह हाल है कि गरीब और गरीब अमीर और अमीर होता जा रहा है । शेयर बाजार, देश के व्यापार, व्यवसाय पर बडे व्यापारी उद्योगपति औद्योगिक घरानो का राज्य है । सरकार का अतिआवश्यक वस्तुओ दाल, शक्कर, आटा के बाजार भाव नियंत्रण नहीं है । महगाई आसमान छू रही है । पेट्ोल, डीजल, जैसे अति आवश्यक वस्तुओ के दाम सरकार के नियंत्रण के बाहर है । 

शेयर बाजार में कम दाम पर कम्पनी के आई.पी.ओ. निकाले जाते हैं बाद में उनकी कीमते बढा दी जाती है । जब उन शेयरों की कीमत बढ जाती है तो वहीं कम्पनियां दूसरो से खरीदवाकर उन्हें बाद में बेचकर अधिक पंूजी जुटाकर कर शेयरों की कीमत कम कर देती है । जिससे लोगों की मेहनत मजदूरी की पूंजी डूब जाती है जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है ।


देश में पंूजी वितरण में असमानता प्रति व्यक्ति उत्पादक क्षमता कम होने के कारण और प्राकृतिक संसाधनों का उचित दोहन न होने के कारण अमीरों और गरीबों के मध्य खाई बढती जा रही है । आय, वेतन, आर्थिक संसाधनों का असमान वितरण है। प्रति व्यक्ति आय कम है । देश में भ्रष्टाचार के कारण शासकीय नीतियों का लाभ आम जनता प्राप्त नहीं कर पाती है । भ्रष्टाचार का यह हाल है कि आजादी के बाद देश की सडकों के लिए जितना धन दिया गया है उससे सोने की सडके बन सकती थी तथा बांध और तालाबों पर इतना पैसा व्यय किया गया है कि उनकी दिवारे चांदी के बन सकती थी ।यदि सौ रूपये सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय प्रदान किये जाने बजट में प्रदत किए जाते हैं तो मात्र दस रूपये इस काम में आते हंै और नब्बे रूपये भ्रष्टाचार की भेटं चढ जाते हंै । यही कारण है कि आज इससे लडने एक नहीं हजारो हजार लोग देश को चाहिए । 

आज जहां देख्ेा वहां चिट फंड कम्पनियां कार्य कर रही है । वे अधिक ब्याज का लोभ लालच देकर लोगो के पसीने की कमाई जमा करवादेती है और बाद में उन्हे हड़प कर गायब हो जाती है । देश में जमा के नाम पर नाममात्र का ब्याज सरकारी बैंक देती है जब कि वही बैक लोगो को बढी हुई ब्याज दर पर ऋण देती है । इसलिए उसी ब्याज दर पर बैंक को भी लोगो को जमा पर ब्याज दिया जाना चाहिए । जिससे लोगों का रूंझान सरकारी बैंको की तरफ बढेंगा । 

देश में सामाजिक न्याय का प्रश्न हो तो साक्षरता की कमी है । लोग आज भी सदियों पुरानी रूढ़ी अंधविश्वास, परम्परा से जुड़े हुए हैं । आजादी के पूर्व के अधिंकाश लोग जो अशिक्षित है वह अंगूठा छाप हैं । लेकिन स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक भी सर्व शिक्षा अभियान के नाम पर करोडो रूपये खर्च किये जाने के बाद साक्षरता के नाम पर केवल हस्ताक्षर करना जानते हैं उन्हें अपने अच्छा बुरा समझने की शिक्षा अथवा ज्ञान नहीं दिया जाता है यही कारण है कि आज वे शोषण का शिकार हो रहे हैं । 

अशिक्षा के कारण लोगांें को काम धन्धा प्राप्त नही हो पाता है ओर व्यापार, व्यवसाय की कमी के कारण वे अपराध की ओर आकर्षित होकर आतंकवाद, नक्सलवाद को बढावा देते हैं ।देश मंे असामान्य वितरण के कारण गरीबी व्याप्त है जिसके कारण अपराध हिंसा बढ रही है । सरकारी नीतियों के विरोध में नक्सलवाद, आतंकवाद, पनप रहा है । देश में हजारों बेगुनाह प्रति वर्ष आतंकवाद का शिकार होकर मौत की भेंट चढ जाते हैं ।

जहां तक देश में स्त्रीयों की दशा का प्रश्न है तो वह दयनीय है, स्त्रीयों सबधी अपराध लगातार दिन प्रतिदिन बढ रहे है । आज भी स्त्री का जन्म होना बुरा माना जाता है जिसके कारण भू्रण हत्या जैसे अपराध से देश जूझ रहा है जिसके कारण देश के कई राज्यों में स्त्री-पुरूष अनुपात में कमी आई है ।

स्त्रीयों को आज भी अपनी इच्छा के अनुसार व्यवसाय, व्यापार विवाह करने की छूट नहेीं है । उन पर आज भी सदियों पुरानी रूढीयों और प्रथाओं के अनुसार कोई न कोई बंधन लगाये जातेे हैं । आज भी अधिकाशं देश में असंख्य बाल विवाह होते है। एक अकेली स्त्री का समाज मंे रहकर जीवन यापन करना मुश्किल है उस पर अनेक प्रकार के लांछन लाद दिये जाते हैं ।
देश में न्याय व्यवस्था का यह हाल है कि न्यायिक प्रक्रिया काफी लम्बी, महंगी है । पिता दावा लाता है पु़त्र निर्णय प्राप्त करता है नाती निर्णय का निष्पादन करवाता हैै। सुलभ, सरल, शीघ्र, सस्ता न्याय केवल किताब की बात है । न्यायालय में मुकदमे के बोझ से दबे जा रहे है । रोज नये नये कानून अध्यादेश बन रहे हैं और अदालतों में काम का बोझ बढ रहा है । जिसके कारण न्याय समय पर प्राप्त नहीं हो पा रहा है । जब कि आज जनता का विश्वास केवल न्याय पालिका पर है इसके लिए जरूरी है कि नई न्यायिक प्रणाली विकासित की जाये । जांच विचारण अनवेषण में नयी वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग किया जाये । अधिकांश मामले न्यायालय के बाहर सुलह, समझोते के आधार पर निपटाये जाये । तभी सस्ता सुलभ, शीघ्र न्याय लोगो को प्राप्त हो पायेगा । 


जहां तक राजनैतिक न्याय की बात है तो वह वोट और नोट के बीच बट गया है ं दागी छबि वाले लोग चुनाव में खडे हो रहे है। धन बल बाहू बल के आधार पर चुनाव जीता जाता है।ं राजनीति में व्याप्त गंदगी में कोई शरीफ व्यक्ति शामिल नहीं होना चाहता है । भूले भटके कोई ऐसा व्यक्ति राजनीति में प्रवेश कर जाता है तो उसे वोट की राजनीति बाहर कर देती है। 


गुप्त मतदान का प्रावधान दिया गया है लेकिन लोगो के वोट नोट और बंदूको के साये में डलवाये जाते हैं ।धर्म , जाति, भाषा के नाम पर वोट खरीदे जाते हैं । गांव में लोगो को वोट डालने नहीं दिया जाता है। गांव के गांव बंधक बना लिये जाते हैं । देश में चुनाव युद्ध की तरफ लडा जाता है और हर नाजायज तरीके से चुनावी युद्ध लड़े जाते हैं । चुनाव में प्रत्याशी की बौद्धिक योग्यता को देखकर लोग वोट नहीं देते हैं । उसकी ताकत और पार्टी की क्षमता को देखकर वोट दिये जाते है।
चुनाव में खडे लोगो को देखकर कई लोग वोट देने नहीं जाते है । इसके लिए जरूरी है कि घर में बैठकर वोट इंटरनेट के माध्यम से डाले जाने की व्यवस्था की जाये । प्रत्येक व्यक्ति का नाम उसके वयस्क होने के साथ ही मतदाता सूची में अपने आप जोडा जाये । मतदान को अनिवार्य किया जाये । जिस प्रकार वोट डालकर प्रत्याशी को चुना जाता है उसी प्रकार उसी प्रतिशत से चुने गये प्रत्याशी को क्षेत्र मे काम न करने की दशा में वापिस बुलाये जाने का अधिकार भी जनता को प्रदान किया जाये । 


यह देखा गया है कि जन प्रतिनिधि चुने जाने के बाद 5 साल बाद अपने क्षेत्र में शक्ल नहीं दिखाते हैं । क्षेत्र के विकास के लिए कोई कार्य नहीं करते हैं तो ऐसे लोगो के लिए लोकतंत्र में जिसमें जनता का राज्य है और जनता के द्वारा चुने प्रतिनिधि जनता में से चुनकर जनता का प्रतिनिधित्व करते है। उन्हें जनता के द्वारा वापिस बुलाये जाने का अधिकार भी संविधान में प्रदान किया जाना चाहिए ।
जहंा तक राजनीतिक की बात है तो व्यक्तिगत हित के लिए राजनीति की जा रही है । विधायका के सदन रण भूमि बन जाते हंै वहां पर वाक युद्ध लडा जाता है लोगों के लाखों रूपये खर्च होने के बाद भी देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, रणनीति एंव कानून बनाने वाली संस्थाओं में कोई काम नहीं हो पाता है ।


यदि संसद और विधायक का वेतन, सुविधाएं बढाये जाने की बात है तो सभी सांसद विधायक राजनीतिक दुश्मनी भूलकर उसे बहुमत से सर्वसम्मति से पारित कर देते हंै, लेकिन यदि आज आम जनता को राजनैतिक, सामाजिक,आर्थिक न्याय दिलाये जाने कोई बिल पेश किया जाता है तो उस बिल मे हजारों अडंगे लगाये जाते हैं । वह कभी पास नहीं हो पाता है । 


जहा तक देश की कार्य पालिका, न्याय पालिका और विधायका का प्रश्न है तो तीनेा ही अपने-अपने क्षेत्र में सामाजिक, न्याय प्रदान किये जाने असफल है । न्यायपालिका काम के बोझ से दबी है ।संसाधनों का अभाव है आधारभूत ढाचा अभी भी अगे्रेजों के जमाने का है । एक तथ्य को कई बार प्रमाणित करना पडता है । जिसके कारण लोग न्याय प्रदान करने में हिस्सा नहीं ले पाते हैं ।
विधायका भी धर्म और जाति की राजनीति में उलझ कर ठीक से कार्य नहीं कर पा रही है । व्यक्तिगत हितों और परिवार के लोगो कोेे बढावा दिया जा रहा है। देश की आम समस्या पर विचार विमर्श नहीं किया जाकर संसद और विधान सभा का समय आपसी बुराइयों और लडाईयों पर निकाला जाता है ।


कार्यपालिका का प्रश्न है तो वह पेैर से सिर तक भ्रष्टाचार से डूबी हुई है वहां पर कोई भी कार्य विधि एंव नियम के अनुसार नहीं होता है । सभी काम व्यक्ति की हेैसीयत के अनुसार किया जाते हंै।


यही कारण है कि आज हम जनता का लाखों रूपये खर्च करके साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भाषावाद, अलगांववाद, धार्मिक अंधविश्वास, जैसे कच्चे, पत्थरीले रास्तों पर चल रहे हैं । करोडो रूपये खर्च करके अशिक्षा, बेकारी, गरीबी, भुखमरी, आतंकवाद, नक्सलवाद, से जूझ रहे हैं और अरबों रूपये खर्च करके भ्रष्ट अधिकारी, कर्मचारी, नेता, व्यापारी, उद्योगपतियो, के मध्य जी रहे हैं जिसके कारण सामाजिक न्याय सपने की बात लगती है । 

सामाजिक न्याय को जो अधिकार स्वरूप प्राप्त होना था आज भीख के रूप में मांगा जा रहा है । इसलिए यदि संविधान में दिये प्रावधानों का कठोरता से पालन किया जाये देश के नेता अधिकारी, उद्योगपति, व्यापारी, संविधान के अनुसार कार्य करें तो देश के प्रत्येक नागरिक को संविधान की उद्देशिका के अनुसार सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय गारंटी के रूप में प्राप्त हो सकता है

उमेश कुमार गुप्ता

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