Monday, November 7, 2011

अमर गज़ल गायक जगजीत सिंह {8/2/1941---10/10/2011}


अमर गज़ल गायक जगजीत सिंह
{8/2/1941---10/10/2011}
गजल गायक श्री जगजीत सिंह उर्फ जगमोहन का जन्म 8 फरवरी
1941 में श्रीगंगा नगर राजस्थान में हुआ था । पिता- अमर सिंह पंजाब में दल्ला
गांव के मूल निवासी थे और बीकानेर राजस्थान में पी.डब्ल्यू. डी. में कार्यरत थे
उनकी मां बचन कौर घरेलू महिला थी । बचपन में आर्थिक हालात ठीक नहीं थे
और उनका बचपन बीकानेर में गुजरा और उनके द्वारा संगीत की षिक्षा पंडित
छन्नूलाल षर्मा से ली गई । 6 साल बाद उस्ताद जमाल खान से षास्त्रीय संगीत
की तालीम प्राप्त की । कालेज के दिनों से ही भीड के सामने गाने की षुरूआत
हुई और डी.ए.वी. जालंधर कालेज से स्नातक षिक्षा प्राप्त की उन्हें आकाषवाणी में
‘बी‘ वर्ग के कलाकार की मान्यता दी गई थी ।
जगजीत सिंह की गजल को महत्व तब मिला जब उनके द्वारा 1962
में महामहीम राष्ट्पति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के सम्मान में राष्ट्ीय गीत की रचना की
गई । सर्व प्रथम 1961 में मुंबई पहंुच कर संघर्ष प्रारंभ किया और छोटी-मोटी
फिल्मों, घरेलू आयोजनो, फिल्मी पार्टियों, विज्ञापन, जिंगल्स आदि में गाकर अपनी
जीविका की षुरूआत की । उनका पहला एलबम 1975 मंे एचएमवी द्वारा ‘द
अनफॉरगेटबलस’ निकला गया तब उनके स्थाई निवास की व्यवस्था हुई ।
फरिष्तों अब भी सोने दो की तर्ज पर बिदा होने वाले जगजीत सिंह
ने फिल्मों में भी गीत गाये और फिल्म साथ-साथ, मिर्जा गालिब, और अर्थ में गाने
के साथ संगीत भी दिया । गजल गायिकी में परम्परागत छबि से हटकर काम
किया और आषिक और इष्क सुरा और सुन्दरी की सीमाओं से गजल की सीमा
को तोडकर जिन्दगी की विभिन्न विषयों और पहलुओं पर गजल गायिकी की ।
1987 में उनका ‘बियॉन्ड टाइम’ देष का पहला संपूर्ण डिजिटल सी.
डी. एलबम था । मिर्जा गालिब टी.व्ही. सीरियल में सुर और संगीत देकर मिर्जा
गालिब को श्रृद्धांजलि प्रदान की । 2003 में पदम् विभूषण से विभूषित होने वाले
जगजीत सिंह ने प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की रचना नई दिषा व
संवेदना के लिए संगीत दिया और गायिकी भी की। उनके प्रसिद्ध एलबम आईना,
फेस टू फेस, कमएलाव, मराषीम, आदि हैं ।
वे संसद के केन्द्रीय कक्ष में प्रस्तुति दिये जाने वाले दुनिया के उन
चन्द गजल गायकों में से है जिन्होने होंटो से छू लो दो को गाकर अपने गीतों
को अमृतत्व प्रदान किया । तथा तुम्हें देखा तो यह ख्याल आया, तेरे खत गंगा में
बहा आया हूं, बहते पानी में आग लगा आया हूं,- सरकती जाये रूख से नकाब
आहिस्ता-आहिस्ता, तुम जो इतना मुस्कुरारही हो क्या गम है जो छुपा रही हो-
जैसे अमर गीत के गायक की गजल गायकी में जिन्दगी के सभी रंग षामिल थे।
जहां वह कागज की कष्ती बारिष का पानी बचपन की याद
दिलाती, वहीं तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जो छुपा रही हो, उससे
मन की बातें को प्रकट करने वाले और चिट्ठी न कोई संदेष, तुम कहां गये, दर्द
भरी गजलों से अपने अतीत को याद कराने वाले जगजीत सिंह ने राम-राम धुन
गाकर सारे सी.डी. और एलबम रिकार्ड बिक्री के रिकार्ड तोडे हैं । उनके द्वारा
गाये गये धार्मिक भजन ईष्वरीय अनुभूति प्रदान करते हैं और भक्त तथा भगवान
से सीधा संबंध जोडते हैं । कबीर के भजनांे को जगजीत सिंह ने अपनी दिलकष,
गहरी पुरजोष आवाज में गाकर दोहा, षब्द साखी में चार चांद लगाये हैं ।
1990 में एक मात्र पुत्र विवेक की दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद
उनका गायकी में अध्यात्मिकता के दर्षन देखने को मिलते हैं । जो गुरबाणी मन
जीते जगजीत -राम-राम आदि सी.डी. में सुनने और समझने में आता है ।
जगजीत सिंह ने केवल धर्म, दर्षन और ज्ञान संबंधी गजले गाई है
बल्कि सामाजिक चेतना, उत्थान वाली गजले भी गाई हैं । जैसे राषन की कतारो
में नजर आता हूं, मुझे जीने दो न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम इसके साथ ही साथ
देष कीे अखण्डता और एकता को बढाने वाली गजल अपने दोस्तो गुलजार और
जावैद अख्तर के साथ मिलकर गाई है ।
जगजीत सिंह स्वयं रोमांटिक व्यक्ति थे उनके द्वारा कई रोमांटिक
गजले कभी किसी से मोहब्बत तो की होगी, आंखों के कागज से चुराकर तो देखा

होगा, सरकती जाये रूख से नकाब आहिस्ता-आहिस्ता, जैसी मषहूर गजले गाई
हैं।
1969 मे तगहाली में जिंगल की रिकॉर्डिग के समय अपनी भावी
जीवन संगिनी चित्रा दत्ता से मुलाकात के बाद षादी की थी । उसके बाद दोनों
पति पत्नी ने मिलकर कई अमर गजले गाई हैं । यह सिलसिला 1990 में पुत्र
विवेक की मृत्यु के बाद टूटा जब चित्रा सिंह ने लडके की मृत्यु के बाद गाने से
पूरी तरह से मुंह मोड लिया उसके बाद जगजीत सिंह अकेले ने अपने दिल में
छिपे गम दर्द, उदासी को उजागर कर कई मषहूर गजलें गायी हैं तथा जीवन के
अंतिम चरण तक संगीत के कार्यक्रम देते रहे । फिल्मी दुनिया में व्यवसायिक बातो
से सौदा न करते हुये उन्होंने गजल की रूह को अपनाकर रखा और उसे
वास्तविक रूप प्रदान करते हुये मेंहदीहसन गुलामअली, बेगम अख्तर, जैसे मषहूर
गजल गायकों की श्रेणी में अपने को षामिल किया है ।



अमर गज़ल गायक जगजीत सिंह
{8/2/1941---10/10/2011}
गजल गायक श्री जगजीत सिंह उर्फ जगमोहन का जन्म 8 फरवरी 1941 में श्रीगंगा नगर राजस्थान में हुआ था । पिता अमर सिंह पंजाब में दल्ला गांव के मूल निवासी थे और बीकानेर राजस्थान में पी.डब्ल्यू. डी. में कार्यरत थे उनकी मां बचन कौर घरेलू महिला थी । उनका बचपन तगंहाली मंे बीकानेर में गुजरा और उनके द्वारा संगीत की प्रारंभिक षिक्षा पंडित छन्नूलाल षर्मा से ली गई। 6 साल बाद उस्ताद जमाल खान से षास्त्रीय संगीत की तालीम प्राप्त की । कालेज के दिनों से ही भीड के सामने गाने की षुरूआत हुई और डी.ए.वी. जालंधर कालेज से स्नातक डिग्री प्राप्त की उन्हें आकाषवाणी में ‘बी‘ वर्ग के कलाकार की मान्यता दी गई थी ।

जगजीत सिंह के गायन को महत्व तब मिला जब उनके द्वारा 1962 में महामहीम राष्ट्पति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के सम्मान में गीत की रचना कर गायिकी की । सर्व प्रथम 1961 में मुंबई पहंुच कर संघर्ष प्रारंभ किया और छोटी-मोटी फिल्मों, घरेलू आयोजनो, फिल्मी पार्टियों, विज्ञापन, जिंगल्स आदि में गाकर अपनी जीविका की षुरूआत की । अपनी जीवनी (बियॉंड टाईम) में संघर्ष के दिनों का जिक्र है बिना टिकिट यात्रा करना, एक कमरे में रहना, दिन में कभी खा लिया कभी खाली पेट सो गये, आदि आम बातों का उल्लेख है जो हर सफल व्यक्ति के जीेवन में संघर्ष के दिनों में घटता है । उनका पहला एलबम 1975 मंे एचएमवी द्वारा ‘द अनफॉरगेटबलस’ निकला गया तब उनके स्थाई निवास की व्यवस्था एक कमरे की जगह फ्लैट में हुई ।


फरिष्तों अब भी सोने दो की तर्ज पर बिदा होने वाले जगजीत सिंह ने फिल्मों में भी गीत गाये और फिल्म साथ-साथ, मिर्जा गालिब, और अर्थ में गाने के साथ संगीत भी दिया । गजल गायिकी में परम्परागत छबि से हटकर काम किया और आषिक, इष्क, सुरा-सुन्दरी, मयखाना की सीमाओं से गजल की सीमा को तोडकर जिन्दगी की विभिन्न विषयों और पहलुओं पर गजल गायिकी की । गजल जो दरबार, हवेलीयों, इज्जतदारो, षानषौकत वाले लोगों की जागीर थी उसे आम आदमियों की जिन्दगी से जोडा । यही कारण है कि एक आम आदमी भी फुरसत के क्षणों में चाय पीते समय पर्दा उठा जरा साकियां का लुत्फ उठा सकता है । उनकी गायिकी के डिस्कों में जाने वाले नवयुवक भी दिवाने थे और नवयुवकों में उनके कई गीत, गजल, प्रसिद्ध थे ।

1987 में उनका ‘बियॉन्ड टाइम’ देष का पहला संपूर्ण डिजिटल सी.डी. एलबम था। 2003 में पदम् विभूषण से विभूषित होने वाले जगजीत सिंह ने प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की रचना नई दिषा व संवेदना के लिए संगीत दिया और गायिकी भी की।

उनके प्रसिद्ध एलबम ए माइलेस्टोन 1980, मैं और मेरी तनहाई 1981, द लेटैस्ट 1982, बियॉन्ड टाईम 1987, मिर्जा गालिब 1988,पेषन/ब्लेक मेजिक 1988, गजल फ्रोमस फिल्म्स 1989, मेमोरियबल चित्रा एण्ड जगजीत 1990, समवेयर 1990, होप 1990, सजदा 1990, कहकषॉ 1991-92, इनसर्च 1992, फेस टू फेस 1993, यूअर च्वाइस 1993, चिराग 1993, डिजायर्स 1994, इनसाइट 1994, मिराज 1995, यूनिक 1996, कमएलाइव 1998, लव इज ब्लाइण्ड 1998, सिलसिले 1998, कमएलाइव 1998, मरासिम 1998, आईना आदि हैं ।

वे संसद के केन्द्रीय कक्ष में प्रस्तुति दिये जाने वाले दुनिया के उन चन्द गजल गायकों में से है जिन्होनेे होंटो से छू लेने दो को गाकर अपने गीतों को अमृतत्व प्रदान किया । तुम्हें देखा तो यह ख्याल आया, तेरे खुषबू भरे खत गंगा में बहा आया हूं, बहते पानी में आग लगा आया हूं, सरकती जाये रूख से नकाब आहिस्ता-आहिस्ता, तुम जो इतना मुस्कुरा रही हो क्या गम है जो छुपा रही हो,जैसे अमर गीत के गायक की गायकी में जिन्दगी के सभी रंग षामिल थे।

जहां उनकी गजल कागज की कष्ती बारिष का पानी बचपन की याद दिलाती, वहीं तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जो छुपा रही हो, उससे मन की बातें को प्रकट करने वाले और चिट्ठी न कोई संदेष, तुम कहां गये, दर्द भरी गजलों से अपने अतीत को याद कराने वाले जगजीत सिंह ने हेराम और मॉ गाने वाले उनके सी.डी. और एलबम ने बिक्री के कई रिकार्ड तोडे हैं। उनके द्वारा सुफियाना अंदाज में गाये गये धार्मिक भजन ईष्वरीय अनुभूति प्रदान करते हैं और भक्त तथा भगवान से सीधा संबंध जोडते हैं । कबीर के भजनांे को जगजीत सिंह ने अपनी दिलकष, गहरी, पुरजोष, आवाज में गाकर दोहा, षब्द साखी में चार चांद लगाये हैं ।

1990 में एक मात्र पुत्र विवेक की दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद उनका गायकी में अध्यात्मिकता के दर्षन देखने को मिलते हैं । जो गुरबाणी मन जीते जगजीत है राम, मॉं आदि सी.डी. में गाये भजन सुनने और समझने में आता है ।
जगजीत सिंह न केवल धर्म, दर्षन और ज्ञान संबंधी गजले गाई है बल्कि सामाजिक चेतना, उत्थान वाली गजले भी गाई हैं । जैसे राषन की कतारो में नजर आता हूं, मुझे जीने दो न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम इसके साथ ही साथ देष कीे अखण्डता और एकता को बढाने वाली गजल अपने दोस्तो गुलजार जावैद अख्तर, निदा फाजली के साथ मिलकर गाई है ।
जगजीत सिंह स्वयं रोमांटिक व्यक्ति थे उनके द्वारा कई रोमांटिक गजले चोदहवी रात का चांद बनकर, कभी किसी से मोहब्बत तो की होगी, झुकी-झुकी सी निगाहें, सरकती जाये रूख से नकाब आहिस्ता-आहिस्ता, जैसी मषहूर गजले गाई हैं।
1969 मे तगहाली में जिंगल की रिकॉर्डिग के समय अपनी भावी जीवन संगिनी चित्रा दत्ता से मुलाकात के बाद षादी की थी । उसके बाद दोनों पति पत्नी ने मिलकर कई अमर गजले गाई हैं । यह सिलसिला 1990 में पुत्र विवेक की मृत्यु के बाद टूटा जब चित्रा सिंह ने लडके की मृत्यु के बाद गाने से पूरी तरह से मुंह मोड लिया उसके बाद जगजीत सिंह अकेले ने अपने दिल में छिपे गम, दर्द, उदासी, दुख को उजागर कर कई मषहूर गजलें गायी हैं तथा जीवन के अंतिम चरण तक संगीत के कार्यक्रम देते रहे ।

बहुत कम लोग जानते हैं कि चित्रा सिंह पूर्व से देवी प्रसाद दत्ता की विवाहिता थी । उनका एक रिकार्डिंग स्टूडियों था, जहां उनका परिचय जगजीत सिंह से हुआ और प्यार परवान चढ़ा । चित्रा सिंह ने बाद में तलाक लेकर जगजीत सिंह से षादी की । पूर्व में उनकी एक बेटी मोनिका थी जो अब इस दुनिया में नहीं है ।

फिल्मी दुनिया में व्यवसायिक बातो से सौदा न करते हुये उन्होंने गजल की रूह को अपनाकर रखा और उसे वास्तविक रूप प्रदान करते हुये मेंहदीहसन गुलामअली, बेगम अख्तर, जैसे मषहूर गजल गायकों की मौजूदगी में दुनिया को अपना एहसास कराया है ।

आज जगजीत सिंह सषरीर नहीं है लेकिन कोई कह नहीं सकता कि वे हमारे बीच मौजूद नहीं है । आज भी जब भी उनकी गजल, रेडियांे, टी.व्ही., सी.डी. में बजती हैं । तब लगता है कि वे यहीं-कहीं आस-पास बैठ कर गा रहें हैं । ऐसे लोगों की आवाज संजीवनी होती है जो कभी विलुप्त नहीं हो सकती है। उनकी आवाज जहां हमारे दुख में दोस्त की तरह साथ रहकर दुख बाटती हैं वहीं गम के समय हमारे परिवार के सदस्य की तरह गम हल्का करती है । दर्द को मां के आंचल के समान सहलाकर रफू करती है। सुख के समय होली के रंग दीवाली की उमंग की तरह उल्लास, आनन्द, मस्ती का अहसास कराती है।

जगजीत सिंह की गायिकी में गुलाब की सुगन्ध, षहद की मिठास, चन्दन की षीतलता, सूर्योदय का सौंदर्य, मंदिर के घंटे की पवित्रता, विरह के आसू, वेदना के स्वर की अनुभूति होती है । वही वह जवानी के सोहलवे साल, प्यार की बसन्ती बहार, रोमान्स के सावनी झूले, का भी भ्रम कराती है ।

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