Saturday, December 27, 2008

कौन कहता है-भूत नहीं होता

                                                                                                     भूत                          

                                हमारा, महात्‍मा बुद्ध का, कर्म स्‍थान और शिक्षा का महान केन्‍द्र नालंदा विश्‍वविद्यालय की जन्‍म स्‍थली बिहार राज्‍य देश में एक ऐसा राज्‍य है जो रोज नये, एक से एक राज, हीरे की खदान की तरह उगल रहा है। पहले आश्‍चर्य प्रकट हुआ कि जानवर का चारा आदमी खा गये, उसके बाद आश्‍चर्य हुआ कि जेल में कैदी घर से ज्‍यादा ऐशो आराम में मोबाइल फोन, वी.सी.आर., टी.वी., ए.सी. के बीच जिंदगी गुजार रहे हैं। फिर पता चला कि वहां पर 21 भूत वेतन ले रहे है। इस खबर को पढ़ते ही मन में उत्‍सुकता हुई कि भूत क्‍या है ?


                                                        भूत बीता हुआ कल है, जो हमेशा सामने उजागर रहता हैं। कुछ लोग हैं, जो कहते हैं कि भूत नहीं होते हैं। वे कल में जी रहे नहीं होते है, बल्‍कि वर्तमान में मर रहे होते हैं। इसलिए उन्‍हें भूत की याद नहीं रहती है। यदि वे कुछ कर गये होते तो वर्तमान अच्‍छा कटता और फिर भविष्‍य की चिंता नहीं सताती और भूत उन्‍हें हमेशा याद रहता है।


                                       हम कल क्‍या होंगे, सोचकर जी नहीं पाते हैं, बल्‍कि कल हमें क्‍या करना है सोचकर जीते हैं और वर्तमान में ऐसा जीवन क्‍यों जी रहे हैं इसे सोचने-समझने हमेशा भूत को याद करते रहते है। काश ऐसा कर देते तो कहां होते ? काश ऐसा नहीं किया होता तो आज यह दिन देखने नहीं मिलता ? इस प्रकार भूत हमेशा साथ रहता है। वह कभी पीछे नहीं छूटता। वर्तमान की परछाई अगर भविष्‍य है तो उसका अतीत भूत है।


                                                            काल तीन बताये गये हैं - भूत, भविष्‍य, वर्तमान लेकिन शाश्‍वत काल तो एक है उसके बाद न तो भूत बचता है, न भविष्‍य की चिंता , न वर्तमान की खटपट रहती है।

                                                                पूरे ‘जीवन कालचक्र‘ में जिसमें ‘काल‘ के बाद भविष्‍य कभी नहीं रहता है। इसलिए जीते जी भविष्‍यवाणी करना टेढ़ी खीर है। तीर तुक्‍के मारने पर तीर निशाने के आसपास लग सकता है, लेकिन भविष्‍य को भूत नहीं बना सकते, क्‍योंकि वर्तमान जिये बिना भविष्‍य नहीं आ सकता है। यही कारण है कि आज देश में गांधी का भूत जिंदा है।

                                                                   गांधी चले गये, चरखा, लाठी, सत्‍य, अहिंसा, स्‍वावलंबन की शिक्षा दे गये। व्‍यवसाय के नाम पर लघु, कुटीर उद्योग बता गये। लेकिन किसी को भी इस भूत में भविष्‍य नहीं दिख रहा है। इसलिए वर्तमान इन बातों से अधूरा पडा है। कोई सत्‍य, अहिंसा, स्‍वावलंबन पर नहीं चलना चाहता है, सब मशीनगन, स्‍टैनगन से बात करते हैं। उधारी कोई नहीं रखता है, सब तुरन्‍त उधारी चुकाना चाहते हैं। वास्‍तविक जीवन में भले हम गांधी बने रहते हैं, लेकिन भूत और भविष्‍य में कोई गांधी नहीं बनना चाहता है।


                                                                          आज हम कल की बात करते हैं और कल के लिए लोक की धमकी देते हैं। सब स्‍वर्ग लोक में जी रहे हैं। जो बीत चुका वह पाताल लोक है जो बीतने वाला है वह भविष्‍य का नरकलोक है। वर्तमान में स्‍वप्न में स्‍वर्ग में जीने का स्‍वप्‍न पूरे कर रहे है। इसलिए भूत के पाताल की याद कर भविष्‍य के नरक की तस्‍वीर वर्तमान के स्‍वप्‍न में नहीं देखना चाहते है।

                                                     कर्म, काज, कार्य जो सबका पालनहार है। वह ‘काल‘ की चिंता नहीं करता है। अर्थात्‌ उसे भविष्‍य का डर नहीं हैं। इसलिए ‘कर्मयोगी‘ वर्तमान में जीते हैं। भूत से सीखते हैं, कामगारों को कोई भूत भी नहीं सताता है। क्‍योंकि वह हमेशा कर्म करने के कारण वर्तमान में ही जीते रहते हैं। वर्तमान में जीना ही सही जीवन है, भूत की याद, भविष्‍य के डर से वर्तमान को भूल जाना कहां उचित है।

                                       भूतकाल में यदि हम बीते अवसर को याद करते हैं तो उनका सही लाभ न उठा पाने के कारण भी पीड़ा पहुंचती हैं। इसलिए हम उन्‍हें याद नहीं करना चाहते हैं और उसे प्रेतात्मा के दुःस्‍वप्‍न के साथ जोड़ देते हैं। जो व्‍यक्‍ति बीते अवसरों का लाभ उठा लेते हैं, उन्‍हें भूत याद नहीं आते हैं और वे वर्तमान में जीकर भूत की उपेक्षा करते हैं, उन्‍हें राक्षसों का भय नहीं सताता हैं, इसलिए वे कहते हैं कि भूत नहीं है।

                                                                 बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता है। लेकिन जब हम उस समय से कोई सीख नहीं ले पाते है। तो वह समय फिर डरावने स्‍वप्‍न की तरह बारबार दिखाई देता है। जब तक उससे सीख नहीं ले लेते हैं वह दिखाई देते जाता है और उसी स्‍वप्‍न को हम भूत मानते हैं जिसे कोई भी बात जानने के बाद देखना नहीं चाहता। जब बीता ‘काल‘ दिखता है तो विचार आता है कि ‘कर्म‘ उस पर, उस समय भारी नहीं था, इसलिए उस ‘भूत‘ को ‘वर्तमान‘ पचा नहीं पाया और वह अपच ‘भूत‘ बनकर हमारे गले बार-बार पड रही है। दिल को ऐंठ मरोड़ रही है।

                                                               हमारे नीति के भूत गांधी है। उसी ‘भूत‘ के कारण हम उन्‍हें याद करते हैं और जिस दिन गांधी वर्तमान में आ जायेंगे, उस दिन से उनका ‘भूत‘ लोगों के सिर से उतर जायेगा। लेकिन ‘गांधी‘ का ‘भूत‘ आसानी से लोगों के सिर पर चढने वाला नहीं है, क्‍योंकि वर्तमान में सत्‍य बोलने के रास्‍ते बंद है। अहिंसा की भाषा कोई समझता नहीं है।

                                                       गांधी मशीनीकरण के विरूद्ध थे। हम आज मशीनों पर जिंदा हैं। आदमी मशीन बन गया है। कुटीर उद्योग केवल इंटीरियर डेकोरेशन की वस्‍तु रह गये हैं। ऐन्‍टीक और यूनिक वस्‍तुओं में उनकी गिनती है, जो घर के एक कोने की शो-पीस के रूप में शोभा बढ़ाते है।

                                               धर्म-निरपेक्षता, साम्‍प्रदायिकता, तकनीकी शिक्षा के अभाव में बेरोजगारों की भीड़ है। अन्‍याय के विरूद्ध अहिंसा ने हिंसा का रूप ले लिया है। हम पहले अन्‍याय का विरोध नहीं करते है। और जब वह बढ़ कर पाप बन जाता है तब विरोध करते हैं उसके बाद पाप का इलाज अहिंसा से करना संभव नहीं है। फिर कुटिलता के कांटे को कौटिल्‍य से ही निपटाना पड़ता है।

                                                             हम मकान बनाते हैं, नींव खोदते हैं, उसके ऊपर इमारत खड़ी कर देते हैं। भूल जाते हैं कि नींव भूत हो जाती है। जो मकान खड़ा है वह वर्तमान है। वह ‘भूत‘ को भूल नहीं पाता है और जब तक नींव को याद करता है, तब तक खड़ा रहता है। जैसे ही भूलता है, उसके ढेर होने का ‘भविष्‍य‘ प्रारंभ हो जाता है। जिस दिन पूरी तरह भूल जाता है, उस दिन ढेर हो जाता है, उस दिन ढेर हो जाता है और भविष्‍य को देख नहीं पाता है।

                                                   वर्तमान ही भूत और भविष्‍य है। भूत को लेकर वर्तमान में जिये तो भविष्‍य सुखी, उज्ज्वल होगा और कभी भूत , भविष्‍य की चिंता नहीं सतायेगी। जैसे सत्‍य ही ईश्‍वर है और सत्‍य ही सुंदर है। उसी प्रकार से वर्तमान ही भूत है, वर्तमान ही भविष्‍य की छवि है।

                                                      कर्म का कोई ‘काल‘ नियत नहीं किया गया है। ‘काल करे सो आज कर‘‘, जो भूत में कर्म करने वाले थे, अभी करों और ‘आज करे‘ सो अब अर्थात जो भविष्‍य में कर्म की सोच रहे हो उसे तुरन्‍त वर्तमान में करों। यहां पर शब्‍दों का अर्थ वहीं हैं सिर्फ ‘काल‘ का फर्क है। ‘कल कर‘ सो आज करें में कल भूत, आज वर्तमान है आज करे सो अब में, आज भविष्‍य है, अब वर्तमान काल है और कर्म अर्थात ‘अब‘ वर्तमान में जी रहे है।

                                         यहां पर हम पहले सोचते हैं, जैसे ही सोचते हैं कर्म का विचार आता हैं । वहीं ‘कर्मकाल‘ है। सोचते ही नहीं किया वह ‘‘ भूत‘‘ हो गया और ‘‘आज‘‘ नहीं कर पाते हैं, इसलिए नहीं होने के कारण ‘भविष्‍य‘ में चला जाता है। उसके बाद ‘अब‘ बनता है जो ‘वर्तमान‘ है, जिसे नहीं किया तो वह कभी नहीं हो सकता है। क्‍योंकि ‘पल‘ बीतते ही विचार भूत, भविष्‍य में बदल जाते है। वे वर्तमान का रूप नहीं ले पाते है।

                                   उपर्युक्‍त विश्‍लेषण से यह बात तो स्‍पष्‍ट है कि भूत होता है और भूत के आधार पर वर्तमान में कोई जी रहा है तो उसे भूत नहीं कहेंगे। इसलिए यदि मक्‍कारी बेईमानी, भ्रष्‍टाचार, अय्‍यारी के कारण लोग वेतन निकाल रहे हैं तो इसमें आश्‍चर्य की बात नहीं होना चाहिए । यह हमारे राष्‍ट्रीय चरित्र में शामिल है। जिस तरह की यह घटना है, वहां की लीला के हिसाब से यह बहुत छोटी बात है। इनसे दूसरे प्रदेशों की जनता शिक्षा न ले यह उनके बस की बात नहीं है, इसलिए भूत होता है यह मानकर उस घटना को भूल ही जाने दें। क्‍योंकि वर्तमान और भविष्‍य को कर्म के प्रभाव से बदला जा सकता है, किन्‍तु भूत तो शाश्‍वत है इसलिए भूत, भूत होता है उसे बदला नहीं जा सकता। यह मानकर उस घटना को भूत हो जाने दें।

5 comments:

umeshguptablogger.co said...

good

bijnior district said...

हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। अच्छा लिखे। खूब लिखे। हजारों शुभकामनांए।

दिगम्बर नासवा said...

बहूत अच्छा लिखा है
स्वागत है आपका

रचना गौड़ ’भारती’ said...

कलम से जोड्कर भाव अपने
ये कौनसा समंदर बनाया है
बूंद-बूंद की अभिव्यक्ति ने
सुंदर रचना संसार बनाया है
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लि‌ए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अच्छा एवं ज्ञानवर्धक लेख
शुभकामनाऎं

खूब लिखें,अच्छा लिखें