Saturday, December 27, 2008

हड़ताल बिना जिंदगी अधूरी

                                     हड़ताल बिना जिंदगी अधूरी                                             आप कहीं भी जायें, चाहे सरकारी दफ्‍तर हो या निजी कार्यालय हो चारों तरफ लोगबाग काम कम हड़ताल करते ज्‍यादा नजर आते है। हड़ताल जैसी बीमारी से देश के बड़े औद्योगिक प्रतिष्‍ठान एक ग्रसित हैं, साथ ही साथ इससे पानी, बिजली चिकित्‍सा जैसी लोक उपयोगी सेवा वाले क्षेत्र भी अछूते नहीं हैं। लोग जरा सी बात पर काम रोको हड़ताल, भूख हड़ताल, कलम बंद हड़ताल करना अपना परम कर्तव्‍य समझते है।



                                           लोग हड़ताल क्‍यों करते हैं ? इसका कारण हड़तालियों के पास भी नहीं रहता है, तो हम और आप क्‍या कह सकते हैं, लेकिन शायद वे अपनी योग्‍यता, क्षमता व कार्यकुशलता से ज्‍यादा पाने की कोशिश हड़ताल द्वारा करते है। आज छात्र इसलिए हड़ताल नहीं करता है कि उसे उचित ढंग से शिक्षा प्रदान की जावे, बल्‍कि आज इसलिए छात्र हड़ताल करते हैं कि उन्‍हें परीक्षा में अनुचित साधनों का प्रयोग करने दिया जाये या बिना परीक्षा दिये ही घर बैठे पास कर दिया जाये। आज मजदूर इसलिए हड़ताल नहीं करते हैं कि उनकी आर्थिक, सामाजिक स्‍थिति सुधारी जाये, उनके आवास की दशाएं बदली जायें, बल्‍कि वे इसलिए हड़ताल करते हैं कि उनहें अलग से कुछ पैसे प्राप्‍त हो, ताकि वह अपने साहबों की तरह स्‍कूटर , मोपेड आदि में घूम सकें, नशीले पदार्थ भांग और शराब का शौक पूरा कर सकें। आज जूनियर डॉक्‍टर , इंजीनियर इसलिए हड़ताल करते हैं कि उनहें बिना कुछ सीखे-समझे ही सीनियर मान लिया जाये व अपने से बडों के बराबर तनख्‍वाह दी जावे। नगर निगम के कर्मचारी , गली मोहल्‍लों , सड़कों, की सफाई समय पर नहीं करना चाहते, इसलिए वे ज्‍यादा काम के बोझ का बहाना बनाकर हड़ताल करते हैं, शिक्षक घर में तो घंटों बच्‍चों को ट्‌यूशन पढ़ा सकते हैं, लेकिन स्‍कूल, कॉलेज में नहीं पढ़ाना चाहते , इसलिए पेंशन ग्रैच्युटी, तनख्‍वाह आदि का बहाना बनाकर हड़ताल करते है।


                                                                                      इस तरह लाखों लोग काम करना नहीं चाहते हैं, इसलिए हड़ताल करते हैं इन हड़तालियों को बढावा कलयुग के ब्रम्‍हा, विष्‍णु, महेश उर्फ नेता लोग देते हैं। ये लोग आग में घी का काम करते हैं तथा लोगों को हड़ताल करने को उकसाते है। जिस व्‍यक्‍ति को अगले चुनाव में टिकिट चाहिए, वह सबसे ज्यादा हड़तालों में भाग लेता है और सबसे जयादा हड़ताल कराकर नाम कमा कर पार्टी का टिकिट अगले चुनाव में प्राप्‍त करना चाहता है, ताकि उसकी उंगलियां घी और सिर कढ़ाई में धंस जाये। हड़ताल की यह बीमारी हमारे समाज में बुरी तरह व्‍याप्‍त है इससे कुछ चुने हुए लोग नहीं बल्‍कि समाज का सबसे पिछड़ा वर्ग मजदूर वर्ग भी ग्रसित हैं हड़ताल समाज के पढे -लिखों से लेकर बुद्धिजीवी तक करते हैं। कुछ लोग जाति अथवा संप्रदाय के आधार पर राज्‍य बनाना चाहते हैं, इसलिए हड़ताल करते हैं कुछ लोग हत्‍या जैसी जघन्‍य अपराध को जन्‍म देने के लिए सती -प्रथा को बढावा देने के लिए हड़ताल करते हैं तो कुछ लोग देश को धर्म , भाषा, क्षेत्र, जाति के आधार पर बांटने के लिए हड़ताल करते हैं। इस प्रकार एक दिन में बड़ी संख्‍या में लोग बाग किसी न किसी रूप में हड़ताल करके देश के विकास को अवरूद्ध करते है।


                                            आज लोग हड़ताल क्‍यों करते हैं ? इससे उन्‍हें बहुत से फायदे होते है। इससे जहां उनका समय, श्रम, कार्यकुशलता भले ही नष्‍ट होती हो उन्‍हें आराम मौज-मस्‍ती, हरामखोरी करने को मिलती है। हड़ताल से जहां हमारे देश का सामाजिक ढांचा गड़बड़ाता हैं, वहीं औद्योगिक विकास का मार्ग अवरूद्ध होता है। हड़ताल करने वाले आगे बढते हैं। कई बार उनकी तनख्‍वाह बढती है, उनकी तरक्‍की होती है। उन्‍हें इसकी चिंता नहीं होती है कि हड़ताल करने से देश का नुकसान हो सकता है उस समाज का नुकसान हो सकता है, जिसमें वे रहते हैं। लेकिन हड़ताल करने वालों का ख्‍याल है कि उनका कुछ नुकसान नहीं होता है। वे यह मानते हैं कि हड़ताल करना अच्‍छा है। बुरा नहीं। लेकिन आज हममें से कोई देश में एकता स्‍थापित करने की मांग के साथ हड़ताल नहीं करता हैं देश की अखंडता को बरकरार रखने हड़ताल नहीं करता। देश को खोखला कर रही साम्‍प्रदायिकता, जातीयता, धार्मिकता को दूर करने के लिए हड़ताल या आंदोलन नहीं करता । सामाजिक बुराइयों, दहेज, अंध विश्‍वास और असमानता को मिटाने के लिए हम लोग हड़ताल नहीं करते। आज सिर्फ अपने स्‍वार्थ के लिए हम हड़ताल जैसे खतरनाक हथियार का उपयोग करते है।


                                                     हड़ताल आज के इंसान की जिंदगी की अनिवार्य आवश्‍यकता बन गई है। रोटी, कपड़ा और मकान के बाद उसे सिर्फ हड़ताल की याद रह गई है। आज हड़ताल के बिना छात्रों को नींद नहीं आती, मजदूर का खाना नहीं पकता, शिक्षकों की गाड़ी नहीं चलती, नेताओं को बदहजमी हो जाती है। मजदूर को लगता है कि उसकी जिंदगी अधूरी है, अगर उसने हड़ताल करके अपने मालिकों की नाक में दम नहीं किया है, छात्र सोचता है कि उसकी जवानी बेकार है अगर उसने अपने सामने कालेज या यूनिवर्सिटी को नहीं झुकाया है। नेताओं को तो मालूम है कि बिना हड़ताल कराये समाचार पत्रों में नाम छपवाये नेता गिरी चलती नहीं है।


                                        इस प्रकार लाखों लोगों के लिए हड़ताल आज जिंदगी की मुख्‍य आवश्‍यकता बन गई है। जिस प्रकार बच्‍चों के बिना शादी अधूरी लगती है, उसी प्रकार हड़ताल बिना जिंदगी सूनी लगती है। आज आप सीना ठोंक कर कह सकते हैं कि हमारे देश में दुनिया का सातवां आश्चर्य ताजमहल नहीं, बल्‍कि काली पट्‌टी लगाये हाथ में बैनर लिये, हमारी मांगें पूरी करो, चिल्‍लाते हुए लोगों की भीड़ का न दिखना है। अगर आप कहीं जायें और हड़ताल आपका स्‍वागत न करें तो आप अपने भाग्‍य को कोसिये कि आप चंद समझदारों, देश के प्रति समर्पित कुछ कर्तव्‍यनिष्‍ठ , लेकिन फालतू लोगों के बीच आ फंसे है- जिनको अपने जन्‍मसिद्ध अधिकार हड़ताल का ज्ञान नहीं है।

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