नई पीढ़ी के व्यंग्यकार ---- उमेश कुमार गुप्ता की कलमसे
व्यंग्य लेखन से मेरा उद्देेश्य लोगों का मजाक उड़ाकर उन्हें हसी का पात्र बनाकर सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करना नही है । समाज में कुछ ऐसी बातें व्याप्त है, जो आम आदमी ठगे जाने के बाद भी समझ नहीं पाता है और दिन प्रतिदिन पिसता जाता है । ऐसी बातों को अपने लेखों ओैर व्यंग्यों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना ही मेरा उद्देश्य रहा है ।
इसके अलावा ऐसे लोगों को भी दर्पण दिखाना रहा है जो छल कपट चोरी ,बेईमानी करने के बाद भी समझते है कि उन्होने कुछ नहीं किया है और उनके बारे में लोगों को कुछ नहीं मालूम है, जबकि समाज में इसके विपरीत उल्टा असर रहता है ।
हमारा भारतीय समाज दहेज प्रथा, जातिप्रथा, धार्मिकता, अंधविश्वास, गरीबी, बेकारी आदि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, बुराईयों से ग्रस्त है, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित, देश का आम आदमी है और आम आदमी को ही अपने लेखों का नायक बनाकर प्रायः व्यंग्य लिखे गये हैं । जिसमें अधिक से अधिक समस्याओं को हल सहित उठाये जाने का प्रयास किया गया हैं।
आस पास में व्याप्त विषमताओं चेहरे पर चेहरे लगाये, रंग बदलते चेहरे को देखकर उन्हें सरल सीधे शब्दो में बिना लाग लपेट के व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है और व्यंग्य ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा अपने और अपनो पर चोट करके लोगो को समझाया जा सकता है ।
मुझे व्यंग्य लेखन की प्रेरणा संत कबीर, हरिशंकर, परसाई, चाणक्य, जैसे महान लोगों से मिली है ,जिन्होने अल्प शब्दो में ही गाकर में सागर भरकर लोगों को सामाजिक विशेषताओं की ओर सोचने को मजबूर किया है। मेरे द्वारा युवाओं में व्याप्त समस्याओं ,छेड़खानी, प्रेम, फिल्म के प्रति आकर्षण की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया गया है । वहीं प्रदूषण, मंहगाई, इलाज, बीमारी ,गरीबी के कारणो की तरफ भी लोगों का ध्यान खींचा गया है । नारी जाति में व्याप्त समस्याओं पर विचार किया गया है और समाज में व्याप्त दोहरे मापदंड आर्थिक विषमताओं का उल्ल्ेाख किया है।
बी.एस.सी. एम.ए. (अर्थशास्त्र) में करने के बाद पत्राचार में पत्र कारिता का एक वर्ष का कोर्स और उसके बाद एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और इस बीच कई लेख, वयंग्य,फीचर,निबंध देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए और समस्थाओं द्वारा पुरूष्कृत भी किये गये । उसके बाद वेलेन्टाइन-डे-कानून के रूप में लोगों के मध्य किताब के रूप में आने का पहला प्रयास है
व्यंग्य लेखन से मेरा उद्देेश्य लोगों का मजाक उड़ाकर उन्हें हसी का पात्र बनाकर सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करना नही है । समाज में कुछ ऐसी बातें व्याप्त है, जो आम आदमी ठगे जाने के बाद भी समझ नहीं पाता है और दिन प्रतिदिन पिसता जाता है । ऐसी बातों को अपने लेखों ओैर व्यंग्यों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना ही मेरा उद्देश्य रहा है ।
इसके अलावा ऐसे लोगों को भी दर्पण दिखाना रहा है जो छल कपट चोरी ,बेईमानी करने के बाद भी समझते है कि उन्होने कुछ नहीं किया है और उनके बारे में लोगों को कुछ नहीं मालूम है, जबकि समाज में इसके विपरीत उल्टा असर रहता है ।
हमारा भारतीय समाज दहेज प्रथा, जातिप्रथा, धार्मिकता, अंधविश्वास, गरीबी, बेकारी आदि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, बुराईयों से ग्रस्त है, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित, देश का आम आदमी है और आम आदमी को ही अपने लेखों का नायक बनाकर प्रायः व्यंग्य लिखे गये हैं । जिसमें अधिक से अधिक समस्याओं को हल सहित उठाये जाने का प्रयास किया गया हैं।
आस पास में व्याप्त विषमताओं चेहरे पर चेहरे लगाये, रंग बदलते चेहरे को देखकर उन्हें सरल सीधे शब्दो में बिना लाग लपेट के व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है और व्यंग्य ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा अपने और अपनो पर चोट करके लोगो को समझाया जा सकता है ।
मुझे व्यंग्य लेखन की प्रेरणा संत कबीर, हरिशंकर, परसाई, चाणक्य, जैसे महान लोगों से मिली है ,जिन्होने अल्प शब्दो में ही गाकर में सागर भरकर लोगों को सामाजिक विशेषताओं की ओर सोचने को मजबूर किया है। मेरे द्वारा युवाओं में व्याप्त समस्याओं ,छेड़खानी, प्रेम, फिल्म के प्रति आकर्षण की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया गया है । वहीं प्रदूषण, मंहगाई, इलाज, बीमारी ,गरीबी के कारणो की तरफ भी लोगों का ध्यान खींचा गया है । नारी जाति में व्याप्त समस्याओं पर विचार किया गया है और समाज में व्याप्त दोहरे मापदंड आर्थिक विषमताओं का उल्ल्ेाख किया है।
बी.एस.सी. एम.ए. (अर्थशास्त्र) में करने के बाद पत्राचार में पत्र कारिता का एक वर्ष का कोर्स और उसके बाद एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और इस बीच कई लेख, वयंग्य,फीचर,निबंध देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए और समस्थाओं द्वारा पुरूष्कृत भी किये गये । उसके बाद वेलेन्टाइन-डे-कानून के रूप में लोगों के मध्य किताब के रूप में आने का पहला प्रयास है
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