प्रे म शब्द बड़ा मीठा, लुभावना कान में मिश्री घोलने वाला है।, इस छोटे से शब्द में बहुत बड़ी दुनिया बसी है इस शब्द का नाम सुनते ही लोगों में एक अजीब तरह का रोमांच दिखाई देने लगता है। समाज में बड़े-बूढ़ों के कान इस शब्द को सुनते ही चौकन्ने हो जाते हैं। आखिर ये प्रेम शब्द है क्या !
इस संबंध में प्रसिद्ध निबंधकार मौन्तेन ने कहा है कि लोभवश चाही गयी वस्तु के उपभोग की अनबुझी प्यास के सिवाय प्रेम कुछ भी नहीं है।
आतेन द-ला सेन के अनुसार प्यार दो व्यक्तियों की एक अस्मिता है। यह तो मानना पड़ेगा कि प्यार दो व्यक्तियों के बीच पनपने वाला एक रिश्ता है यह जरूरी नहीं है कि एक पुरूष को प्यार किसी लड़की से ही है। प्यार भक्त को भगवान से, बच्चों को मां-बाप से भी होता है, लेकिन हम यहां जिस प्यार की चर्चा कर रहे है। वह अंधा प्यार है जो बिना जाति, धर्म और भाषा के मतभेद के लोगों के बीच उत्पन्न होता है। जिसके कारण लैला-मजनू, शीरी-फरहाद,ं और रोमियो-जूलियट इस दुनिया में प्रसिद्ध हुए थे हम उस प्यार की चर्चा कर रहे है। जिसे यह समाज बुरा मानता है, लेकिन जिससे कोई अछूता नहीं रहता है।
इस प्यार को रिचर्ड द कोर्निवाल ने परिभाषित करते हुए कहा है, प्यार उल्टी खोपड़ी की उपज है, यह न बुझने वाली आग और न मिटने वाली भूख है, यह मधुर आनंद सुखद उन्माद, बिना विश्राम का श्रम और बिना श्रम का विश्राम है।
प्यार को एक अनुभूति माना गया है, जिसे धीरे-धीरे व्यक्ति अपने में महसूस करता है, यह एक खुशनुमा अहसास है, जो बिना आहट के बहुत धीरे से अपने में महसूस होता है जब आंखे बिना पलक झपकाए किसी के इंतजार में थकती नजर नहीं आती है, तो उसे प्यार की संज्ञा दी जाती है।
प्यार करने वालों को दीन दुनिया की खबर नहीं रहती है, वह पूरी तरह से अपने में खोये रहते हैं। प्यार कीमदहोशी को देखकर किसी ने कहा है जब दिल आया गधी पर तो परी क्या चीज है ।
इसी संबंध में एच0एल0 मेकन ने कहा है प्यार की गिरफ्त में होना महज एक लगातार बनी रहने वाली बेहोशी की अवस्था है। इस गलतफहमी में होना कि साधारण सा युवक कोई देवता है और साधारण सी युवती कोई देवी। यही गलतफहमी प्यार को सही अंजाम देती है इसी गलतफहमी से प्यार उत्पन्न होता है, जिस तरह से खुश्बू को नहीं छिपाया जा सकता उसी तरह से प्यार को भी नहीं छिपाया जा सकता है वह दोस्ती हमदर्दी किसी भी रूप में दिखायी देने लगता है।
प्यार कब और किस तरह होता है इस संबंध में कुछ पता नहीं चला है, यह एक अजीब तरह का रिश्ता है, जो न तो अपने मन से जोड़ा जा सकता है, और न तोड़ा जा सकता है। दो लोगों के बीच प्यार का रिश्ता कब पनपने लगता है यह किसी को नहीं मालूम पड़ता। कोई कहेगा उसने मुझसे एक बार हंसकर टाईम पूछा और मुझे उससे प्यार हो गया। कोई कहेगा कि मैने उसकी कविता पढ़ी और उससे प्यार करने लगा। कोई बोलेगी कि उपन्यास पढ़ा और उसके नायक से प्यार करने लगी। इस तरह प्यार कब और किस प्रकार होता है। कुछ कहा नहीं जा सकता। प्यार करने के लिए कोई निश्चित नियम या सिद्धांत नहीं है। यह जरूर है कि प्यार मात्र एक झलक या इशारे से शुरू होता है। इसके लिए बैठकर कोई लंबी चौड़ी योजना नहीं बनानी पड़ती है। प्यार में पहली नजर को बहुत कोसा गया है
इस संबंध में प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक विक्टर ह्नूगों ने कहा है कि एक नजर देख लेने की शक्ति को प्रेमकथाओं में इतना अधिक कोसा गया है कि इस प्यार पर अविश्वास होने लगा है। अब कुछ लोग ही यह कहने का साहस करते हैं। कि दोनों ने एक दूसरे को देख लिया इसलिए दोनों में प्यार हो गया। फिरभी प्यार इसी तरह से और सिर्फ इसी तरह से शुरू होता है। बाकी बातें महज बाकी बातें हैं। और बाद में आती है। यह बात बिल्कुल सत्य है कि प्यार एक नजर देख लेने भर से होता है। लोग इस एक नजर को सारी जिंदगी अपने सीने से चिपटाए रहते हैं। प्यार में एक नजर देख लेने के बाद ही आसमानसे तारे तोड़ लाने वाली बातें हुआ करती है।
प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती है, यह किसी भी उम्र में हो सकता है। लेकिन अधिकतर इस बीमारी के शिकार कच्ची उम्र के नवयुवक होते हैं।, जो प्यार के आवेश में बहकर अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं।
प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी ने अपने उपन्यास यही सच है में कच्ची उम्र में किए गए प्यार की शुरूआत व अंत के बारे में बहुत अच्छी बात कही है। उनके अनुसार अठारह वर्ष की आयु में किया हुआ प्यार भी कुछ होता है भला, निरा बचपना होता है, महज पागलपन का उसमें आवेश रहता है। पर स्थायित्व नहीं। गति रहती है, पर गहराई नहीं जिस वेग से वह आरंभ होता है जरा सा झटका लगने पर उसी वेग से टूट जाता है। और उसके बाद आहों, सिसकियों का एक दौर शुरू होता है और सारी दुनिया से तीखी घृणा जैसे ही जीवन का दूसरा आधार मिल जाता है, उन सबको भूलने में एक दिन भी नहीं लगता फिर तो हंसने की तबीयत होती है तब एकाएक ही ह अहसास होता है कि ये आंसू, ये सारी आहें उस प्रेमी के लिए नहीं थे वरन जवन की उस रिक्तता और शून्यता के लिए थे, जिसने जीवन को नीरस बनाकर बोझिल कर दिया था। कच्ची उम्र का प्यार उस बेल के समान होता है, जो कोई भी सहारा पाकर उसमें पलने फूलने लगती है, उम्र बढ़ने के साथ-साथ प्यार के मामले में स्थिरता आती है, परिपक्व उम्र में किए गए प्यार ही सही प्यार माना गया,क्योंकि उसमें स्थिरता होती है, स्थायित्व होता है और सोचने-समझने की शक्ति होती है.
रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है प्यार जितना ही गुप्त और जितना एकांत का होता है उतना ही प्रबल हुआ करता है। लोग एक दूसरे को चाहे है।, किसी को कानोंकान खबर नहीं लगती जब वे अपना प्रेम कुटीर बसाते हैं। तब जाकर लोगों का प्यार के रहस्य का पता चलता है।, प्यार का रास्ता बड़ी कठिनाईयों वाला होता है। इसके मार्ग में अनेक बाधाएं आती है। जो इन बाधाओं को पार कर जाते हैं।, प्यार के प्रारंभ और अंत में दो प्रेमी अपने को अकेला पा कर परेशान हो उठते हैं। उनका इशारा प्यार की पेचीदगियों की तरफ है।
प्यार शब्द बड़ा विस्तृत है, इसे गीतकारों ने अपने गीतों में शायरों ने अपनी शायरी में, उपन्यासकारों ने उपन्यासों में व कहानीकारों ने कहानी में ढाला है। फिल्मों का प्रिय विषय प्यार रहा है। हर साल इस विषय पर सैकड़ों फिल्में बनती है। जिनमें प्यार के विविध आयामों से परिचित करवाया जाता है। बहुचर्चित सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास गुनाहों का देवता का विषय भी प्यार रहा है। प्यार को बहादुर लोगों ने अपनी तलवारों से चमकाया है इसके पीछे बड़े-ब़ड़े युद्ध लड़े गए है।, कई राज्य बने व बिगड़े है।
प्यार को जहां आशावादी बताया गया है, वहीं प्यार के निराशावादी दृष्टिकोण से भी परिचित करवाया गया है। एक अंग्रेजी कवि ने कहा है लव इज लेक आफ टिअर्स, ओसेन ऑफ सॉरोज, वेली ऑफ डैथ, एंड ऑफ लाइफ। प्यार को आंसुआं का समुद्र,मौत की घाटी, जीवन का अंत कहने वाला कवि शायद एकतरफा प्यार के शिकार या समाज से उपेक्षित दुखी जीव लगता है, प्यार के मामले में प्रायः मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसलिए उसने इतने निराशावादी रूप में प्रकट किया गया है।
हमारे कट्टरपंथी रूढ़िवादी दकियानूसी समाज में प्यार को गलत समझा जाता है, अगर कोई गैर जाति का मर्द किसी अन्य जाति, धर्म, भाषा वाली लड़की से लवमैरिज कर लेता हे तो उसे बुरा कहा जाता है यहां तक कि समाज उसे बहिष्कृत भी कर देता है। हमारे समाज में इस गलत परंपरा का कारण रहा है सदियों से धर्म के नाम पर घुलता आ रहा जहर और जाति के नाम पर बिकता आ रहा द्धेष, जिसने प्यार जैसे पवित्र रिश्ते को गलत बताकर समाज में दहेज,बालविवाह बेमेल विवाह, बहुविवाह, सांप्रदायिकता जाति भेदभाव आदि सामाजिक बुराईयों को बढ़ावा दिया जाता है।
इस तरह प्यार के संबंध में विचारकों के अनेक दृष्टिकोण है। कोई इसे जीवन का संगीत, कोई बिना शर्त का सौदा कोई मात्र अनुभूति किसी के लिए खुशनुमा अहसास और तो और किसी ने मौत की घाटी समान इसे माना है।
इस संबंध में प्रसिद्ध निबंधकार मौन्तेन ने कहा है कि लोभवश चाही गयी वस्तु के उपभोग की अनबुझी प्यास के सिवाय प्रेम कुछ भी नहीं है।
आतेन द-ला सेन के अनुसार प्यार दो व्यक्तियों की एक अस्मिता है। यह तो मानना पड़ेगा कि प्यार दो व्यक्तियों के बीच पनपने वाला एक रिश्ता है यह जरूरी नहीं है कि एक पुरूष को प्यार किसी लड़की से ही है। प्यार भक्त को भगवान से, बच्चों को मां-बाप से भी होता है, लेकिन हम यहां जिस प्यार की चर्चा कर रहे है। वह अंधा प्यार है जो बिना जाति, धर्म और भाषा के मतभेद के लोगों के बीच उत्पन्न होता है। जिसके कारण लैला-मजनू, शीरी-फरहाद,ं और रोमियो-जूलियट इस दुनिया में प्रसिद्ध हुए थे हम उस प्यार की चर्चा कर रहे है। जिसे यह समाज बुरा मानता है, लेकिन जिससे कोई अछूता नहीं रहता है।
इस प्यार को रिचर्ड द कोर्निवाल ने परिभाषित करते हुए कहा है, प्यार उल्टी खोपड़ी की उपज है, यह न बुझने वाली आग और न मिटने वाली भूख है, यह मधुर आनंद सुखद उन्माद, बिना विश्राम का श्रम और बिना श्रम का विश्राम है।
प्यार को एक अनुभूति माना गया है, जिसे धीरे-धीरे व्यक्ति अपने में महसूस करता है, यह एक खुशनुमा अहसास है, जो बिना आहट के बहुत धीरे से अपने में महसूस होता है जब आंखे बिना पलक झपकाए किसी के इंतजार में थकती नजर नहीं आती है, तो उसे प्यार की संज्ञा दी जाती है।
प्यार करने वालों को दीन दुनिया की खबर नहीं रहती है, वह पूरी तरह से अपने में खोये रहते हैं। प्यार कीमदहोशी को देखकर किसी ने कहा है जब दिल आया गधी पर तो परी क्या चीज है ।
इसी संबंध में एच0एल0 मेकन ने कहा है प्यार की गिरफ्त में होना महज एक लगातार बनी रहने वाली बेहोशी की अवस्था है। इस गलतफहमी में होना कि साधारण सा युवक कोई देवता है और साधारण सी युवती कोई देवी। यही गलतफहमी प्यार को सही अंजाम देती है इसी गलतफहमी से प्यार उत्पन्न होता है, जिस तरह से खुश्बू को नहीं छिपाया जा सकता उसी तरह से प्यार को भी नहीं छिपाया जा सकता है वह दोस्ती हमदर्दी किसी भी रूप में दिखायी देने लगता है।
प्यार कब और किस तरह होता है इस संबंध में कुछ पता नहीं चला है, यह एक अजीब तरह का रिश्ता है, जो न तो अपने मन से जोड़ा जा सकता है, और न तोड़ा जा सकता है। दो लोगों के बीच प्यार का रिश्ता कब पनपने लगता है यह किसी को नहीं मालूम पड़ता। कोई कहेगा उसने मुझसे एक बार हंसकर टाईम पूछा और मुझे उससे प्यार हो गया। कोई कहेगा कि मैने उसकी कविता पढ़ी और उससे प्यार करने लगा। कोई बोलेगी कि उपन्यास पढ़ा और उसके नायक से प्यार करने लगी। इस तरह प्यार कब और किस प्रकार होता है। कुछ कहा नहीं जा सकता। प्यार करने के लिए कोई निश्चित नियम या सिद्धांत नहीं है। यह जरूर है कि प्यार मात्र एक झलक या इशारे से शुरू होता है। इसके लिए बैठकर कोई लंबी चौड़ी योजना नहीं बनानी पड़ती है। प्यार में पहली नजर को बहुत कोसा गया है
इस संबंध में प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक विक्टर ह्नूगों ने कहा है कि एक नजर देख लेने की शक्ति को प्रेमकथाओं में इतना अधिक कोसा गया है कि इस प्यार पर अविश्वास होने लगा है। अब कुछ लोग ही यह कहने का साहस करते हैं। कि दोनों ने एक दूसरे को देख लिया इसलिए दोनों में प्यार हो गया। फिरभी प्यार इसी तरह से और सिर्फ इसी तरह से शुरू होता है। बाकी बातें महज बाकी बातें हैं। और बाद में आती है। यह बात बिल्कुल सत्य है कि प्यार एक नजर देख लेने भर से होता है। लोग इस एक नजर को सारी जिंदगी अपने सीने से चिपटाए रहते हैं। प्यार में एक नजर देख लेने के बाद ही आसमानसे तारे तोड़ लाने वाली बातें हुआ करती है।
प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती है, यह किसी भी उम्र में हो सकता है। लेकिन अधिकतर इस बीमारी के शिकार कच्ची उम्र के नवयुवक होते हैं।, जो प्यार के आवेश में बहकर अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं।
प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी ने अपने उपन्यास यही सच है में कच्ची उम्र में किए गए प्यार की शुरूआत व अंत के बारे में बहुत अच्छी बात कही है। उनके अनुसार अठारह वर्ष की आयु में किया हुआ प्यार भी कुछ होता है भला, निरा बचपना होता है, महज पागलपन का उसमें आवेश रहता है। पर स्थायित्व नहीं। गति रहती है, पर गहराई नहीं जिस वेग से वह आरंभ होता है जरा सा झटका लगने पर उसी वेग से टूट जाता है। और उसके बाद आहों, सिसकियों का एक दौर शुरू होता है और सारी दुनिया से तीखी घृणा जैसे ही जीवन का दूसरा आधार मिल जाता है, उन सबको भूलने में एक दिन भी नहीं लगता फिर तो हंसने की तबीयत होती है तब एकाएक ही ह अहसास होता है कि ये आंसू, ये सारी आहें उस प्रेमी के लिए नहीं थे वरन जवन की उस रिक्तता और शून्यता के लिए थे, जिसने जीवन को नीरस बनाकर बोझिल कर दिया था। कच्ची उम्र का प्यार उस बेल के समान होता है, जो कोई भी सहारा पाकर उसमें पलने फूलने लगती है, उम्र बढ़ने के साथ-साथ प्यार के मामले में स्थिरता आती है, परिपक्व उम्र में किए गए प्यार ही सही प्यार माना गया,क्योंकि उसमें स्थिरता होती है, स्थायित्व होता है और सोचने-समझने की शक्ति होती है.
रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है प्यार जितना ही गुप्त और जितना एकांत का होता है उतना ही प्रबल हुआ करता है। लोग एक दूसरे को चाहे है।, किसी को कानोंकान खबर नहीं लगती जब वे अपना प्रेम कुटीर बसाते हैं। तब जाकर लोगों का प्यार के रहस्य का पता चलता है।, प्यार का रास्ता बड़ी कठिनाईयों वाला होता है। इसके मार्ग में अनेक बाधाएं आती है। जो इन बाधाओं को पार कर जाते हैं।, प्यार के प्रारंभ और अंत में दो प्रेमी अपने को अकेला पा कर परेशान हो उठते हैं। उनका इशारा प्यार की पेचीदगियों की तरफ है।
प्यार शब्द बड़ा विस्तृत है, इसे गीतकारों ने अपने गीतों में शायरों ने अपनी शायरी में, उपन्यासकारों ने उपन्यासों में व कहानीकारों ने कहानी में ढाला है। फिल्मों का प्रिय विषय प्यार रहा है। हर साल इस विषय पर सैकड़ों फिल्में बनती है। जिनमें प्यार के विविध आयामों से परिचित करवाया जाता है। बहुचर्चित सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास गुनाहों का देवता का विषय भी प्यार रहा है। प्यार को बहादुर लोगों ने अपनी तलवारों से चमकाया है इसके पीछे बड़े-ब़ड़े युद्ध लड़े गए है।, कई राज्य बने व बिगड़े है।
प्यार को जहां आशावादी बताया गया है, वहीं प्यार के निराशावादी दृष्टिकोण से भी परिचित करवाया गया है। एक अंग्रेजी कवि ने कहा है लव इज लेक आफ टिअर्स, ओसेन ऑफ सॉरोज, वेली ऑफ डैथ, एंड ऑफ लाइफ। प्यार को आंसुआं का समुद्र,मौत की घाटी, जीवन का अंत कहने वाला कवि शायद एकतरफा प्यार के शिकार या समाज से उपेक्षित दुखी जीव लगता है, प्यार के मामले में प्रायः मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसलिए उसने इतने निराशावादी रूप में प्रकट किया गया है।
हमारे कट्टरपंथी रूढ़िवादी दकियानूसी समाज में प्यार को गलत समझा जाता है, अगर कोई गैर जाति का मर्द किसी अन्य जाति, धर्म, भाषा वाली लड़की से लवमैरिज कर लेता हे तो उसे बुरा कहा जाता है यहां तक कि समाज उसे बहिष्कृत भी कर देता है। हमारे समाज में इस गलत परंपरा का कारण रहा है सदियों से धर्म के नाम पर घुलता आ रहा जहर और जाति के नाम पर बिकता आ रहा द्धेष, जिसने प्यार जैसे पवित्र रिश्ते को गलत बताकर समाज में दहेज,बालविवाह बेमेल विवाह, बहुविवाह, सांप्रदायिकता जाति भेदभाव आदि सामाजिक बुराईयों को बढ़ावा दिया जाता है।
इस तरह प्यार के संबंध में विचारकों के अनेक दृष्टिकोण है। कोई इसे जीवन का संगीत, कोई बिना शर्त का सौदा कोई मात्र अनुभूति किसी के लिए खुशनुमा अहसास और तो और किसी ने मौत की घाटी समान इसे माना है।
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